अहमदाबाद : रोजाना हजारों लोग कोरोनो वायरस महामारी के समय में अस्पताल के बिस्तर, ऑक्सीजन और दवाओं की कमी के कारण जान गंवा रहे हैं. वहीं कुछ असाध्य लालची लोग हैं, जो कालबाजारी करके जीवनरक्षक इंजेक्शन बेचकर हत्याएं कर रहे हैं. पिछले 15 दिनों में गुजरात में रेमेडेसिविर की कालाबाजारी के 25 मामले प्रकाश में आए हैं.
भले ही कोरोना के मरीज जीवनरक्षक रेमेडेसिविर इंजेक्शन पाने के लिए दौड़ रहे हों लेकिन बेईमान लालची बदमाश गुजरात के कई शहरों में ब्लैक मार्केट में इंजेक्शन बेचकर पैसे ऐंठ रहे हैं. अकेले अहमदाबाद में रेमेडेसिविर के काले विपणन के 9 से अधिक मामले दर्ज हुए हैं.
पुलिस ने 29 अप्रैल को अहमदाबाद के रेमेडेसिविर की कालाबाजारी के दो अलग-अलग मामलों में दस अपराधियों को गिरफ्तार किया था. उनमें से एक जो एक फार्मा कंपनी में कार्यरत था, वह नकली रेमेडेसिविर इंजेक्शन का स्टॉक रखता था. पुलिस ने कालाबाजारी करने वालों से 21 लाख रुपये नकद और नकली इंजेक्शन की 5,000 शीशियां बरामद की हैं.
1 मई को सिटी क्राइम ब्रांच पुलिस ने जुहापुरा इलाके के एक घर से रेमेडेसिविर की 1170 शीशियों और 1700,000 रुपये नकद बरामद किए और दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया. उनके पूछताछ से पता चला कि वे ग्लूकोज और खारे पानी के मिश्रण से नकली इंजेक्शन तैयार करते थे.
इसे जरूरतमंदों को 2,500 से 3,500 रुपये प्रति शीशी में बेचा जाता था. उन्होंने नकली इंजेक्शन की 5,000 शीशी बेची थीं और 60,000 अधिक शीशियाँ बेचने की प्रक्रिया में थे. इसके बाद राज्य के गृह मंत्री प्रदीपसिंह जडेजा ने कहा कि गुजरात में फर्जी रेमेडेसिविर के 23 ऐसे मामले प्रकाश में आए हैं.
इनमें अहमदाबाद में 9, सूरत, वड़ोदरा और राजकोट में तीन-तीन और मेहसाणा, वलसाड, दाहोद, पाटन और भरूच में एक-एक मामले शामिल हैं. 2 मई को पुलिस ने अहमदाबाद के चंदलोदिया के एक व्यक्ति को इंजेक्शना की 58 शीशियों के साथ गिरफ्तार किया. जिसे वह हैदराबाद से कालाबाजारी करके लाया था.
पांच मई को को वडोदरा से कालाबाजारी करने वाले 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया. वडोदरा क्राइम ब्रांच पुलिस ने पांच लोगों की गिरफ्तारी के साथ इंजेक्शन की कालाबाजारी के रैकेट का भंडाफोड़ किया. आरोपी 16,000 रुपये से 20,000 रुपये के बीच इंजेक्शन बेच रहे थे.
पुलिस ने उनके पास से 2,00,000 रुपये नकद, इंजेक्शन की 90 शीशी 7.61 लाख रुपये बरामद किए. उनके पूछताछ से पता चला कि उन्होंने पहले ही रेमेडेसिविर की 300 से 400 शीशियों को बेच दिया था. आरोपियों में से एक श्रॉफ अस्पताल के मेडिकल स्टोर में काम करता था जबकि दूसरा एक मेडिकल एजेंसी संचालित करता था.
वहीं बनासकांठा जिले में भी रेमेडेसिविर इंजेक्शन की कमी का सामना करना पड़ रहा था. यहां भी कालाबाजार में इंजेक्शन बेचने के एक रैकेट में शामिल था. जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने भूमा आईसीयू मेडिकेयर अस्पताल में छापा मारा और पाया कि अस्पताल ने कोरोना रोगियों के नाम पर रेमेडेसिविर इंजेक्शन प्राप्त किया था, जिन्हें पहले ही छुट्टी दे दी गई थी.
अस्पताल के डॉक्टर से इंजेक्शन की छह शीशी बरामद की गई और उसके खिलाफ आपदा प्रबंधन और महामारी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया. सूरत में भी रेमेडेसिविर काला विपणन घोटाले में पीछे नहीं रहा. सूरत पुलिस ने इंजेक्शन के खरीदार के रूप में रैकेट का भंडाफोड़ किया. उससे छह शीशियों के लिए 70,000 रुपये दिए गए थे.
आरोपी प्रदीप कटारिया के स्वामित्व वाली फ्यूजन पैथोलॉजिकल लैबोरेटरी में आरोपी कल्पेश को पुलिस डिकॉय ले गई, जहां पुलिस ने कल्पेश और प्रदीप दोनों को पकड़ लिया. जब वे छह शीशियों को सौंप रहे थे. उनकी पूछताछ से पता चला है कि वे सिविल अस्पताल से इंजेक्शन प्राप्त करते थे जो नित्य अस्पताल में भर्ती कोरोना पॉजिटिव रोगियों के आधार कार्ड की प्रतियों के बदले मिलता था.
पुलिस ने इस सिलसिले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है. अंकलेश्वर जीआईडीसी क्षेत्र में निगरानी रखने वाली पुलिस ने दो युवकों को रेमेडेसिविर को 17,000 में बेचने के लिए पकड़ा. उनसे पूछताछ से पता चला कि नेतरंग का एक डॉक्टर उन्हें इंजेक्शन की आपूर्ति करता था जिसे वे जरूरतमंद व्यक्तियों को 15,000 से 17,000 रुपये में बेच रहे थे.
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इसके बाद 4 मई को पुलिस ने दाहेज बाईपास रोड पर सिटी केयर अस्पताल के एक मेडिकल स्टोर के एक नर्स और एक कर्मचारी को गिरफ्तार किया. नर्स ब्लैक मार्केट में बेचने के लिए इंजेक्शन की आपूर्ति शेठ मेडिकल स्टोर में करती थी. पुलिस ने उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया है और 54,000 रुपये मूल्य के इंजेक्शन की छह शीशी बरामद की हैं.