नई दिल्ली: भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष में घटकर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है. हालांकि, भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा. आर्थिक समीक्षा 2022-23 में मंगलवार को यह अनुमान जताया गया. भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष (अप्रैल 2022 से मार्च 2023) में सात प्रतिशत रहने का अनुमान है. गौरतलब है कि पिछले साल यह 8.7 प्रतिशत थी.
दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह भारत को भी यूरोप में लंबे समय से चल रहे युद्ध से वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं भी आई हैं. समीक्षा में कहा गया, 'ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत ने चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना किया.' वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश की गई आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत पीपीपी (क्रय शक्ति समानता) के मामले में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी और विनिमय दर के मामले में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.
समीक्षा में कहा गया, 'अर्थव्यवस्था ने जो कुछ खोया था, उसे लगभग फिर से पा लिया है. जो रुका हुआ था, उसे नया कर दिया है और महामारी के दौरान तथा यूरोप में संघर्ष के बाद जो गति धीमी हो गई थी, उसे फिर से सक्रिय कर दिया है.' इसमें संकेत दिया गया है कि मुद्रास्फीति की स्थिति बहुत चिंताजनक नहीं हो सकती है, हालांकि, कर्ज की लागत लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर रहने की संभावना है. एक जटिल मुद्रास्फीति सख्ती के चक्र को लंबा कर सकती है.
समीक्षा में कहा गया है कि महामारी के बाद भारत में पुनरुद्धार अपेक्षाकृत तेज था, ठोस घरेलू मांग से वृद्धि को समर्थन मिला, पूंजी निवेश में तेजी आई, लेकिन अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में और बढ़ोतरी के अनुमान से रुपये के लिए चुनौतियां बढ़ीं. चालू खाते के घाटे (कैड) में बढ़ोतरी जारी रह सकती है, क्योंकि वैश्विक जिंस कीमतें ऊंची बनी हुई हैं. अगर कैड और बढ़ता है, तो रुपया दबाव में आ सकता है.
समीक्षा के मुताबिक, निर्यात के मोर्चे पर चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में वृद्धि में कमी आई है. धीमी वैश्विक वृद्धि, सिकुड़ते वैश्विक व्यापार के कारण चालू वर्ष की दूसरी छमाही में निर्यात प्रोत्साहन में कमी आई.
वित्त वर्ष 2023-24 के लिए वर्तमान कीमतों पर वृद्धि दर के 11 प्रतिशत रहने का अनुमान है. समीक्षा में कहा गया कि आगामी वित्त वर्ष के दौरान ज्यादातर वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत की वृद्धि दर मजबूत रहेगी. ऐसा निजी खपत में सुधार, बैंकों द्वारा ऋण देने में तेजी और कंपनियों द्वारा पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी के कारण होगा. समीक्षा में कहा गया है कि मजबूत खपत के कारण भारत में रोजगार की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन रोजगार के अधिक मौके तैयार करने के लिए निजी निवेश में वृद्धि जरूरी है.
मुद्रास्फीति का 6.8 प्रतिशत का अनुमान निजी उपभोग को रोकने जितना ऊंचा नहीं
भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 में मुद्रास्फीति के 6.8 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया है. संसद में मंगलवार को पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 6.8 प्रतिशत की महंगाई दर का अनुमान इतना ज्यादा नहीं है कि निजी उपभोग को रोक सके और न ही यह इतना कम है कि निवेश में कमी आए. समीक्षा में कहा गया, हालांकि लंबे समय तक खिंचने वाली महंगाई सख्ती के चक्र को लंबा कर सकती है.
ऐसे में ऋण की लागत लंबे समय तक ऊंची रह सकती है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक समीक्षा 2022-23 को संसद में पेश किया. भारत की खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी, 2022 से 10 महीने तक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर रहने के बाद पिछले साल नवंबर में घटकर इससे नीचे आई है. केंद्रीय बैंक ने पिछले साल मौजूदा वित्त वर्ष के लिए महंगाई दर 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था.
पढ़ें: Budget 2023 : वित्त मंत्री के सामने होगी भारत के राजकोषीय घाटे के अनुमान को कम रखने की चुनौती
समीक्षा के अनुसार, 'आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022-23 में औसत महंगाई दर 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था, जो इसके लक्षित दायरे से ऊंची थी. हालांकि, यह दर इतनी ज्यादा नहीं है कि निजी खपत को रोक सके या इतनी कम भी नहीं है कि निवेश को कमजोर कर सके.' भारत की थोक व खुदरा महंगाई 2022 में ज्यादातर समय ऊंची रही, जिसका मुख्य कारण फरवरी, 2022 में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान रहा.
(पीटीआई-भाषा)