नई दिल्ली : गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने राज्य के स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी की करारी शिकस्त के बाद बागी तेवर दिखाते हुए रविवार को प्रदेश इकाई की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए.
हार्दिक पटेल ने दावा किया कि इन चुनावों में उन्हें कोई काम नहीं दिया गया और एक भी सीट पर टिकट को लेकर उनकी राय नहीं ली गई.
उन्होंने हालांकि, भविष्य में कांग्रेस छोड़ने की अटकलों को भी खारिज किया और कहा कि वह कांग्रेस में बने रहेंगे और पार्टी उन्हें जो भी जिम्मेदारी देगी, उसे निभाएंगे.
पटेल ने एक साक्षात्कार में गुजरात को लेकर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की समझ को लेकर भी सवाल किया और कहा कि राज्य में उनकी पार्टी विपक्ष के तौर पर संघर्ष करने में विफल रही है तथा कांग्रेस को फिर से मजबूत बनाने के लिए आलाकमान को गुजरात को समझना पड़ेगा.
उन्होंने यह भी कहा कि विधायकों को संगठन के काम से अलग रखना होगा.
निगम चुनाव में मिली है करारी हार
कभी पाटीदार आरक्षण आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे पटेल ने ये टिप्पणियां उस वक्त की हैं जब कुछ दिनों पहले ही गुजरात में नगर निगम, नगरपालिका, जिला एवं तालुका पंचायत के चुनावों में कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले करारी हार का सामना करना पड़ा. पार्टी सूरत नगर निगम में अपना खाता भी नहीं खोल सकी.
भाजपा ने नगरपालिका, जिला एवं तालुका पंचायतों की 8,470 सीटों में से 6,236 सीटें जीतकर कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ दिया. कांग्रेस केवल 1,805 सीटें ही जीत पायी.
पार्टी की हार के कारणों के बारे में पूछे जाने पर हार्दिक पटेल ने कहा, 'हम लोग जनता का विश्वास हासिल करने में विफल रहे हैं. विपक्ष के तौर पर हमें जो संघर्ष करना चाहिए था उसमें हम नाकाम रहे. जनता को लगता है कि विपक्ष में रहकर कांग्रेस को जो काम करना चाहिए था वो उसने नहीं किया. इस कारण कई जगहों पर आम आदमी पार्टी को वोट मिल गया.'
उन्होंने कहा, 'सूरत में हमारे आंदोलन के साथियों ने सिर्फ दो टिकट मांगे थे. पार्टी ने वो भी नहीं दिया. इन दो सीटों के चक्कर में हमारी 36 सीटें चली गईं.'
उल्लेखनीय है पिछले निकाय चुनाव में सूरत के पाटीदार बहुल इलाकों में कांग्रेस ने 30 से अधिक सीटें जीतीं थीं.
'मैं सिर्फ कार्यकारी अध्यक्ष, टिकट बंटवारे में कोई भूमिका नहीं थी'
किसी नेता का नाम लिए बगैर पटेल ने दावा किया, 'मैं सिर्फ कार्यकारी अध्यक्ष हूं और टिकट बंटवारे में मेरी कोई भूमिका नहीं थी. मुझे बुलाया तक नहीं गया... मुझे यही बताया गया कि कार्यकारी अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं होती है. फिर भी मैंने अपने बल-बूते पर कई सभाएं कीं. मुझे प्रदेश कांग्रेस कमेटी की तरफ से कोई कार्यक्रम और काम नहीं दिया गया.'
उन्होंने कहा, 'जब आप लोगों के बीच नहीं जाएंगे, अपने घोषणापत्र की बातें नहीं पहुंचाएंगे तो कैसे होगा? अहमदाबाद जैसे शहर में हमारा कोई बड़ा बैनर नहीं लगा था. लोगों को लगता है कि चुनाव में कांग्रेस है ही नहीं. गुजरात में जनता भाजपा को पसंद नहीं करती, लेकिन हम लोग जनता को विश्वास नहीं दिला पा रहे हैं कि हम उनके साथ खड़े हैं.'
पटेल के मुताबिक, 'स्थानीय निकाय के चुनाव की तैयारियां तीन महीने से चल रही थी. तीन महीनों में मुझे एक बार भी नहीं कहा गया कि आपको यह काम करना है. पांच हजार से अधिक सीटों पर टिकटों का बंटवारा हुआ, लेकिन एक सीट पर भी मुझसे नहीं पूछा गया कि क्या करना चाहिए, यहां तक कि पाटीदार बहुल क्षेत्रों में भी मेरी राय नहीं ली गई.'
प्रदेश अध्यक्ष पद से अमित चावड़ा और नेता प्रतिपक्ष पद से परेश धनानी के इस्तीफे के बारे में पूछे जाने पर पटेल ने कहा, 'अगर मैं भी अध्यक्ष होता तो जिम्मेदारी लेता. उन लोगों ने इस्तीफा दिया है, लेकिन जिम्मेदारी सबकी है. अब सबको मेहनत करनी पड़ेगी.'
उन्होंने इस बात पर जोर दिया, 'संगठन को मजबूत बनाने के साथ ही विधायकों को संगठन से अलग रखना पड़ेगा. विधायक अपने अपने क्षेत्र में काम करें. भाजपा में संगठन की ताकत देखिए. क्या भाजपा का कोई विधायक या सांसद अपने अध्यक्ष को टिकट को लेकर सलाह देता है?'
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यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस आलाकमान ने समय रहते जरूरी कदम नहीं उठाए, पटेल ने कहा, 'उनको (आलाकमान) गुजरात को समझना पड़ेगा, गुजरात को महत्व देना पड़ेगा. हम 30 साल से प्रदेश की सत्ता में नहीं हैं. गुजरात को नहीं समझेंगे तो हमारे जैसे युवा कार्यकर्ता निराश हो जाएंगे. पार्टी दिन-ब-दिन गिरती जा रही है और कोई ध्यान नहीं दे रहा है.'
(पीटीआई-भाषा)