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GST के दायरे में आते ही पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में होगी भारी कटौती - पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी लगाकर केंद्र सरकार की कमाई

क्या पेट्रोल-डीजल जीएसटी के दायरे में आने वाला है ? अगर ऐसा हुआ तो आपको कितना फायदा होगा ? सरकारें पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने से क्यों कतराती हैं ? ऐसे कई सवालों के जवाब के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (etv bharat explainer)

petrol diesel
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Published : Sep 16, 2021, 7:16 PM IST

Updated : Sep 16, 2021, 8:53 PM IST

हैदराबाद: पेट्रोल-डीजल को GST के दायरे में लाना चाहिए. ये बात आपने कहीं ना कहीं, कभी ना कभी कही या सुनी जरूर होगी. इस बार ये बात इसलिये उठ रही है क्योंकि शुक्रवार 17 सितंबर को लखनऊ में जीएसटी काउंसिल की बैठक होगी. कहा जा रहा है कि इस बैठक में पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार हो सकता है.

अब सवाल है कि पेट्रोल डीजल अगर जीएसटी के दायरे में आ भी गया तो क्या हो जाएगा ? फायदा या नुकसान किसका होगा जनता का या सरकार का ? इस तरह के कई सवाल आपके मन में होंगे. जिनका जवाब आपको मिलेगा ईटीवी भारत एक्सप्लेनर में (etv bharat explainer). लेकिन सबसे पहले जानिये कि

पेट्रोल-डीजल की कीमत में क्या-क्या शामिल होता है ?

आज देश का शायद ही कोई ऐसा शहर होगा जहां पेट्रोल के दाम 100 रुपये प्रति लीटर से अधिक ना हो गए हों. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पेट्रोल-डीजल की कीमत में केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार का टैक्स और हर लीटर का भाड़ा और डीलर की कमीशन शामिल होता है. ये सब हिस्सा मिलाकर ही आपको एक लीटर पेट्रोल के लिए 100 रुपये से अधिक कीमत चुकानी पड़ती है.

पेट्रोल की कीमत से ज्यादा टैक्स देते हैं आप
पेट्रोल की कीमत से ज्यादा टैक्स देते हैं आप

पेट्रोल-डीजल की कीमत से ज्यादा टैक्स चुकाते हैं आप ?

यानि एक लीटर पेट्रोल का बेस प्राइस अगर 40 रुपये के करीब है तो आप उससे डेढ गुना उसपर टैक्स और कमीशन के रूप में चुकाते हैं. पहली नज़र में देखें तो 40 रुपये की कीमत का पेट्रोल के लिए आप 100 रुपये से ज्यादा चुकाते हैं.

मौजूदा वक्त में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल है. एक बैरल में 159 लीटर कच्चा तेल होता है. इस वक्त एक डॉलर की कीमत लगभग 74 रुपये है. इस हिसाब से देखें तो एक बैरल कच्चा तेल सरकार को 5550 रुपये का पड़ता है और एक लीटर कच्चे तेल की कीमत करीब 35 रुपये पड़ती है. लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि इस कच्चे तेल से सिर्फ पेट्रोल और डीजल नहीं मिलता, रिफाइनरी में इस कच्चे तेल से ब्यूटेन, प्रोपेन, नैफ्था, ग्रीस, मोटर ऑयल, पेट्रोलियम जैली जैसे कई उत्पाद भी मिलते हैं. अब आप सोचिये की सिर्फ 35 रुपये के कच्चे तेल की ढुलाई आदि, केंद्र सरकार का टैक्स, राज्य सरकार का वैट और डीलर का कमीशन जोड़कर आप तक 100 रुपये में पहुंच रहा है.

कितना सस्ता हो सकता है पेट्रोल ?

दरअसल साल 2010 तक पेट्रोल और 2014 तक डीजल की कीमतें सरकार तय करती थी. हर 15 दिन में तेल की कीमतों में बदलाव होता था. लेकिन 26 जून 2010 के बाद पेट्रोल और 19 अक्टूबर 2014 के बाद सरकार ने कीमतें तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को दे दिया. जिसके बाद कच्चे तेल की कीमत, एक्सचेंज रेट, ढुलाई, परिवहन का खर्च और टैक्स को देखते हुए कंपनियां रोजाना पेट्रोल डीजल की कीमतें निर्धारित करती हैं. आपने भी कई बार देखा होगा कि रोज़ाना कुछ पैसों की बढ़ोतरी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में होती है.

पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने से क्या होगा ?

GST यानि वस्तु एवं सेवा कर (goods and services tax) के दायरे कई उत्पाद और सेवाएं हैं. जिनपर एक निर्धारित दर से टैक्स लगता है. इस वक्त जीएसटी की चार स्लैब मौजूद हैं जिनके तहत 5%, 12%, 18% और 28% की दर से टैक्स लगाया जाता है. जो वस्तु या सेवा जिस स्लैब के तहत आती है उसपर देशभर में तय टैक्स लगता है और फिर GST में राज्य और केंद्र सरकार की हिस्सेदारी तय होती है.

जीएसटी के दायरे में आकर सस्ता होगा पेट्रोल डीजल ?
जीएसटी के दायरे में आकर सस्ता होगा पेट्रोल डीजल ?

पेट्रोल-डीजल फिलहाल जीएसटी के दायरे में नहीं है. केंद्र सरकार इसपर एक्साइज ड्यूटी और राज्य सरकार वैट के रूप में टैक्स वसूलती है. केंद्र और राज्य सरकारों के राजस्व का बड़ा हिस्सा इसी से पेट्रोल-डीजल की बदौलत ही आता है. अगर पेट्रोल-डीजल भी जीएसटी के दायरे में आ जाता है और उसे एक तय स्लैब के तहत या नई स्लैब बनाकर एक दर तय कर दी जाती है तो पेट्रोल डीजल की कीमतें कम हो सकती हैं.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट ?

अर्थशास्त्री विशाल सक्सेना कहते हैं कि पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से महंगाई बढ़ती है और देश का हर परिवार इससे प्रभावित होता है. पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ने से सभी उत्पादों के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बढ़ जाता है, जिसका असर हमारे किचन तक भी नजर आता है. विशाल सक्सेना के मुताबिक अगर पेट्रोल-डीजल जीएसटी के दायरे में आते हैं तो उपभोक्ताओं को बहुत बड़ी राहत मिलेगी, अगर सरकार 28 फीसदी के अधिकतम स्लैब के तहत भी इसे रखती है तब भी पेट्रोल के दाम में 25 से 35 रुपये प्रति लीटर तक की कमी आ सकती हैं.

हालांकि इसका सीधा असर केंद्र और राज्य सरकारों के खजाने पर पड़ेगा. वहीं डीलर के कमीशन की गणना अगर पेट्रोल के बेस प्राइस पर हुई तो उसके कमीशन पर कोई असर नहीं पडे़गा. विशाल सक्सेना के मुताबिक पेट्रोल डीजल के जीएसटी के दायरे में आने से सबसे बड़ी राहत भविष्य में नजर आएगी, पेट्रोल-डीजल के दाम कम होने पर हर तरह का ट्रांसपोर्टेशन चार्ज कम होगा. जिससे महंगाई पर लगाम लगेगी. खाने-पीने से लेकर कपड़े, दवा तक हर सामान सस्ता होगा और सरकार महंगाई पर लगाम लगाने में कामयाब हो जाएगी.

केंद्र सरकार की पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से कमाई
केंद्र सरकार की पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से कमाई

जीएसटी के दायरे में लाने से क्यों कतराती हैं सरकारें ?

पेट्रोल-डीजल केंद्र और राज्य सरकारों की कमाई का अहम जरिया है. इसे जीएसटी के दायरे में लाने से दोनों के राजस्व का नुकसान होगा. विशेषज्ञों का अनुमान है कि ऐसा करने से दोनों के राजस्व में 1.30 लाख करोड़ की कमा आ सकती है. हर राज्य में वैट की दर अलग-अलग है. कोई राज्य पेट्रोल पर 25 फीसदी वैट लगाता है तो कोई 30 फीसदी. एक्साइज ड्यूटी से केंद्र और वैट से राज्यों को मिले राजस्व को ही सरकारें विकास कार्यों में खर्च करती हैं.

केंद्र सरकार की कितनी होती है कमाई ?

केंद्र सरकार की तरफ से संसद में बताया गया था कि बीते 6 साल में ईंधन पर टैक्स 307 फीसदी बढ़ा है. यानि बीते 6 सालों में केंद्र का टैक्स कलेक्शन 300 फीसदी बढ़ा है. एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया था कि मोदी सरकार के पहले साल यानि वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क से 29,279 करोड़ और डीजल पर उत्पाद शुल्क से 42,881 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ. जबकि वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीने (अप्रैल से जनवरी) के दौरान पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कलेक्शन बढ़कर 2.94 लाख करोड़ हो गया.

बीते कुछ सालों में पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में हुई बढ़ोतरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2014 में पेट्रोल पर 9.48 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी लगती थी जो फिलहाल 32.90 रुपये है.

पेट्रोल-डीजल पर टैक्स लगाकर सरकार को मिलता है राजस्व
पेट्रोल-डीजल पर टैक्स लगाकर सरकार को मिलता है राजस्व

जीएसटी का दायरा, किसका नुकसान...किसका फायदा ?

पहली नजर में पेट्रोल-डीजल जीएसटी के दायरे में आए तो केंद्र और राज्य सरकार को नुकसान नजर आता है. विशेषज्ञों के मुताबिक केंद्र सरकार का राजस्व 1 लाख करोड़ तक और राज्यों के राजस्व में 30 हजार करोड़ तक की कमी आ सकती है. वहीं देश में पेट्रोल डीज़ल के दाम 25 से 30 रुपये तक की कमी आ सकती है. विशेषज्ञों के मुताबिक दाम कम होने पर पेट्रोल डीजल का उपभोग (consumption) बढ़ सकता है, जिससे हो सकता है कि केंद्र और राज्यों के राजस्व की भरपाई में मदद मिले. लेकिन जनता को फायदा और सरकार को नुकसान का ये सारा गणित मौजूदा जीएसटी ढांचे को देखकर लगाया गया एक अनुमान भर हैं.

वैसे भी सरकार अगर पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाती है तो उसके लिए बीच का रास्ता जरूर खोजेगी. कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक पेट्रोलियम के कुछ ही उत्पादों को इस दायरे में लाया जा सकता है और उसमें भी जीएसटी के साथ सैस लगाकर सरकार बीच का रास्ता निकाल सकती है, जैसा कि तंबाकू उत्पादों पर जीएसटी और सैस लगाया जाता है.

ये भी पढ़ें: iPhone 13: फोन के फीचर्स और कीमत जानकर उड़ जाएंगे होश, इस बार बहुत कुछ है खास

हैदराबाद: पेट्रोल-डीजल को GST के दायरे में लाना चाहिए. ये बात आपने कहीं ना कहीं, कभी ना कभी कही या सुनी जरूर होगी. इस बार ये बात इसलिये उठ रही है क्योंकि शुक्रवार 17 सितंबर को लखनऊ में जीएसटी काउंसिल की बैठक होगी. कहा जा रहा है कि इस बैठक में पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार हो सकता है.

अब सवाल है कि पेट्रोल डीजल अगर जीएसटी के दायरे में आ भी गया तो क्या हो जाएगा ? फायदा या नुकसान किसका होगा जनता का या सरकार का ? इस तरह के कई सवाल आपके मन में होंगे. जिनका जवाब आपको मिलेगा ईटीवी भारत एक्सप्लेनर में (etv bharat explainer). लेकिन सबसे पहले जानिये कि

पेट्रोल-डीजल की कीमत में क्या-क्या शामिल होता है ?

आज देश का शायद ही कोई ऐसा शहर होगा जहां पेट्रोल के दाम 100 रुपये प्रति लीटर से अधिक ना हो गए हों. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पेट्रोल-डीजल की कीमत में केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार का टैक्स और हर लीटर का भाड़ा और डीलर की कमीशन शामिल होता है. ये सब हिस्सा मिलाकर ही आपको एक लीटर पेट्रोल के लिए 100 रुपये से अधिक कीमत चुकानी पड़ती है.

पेट्रोल की कीमत से ज्यादा टैक्स देते हैं आप
पेट्रोल की कीमत से ज्यादा टैक्स देते हैं आप

पेट्रोल-डीजल की कीमत से ज्यादा टैक्स चुकाते हैं आप ?

यानि एक लीटर पेट्रोल का बेस प्राइस अगर 40 रुपये के करीब है तो आप उससे डेढ गुना उसपर टैक्स और कमीशन के रूप में चुकाते हैं. पहली नज़र में देखें तो 40 रुपये की कीमत का पेट्रोल के लिए आप 100 रुपये से ज्यादा चुकाते हैं.

मौजूदा वक्त में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल है. एक बैरल में 159 लीटर कच्चा तेल होता है. इस वक्त एक डॉलर की कीमत लगभग 74 रुपये है. इस हिसाब से देखें तो एक बैरल कच्चा तेल सरकार को 5550 रुपये का पड़ता है और एक लीटर कच्चे तेल की कीमत करीब 35 रुपये पड़ती है. लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि इस कच्चे तेल से सिर्फ पेट्रोल और डीजल नहीं मिलता, रिफाइनरी में इस कच्चे तेल से ब्यूटेन, प्रोपेन, नैफ्था, ग्रीस, मोटर ऑयल, पेट्रोलियम जैली जैसे कई उत्पाद भी मिलते हैं. अब आप सोचिये की सिर्फ 35 रुपये के कच्चे तेल की ढुलाई आदि, केंद्र सरकार का टैक्स, राज्य सरकार का वैट और डीलर का कमीशन जोड़कर आप तक 100 रुपये में पहुंच रहा है.

कितना सस्ता हो सकता है पेट्रोल ?

दरअसल साल 2010 तक पेट्रोल और 2014 तक डीजल की कीमतें सरकार तय करती थी. हर 15 दिन में तेल की कीमतों में बदलाव होता था. लेकिन 26 जून 2010 के बाद पेट्रोल और 19 अक्टूबर 2014 के बाद सरकार ने कीमतें तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को दे दिया. जिसके बाद कच्चे तेल की कीमत, एक्सचेंज रेट, ढुलाई, परिवहन का खर्च और टैक्स को देखते हुए कंपनियां रोजाना पेट्रोल डीजल की कीमतें निर्धारित करती हैं. आपने भी कई बार देखा होगा कि रोज़ाना कुछ पैसों की बढ़ोतरी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में होती है.

पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने से क्या होगा ?

GST यानि वस्तु एवं सेवा कर (goods and services tax) के दायरे कई उत्पाद और सेवाएं हैं. जिनपर एक निर्धारित दर से टैक्स लगता है. इस वक्त जीएसटी की चार स्लैब मौजूद हैं जिनके तहत 5%, 12%, 18% और 28% की दर से टैक्स लगाया जाता है. जो वस्तु या सेवा जिस स्लैब के तहत आती है उसपर देशभर में तय टैक्स लगता है और फिर GST में राज्य और केंद्र सरकार की हिस्सेदारी तय होती है.

जीएसटी के दायरे में आकर सस्ता होगा पेट्रोल डीजल ?
जीएसटी के दायरे में आकर सस्ता होगा पेट्रोल डीजल ?

पेट्रोल-डीजल फिलहाल जीएसटी के दायरे में नहीं है. केंद्र सरकार इसपर एक्साइज ड्यूटी और राज्य सरकार वैट के रूप में टैक्स वसूलती है. केंद्र और राज्य सरकारों के राजस्व का बड़ा हिस्सा इसी से पेट्रोल-डीजल की बदौलत ही आता है. अगर पेट्रोल-डीजल भी जीएसटी के दायरे में आ जाता है और उसे एक तय स्लैब के तहत या नई स्लैब बनाकर एक दर तय कर दी जाती है तो पेट्रोल डीजल की कीमतें कम हो सकती हैं.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट ?

अर्थशास्त्री विशाल सक्सेना कहते हैं कि पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से महंगाई बढ़ती है और देश का हर परिवार इससे प्रभावित होता है. पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ने से सभी उत्पादों के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बढ़ जाता है, जिसका असर हमारे किचन तक भी नजर आता है. विशाल सक्सेना के मुताबिक अगर पेट्रोल-डीजल जीएसटी के दायरे में आते हैं तो उपभोक्ताओं को बहुत बड़ी राहत मिलेगी, अगर सरकार 28 फीसदी के अधिकतम स्लैब के तहत भी इसे रखती है तब भी पेट्रोल के दाम में 25 से 35 रुपये प्रति लीटर तक की कमी आ सकती हैं.

हालांकि इसका सीधा असर केंद्र और राज्य सरकारों के खजाने पर पड़ेगा. वहीं डीलर के कमीशन की गणना अगर पेट्रोल के बेस प्राइस पर हुई तो उसके कमीशन पर कोई असर नहीं पडे़गा. विशाल सक्सेना के मुताबिक पेट्रोल डीजल के जीएसटी के दायरे में आने से सबसे बड़ी राहत भविष्य में नजर आएगी, पेट्रोल-डीजल के दाम कम होने पर हर तरह का ट्रांसपोर्टेशन चार्ज कम होगा. जिससे महंगाई पर लगाम लगेगी. खाने-पीने से लेकर कपड़े, दवा तक हर सामान सस्ता होगा और सरकार महंगाई पर लगाम लगाने में कामयाब हो जाएगी.

केंद्र सरकार की पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से कमाई
केंद्र सरकार की पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से कमाई

जीएसटी के दायरे में लाने से क्यों कतराती हैं सरकारें ?

पेट्रोल-डीजल केंद्र और राज्य सरकारों की कमाई का अहम जरिया है. इसे जीएसटी के दायरे में लाने से दोनों के राजस्व का नुकसान होगा. विशेषज्ञों का अनुमान है कि ऐसा करने से दोनों के राजस्व में 1.30 लाख करोड़ की कमा आ सकती है. हर राज्य में वैट की दर अलग-अलग है. कोई राज्य पेट्रोल पर 25 फीसदी वैट लगाता है तो कोई 30 फीसदी. एक्साइज ड्यूटी से केंद्र और वैट से राज्यों को मिले राजस्व को ही सरकारें विकास कार्यों में खर्च करती हैं.

केंद्र सरकार की कितनी होती है कमाई ?

केंद्र सरकार की तरफ से संसद में बताया गया था कि बीते 6 साल में ईंधन पर टैक्स 307 फीसदी बढ़ा है. यानि बीते 6 सालों में केंद्र का टैक्स कलेक्शन 300 फीसदी बढ़ा है. एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया था कि मोदी सरकार के पहले साल यानि वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क से 29,279 करोड़ और डीजल पर उत्पाद शुल्क से 42,881 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ. जबकि वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीने (अप्रैल से जनवरी) के दौरान पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कलेक्शन बढ़कर 2.94 लाख करोड़ हो गया.

बीते कुछ सालों में पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में हुई बढ़ोतरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2014 में पेट्रोल पर 9.48 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी लगती थी जो फिलहाल 32.90 रुपये है.

पेट्रोल-डीजल पर टैक्स लगाकर सरकार को मिलता है राजस्व
पेट्रोल-डीजल पर टैक्स लगाकर सरकार को मिलता है राजस्व

जीएसटी का दायरा, किसका नुकसान...किसका फायदा ?

पहली नजर में पेट्रोल-डीजल जीएसटी के दायरे में आए तो केंद्र और राज्य सरकार को नुकसान नजर आता है. विशेषज्ञों के मुताबिक केंद्र सरकार का राजस्व 1 लाख करोड़ तक और राज्यों के राजस्व में 30 हजार करोड़ तक की कमी आ सकती है. वहीं देश में पेट्रोल डीज़ल के दाम 25 से 30 रुपये तक की कमी आ सकती है. विशेषज्ञों के मुताबिक दाम कम होने पर पेट्रोल डीजल का उपभोग (consumption) बढ़ सकता है, जिससे हो सकता है कि केंद्र और राज्यों के राजस्व की भरपाई में मदद मिले. लेकिन जनता को फायदा और सरकार को नुकसान का ये सारा गणित मौजूदा जीएसटी ढांचे को देखकर लगाया गया एक अनुमान भर हैं.

वैसे भी सरकार अगर पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाती है तो उसके लिए बीच का रास्ता जरूर खोजेगी. कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक पेट्रोलियम के कुछ ही उत्पादों को इस दायरे में लाया जा सकता है और उसमें भी जीएसटी के साथ सैस लगाकर सरकार बीच का रास्ता निकाल सकती है, जैसा कि तंबाकू उत्पादों पर जीएसटी और सैस लगाया जाता है.

ये भी पढ़ें: iPhone 13: फोन के फीचर्स और कीमत जानकर उड़ जाएंगे होश, इस बार बहुत कुछ है खास

Last Updated : Sep 16, 2021, 8:53 PM IST
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