जमशेदपुरः नवरात्रि की पूजा में मन्नत पूरी होने पर गुड़िया चढ़ाया जाता है. पूरे 9 दिन तक घर में गुड्डे-गुड़िया रखकर पूजा की जाती है. सीढ़ीनुमा मंच बनाकर गुड़ियों को सजाकर रखा जाता है. जमशेदपुर में नवरात्रि के अवसर पर तेलुगु समाज द्वारा गुड़िया पूजा कुछ इस प्रकार से की जा रही है. क्या कुछ खास होता है इस पूजा में, जानें इस पूरी खबर में.
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नवरात्रि की पूजा हर कोई अपने तौर-तरीके और परंपरा से करते हैं. शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा पूरे 9 दिन तक की जाती है. विभिन्न पूजा कमिटी द्वारा पंडाल में मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित कर पूजा की जाती है. दक्षिण के राज्यों में भी अलग तरह से नवरात्रि में पूजा होती है. इसमें सबसे अनोखी परंपरा तेलुगु समाज की है. तेलुगु महिलाएं नवरात्रि के मौके पर पूरे 9 दिन तक घर में गुड़िया पूजा करती हैं, जिसे उनकी भाषा में बोम्माला कोलुवु कहा जाता है.
कैसे की जाती है गुड़िया पूजाः तेलुगु समाज के लोग नवरात्रि से पहले अपने घर में गुड़िया पूजा करने के लिए उसे स्थान को भविष्य तरीके से सजाते हैं, इसके लिए सीढ़ीनुमा मंच बनाया जाता है. जिनकी संख्या बेजोड़ में रहती है, प्रत्येक सीधी लकीर में अलग-अलग तरीके के मूर्तियों को सजाया जाता है, जिसमें भगवान की छोटी-छोटी मूर्तियां भी शामिल रहती हैं. सबसे पहली सीढ़ी पर मां दुर्गा की मूर्ति रखी जाती है जबकि बाकी सीढ़ियों पर नौ लक्ष्मी के अलग अलग रूप की मूर्ति गुड्डे गुड़िया किसान के साथ अन्य मुर्तिया भी सुशोभित रहती हैं. कलश में नारियल और फल-फूल के अलावा अखंड ज्योत जलाया जाता है. पूजा स्थल को रंग बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है.
जमशेदपुर में गुड़िया पूजा करने वालीं विजया लक्ष्मी बताती हैं कि यह हमारी वर्षों पुरानी परंपरा है. बोम्माला कोलुवु का अर्थ है सभी देवी देवताओं का एक जगह आना और हम पूरे नौ दिनों तक सुबह-शाम उनकी पूजा करते हैं, भोग चढ़ाते हैं, दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और आरती कर पूजा करते हैं. इस पूजा में सुहागिनों को कुमकुम लगाकर उन्हें प्रसाद देकर विदा करते हैं.
विजया लक्ष्मी बताती हैं कि यह मान्यता है कि इस पूजा में मन्नत पूरी होने पर गुड़िया चढ़ाया जाता है, नौ दिनों तक पूजा करने के बाद दशमी के दिन सभी गुड़िया को सुरक्षित रखा जाता है. वो अलग अलग मूर्ति के संदर्भ में बताती हैं कि मनुष्य के जीवन में जो भी आवश्यकता की चीजें हैं, उसे गुड़िया के माध्यम से रखा जाता है. जिसमें बच्चे, किसान, अनाज, मंदिर और खिलौने भी रहते हैं, जिससे भगवान हमारी इन मनोकामनाओं को पूरा करें.
आपको बता दें कि विदेशों और अन्य राज्यों में रहने वालीं तेलुगु समाज की महिलाएं भी गुड़िया पूजा प्रमुखता से करती हैं. वहीं आज की पीढ़ी भी इस पूजा से प्रभावित है, वो भी अपनी इस पुरानी परंपरा को बचाये रखने में विश्वास रखती हैं. प्रत्यूषा बताती हैं कि उसे अपनी इस पुरानी परंपरा से बेहद लगाव है. आज की पीढ़ी को इसे समझने की जरूरत है, इस परंपरा को बचाए रखने का पूरा प्रयास कर रही हैं.