गांधीनगर: गुजरात राज्य के शहरी क्षेत्रों में सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर आवारा पशुओं की आवाजाही पर लगाम लगाने के उद्देश्य से राज्य विधानसभा ने शुक्रवार को एक विधेयक पारित किया. इसके तहत पशुपालकों को शहरी क्षेत्र में ऐसे जानवरों को रखने के लिए अनिवार्य लाइसेंस लेना होगा. ऐसा न करने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है. गुरुवार को शाम करीब छह बजे शुरू हुई इस पर सात घंटे तक चली बहस के बाद शुक्रवार की तड़के सदन में विधेयक को पारित कर दिया गया. विपक्षी कांग्रेस ने "गुजरात मवेशी नियंत्रण (कीपिंग एंड मूविंग) इन अर्बन एरिया बिल" का जोरदार विरोध किया. साथ ही धमकी दी कि इस तरह का "ब्लैक एक्ट" लाने के लिए भाजपा सरकार के खिलाफ राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे.
सरकार ने क्या कहा: शहरी विकास राज्य मंत्री विनोद मोरादिया ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि शहरी क्षेत्रों में गाय, भैंस, बैल और बकरियों जैसे मवेशियों को रखने की प्रथा शहरवासियों के लिए परेशानी का सबब बन रही है क्योंकि पशुपालक अपने जानवरों को इधर-उधर भटकने के छोड़ देते हैं. सड़कों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर। जब अधिकारी ऐसे आवारा मवेशियों को पकड़ते हैं, तो पशुपालक फीस देकर उन्हें वापस ले जाते हैं और फिर दोबारा से सड़कों पर छोड़ देते हैं. इससे लोगों को समस्या हो रही है. ऐसे आवारा मवेशियों की चपेट में आने से कई लोगों की मौत हो गई है. यह गायों के लिए भी अच्छी नहीं है क्योंकि वे प्लास्टिक खाकर सड़कों पर मर जाती हैं.
कहां कहां होगा लागू एवं शर्तें: इस कानून के तहत, पशुपालकों को अपने मवेशियों को शहरी क्षेत्रों में रखने के लिए एक सक्षम प्राधिकारी से लाइसेंस लेना अनिवार्य होगा. इसको आठ नगर अर्थात अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, वडोदरा, गांधीनगर, जूनागढ़, भावनगर और जमानगर - और 156 शहरों मे लागू किया जाएगा. वैध लाइसेंस के बिना किसी भी व्यक्ति को शहर की सीमा में मवेशी रखने की अनुमति नहीं होगी. लाइसेंस प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर, मालिक को अपने मवेशियों को टैग करवाना होगा और मवेशियों को सड़कों या किसी अन्य पर जाने से रोकना होगा. यदि किसी कारणवश पशुपालक 15 दिनों में अपने मवेशियों को टैग करने में विफल रहता है, तो उसे जेल की सजा से दंडित किया जाएगा जो एक साल तक बढ़ सकता है या 10,000 रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकता है.
कितना होगा जुर्माना: इस बिल के अनुसार शहरों में गैर-निर्दिष्ट क्षेत्रों में मवेशियों के लिए चारे की बिक्री भी प्रतिबंधित है. यदि कोई भी व्यक्ति अधिकारियों पर हमला करता है या मवेशी पकड़ने के अभियान में बाधा डालता है तो उसे एक साल की कैद और न्यूनतम 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. टैग किए गए मवेशियों की जब्ती के मामले में पशु पालक पर जुर्माना लगेगा जो कि भिन्न भिन्न होगी. पहली बार पकड़े जाने पर 5,000 रुपये का जुर्माना, दूसरी बार 10,000 रुपये और तीसरी बार में 15000 के जुर्माना के साथ साथ एफआईआर भी दर्ज की जाएगी. अधिकारियों द्वारा बिना टैग के मवेशियों को जब्त कर स्थायी मवेशी शेड में स्थानांतरित कर दिया जाएगा और पशुपालक को अपना मवेशी लेने के एवज में 50,000 का जुर्माना भरना पड़ेगा.
विरोध में क्या सब कहा गया: कांग्रेस विधायक रघु देसाई और लाखा भरवाड़, दोनों मालदारी या पशु-पालक समुदाय से संबंधित हैं, ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि विधेयक को वापस नहीं लिया गया तो राज्यव्यापी आंदोलन चलाएंगे. देसाई ने कहा कि राज्य में 50 लाख पशुपालक हैं और उनमें से 70 प्रतिशत गरीब और अनपढ़ हैं. मवेशी रखना हमारा मौलिक अधिकार है और यह बिल उस पर सीधा हमला है. यह बिल हमें विस्थापित करने की साजिश है. हम चुप नहीं रहेंगे. हम इस काले कृत्य के खिलाफ राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे. वही अन्य विधायक भरवाड़ ने कहा कि भाजपा ने गाय के नाम पर वोट लिया और अब उसकी सरकार चाहती है कि लोग गाय रखने के लिए लाइसेंस लें. इस बिल से मेरे समुदाय का केवल अनावश्यक उत्पीड़न होगा. मैं चाहता हूं कि आप इस बिल को तुरंत वापस लें.
भाजपा ने बचाव में क्या कहा: अपने बचाव में भाजपा सरकार ने कहा कि विधेयक केवल आवारा मवेशियों को विनियमित करने के लिए है और इससे कानून का पालन करने वाले पशुपालकों के लिए कोई परेशानी नहीं होगी. कानून और न्याय मंत्री राजेंद्र त्रिवेदी ने कांग्रेस से इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करने के लिए कहा क्योंकि यह उच्च न्यायालय था, जिसने हाल ही में राज्य सरकार को आवारा पशुओं के खतरे से निपटने के लिए ऐसा कानून बनाने का निर्देश दिया था. शुक्रवार को सुबह 1 बजे समाप्त हुई लंबी बहस के बाद बिल को बहुमत से पारित कर दिया गया.
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पीटीआई