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ब्लैक-व्हाइट के साथ ग्रीन, पिंक और रेड फंगस भी कर सकते हैं शरीर पर अटैक - Mucormycosis

ब्लैक और व्हाइट फंगस का खतरा अभी टला भी नहीं था कि ग्रीन, पिंक और रेड फंगस का नाम भी सामने आने लगा. बड़ी समस्या यह है कि बहुत सारे फंगस पूरी तरह से अज्ञात हैं.

ग्रीन, पिंक और रेड फंगस
ग्रीन, पिंक और रेड फंगस
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Published : May 23, 2021, 9:21 AM IST

जबलपुर : इन दिनों ब्लैक और व्हाइट फंगस को लेकर जनता परेशान हैं. ब्लैक फंगस से पीड़ित कई मरीज अस्पतालों में भर्ती हैं. अब व्हाइट फंगस के मामले भी सामने आने लगे हैं, लेकिन मानव शरीर में केवल दो ही प्रकार के फंगस का इंफेक्शन नहीं हो सकता बल्कि प्रकृति में लाखों किसम के फंगस पाए जाते हैं. इनमें से लगभग 14000 फंगस के बारे में लोगों को जानकारी है. वहीं 300 फंगस ऐसे हैं, जो मानव शरीर में रोग पैदा कर सकते हैं. फंगस पर अध्ययन करने वाले शोधार्थियों का कहना है कि व्हाइट, ब्लैक, ग्रीन, रेड, पिंक और ब्लू कलर के फंगस होते हैं. बड़ी समस्या यह है कि बहुत सारे फंगस पूरी तरह से अज्ञात हैं.

ग्रीन, पिंक और रेड फंगस

आखिर क्यों बढ़ रहा है फंगल इंफेक्शन ?

वैज्ञानिकों का कहना है कि फिलहाल मानव शरीर में जो फंगस नजर आ रहे हैं, उसकी एक बड़ी वजह कोरोना वायरस के दौरान इलाज की प्रणाली हैं. दरअसल, कोरोना से पीड़ित मरीजों के इलाज में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, ताकि वायरस सामान्य तरीके से अपना समय पूरा करके खत्म हो जाए, नहीं तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण से लड़ने के दौरान फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है. इसी की वजह से फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं. लोगों की जान चली जाती है. इसलिए शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर करके लोगों को बचाया जा रहा हैं, लेकिन इससे अन्य नुकसान भी हो रहे हैं. कमजोर इम्यून सिस्टम में फंगस को शरीर में पनपने के लिए जगह मिल रही हैं.

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह फंगस कहीं बाहर से नहीं आता, बल्कि हमारे आसपास के वातावरण में पाया जाता है. सामान्य तौर पर फ्रिज और सीलन वाले स्थान पर यह फंगस होता हैं. इन्हीं में से किसी एक जरिए से वह शरीर में पहुंच जाता है, जहां वह नुकसान पहुंचाने लगता हैं.

हाइजीन से घट सकता है फंगल इंफेक्शन

फंगल इंफेक्शन को शरीर में फैलने से रोकने के लिए कुछ बेहद सस्ती दवाएं भी इलाज के दौरान दी जाती हैं. साफ-सफाई रखने पर फंगल इंफेक्शन नहीं होता हैं, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि इलाज के दौरान कुछ लापरवाही हो रही हैं, जिसकी वजह से फंगल इंफेक्शन बढ़ रहा हैं.

डॉ. संजय गुप्ता, नेफ्रोलॉजिस्ट

क्या है ब्लैक फंगस

यह एक ऐसा फंगस इंफेक्शन है जिसे कोरोना वायरस ट्रिगर करता है. कोविड-19 टास्क फोर्स के एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये उन लोगों में आसानी से फैल जाता है, जो पहले से किसी ना किसी बीमारी से जूझ रहे हैं और जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है. इन लोगों में इंफेक्शन से लड़ने की क्षमता कम होती है.

कहां करता है अटैक

म्यूकर माइकोसिस (Mucormycosis) या ब्लैक फंगस, चेहरे, नाक, आंख और दिमाग में फैलकर उसको नष्ट कर देती है. इससे आंख सहित चेहरे का बड़ा हिस्‍सा नष्ट हो जाता है और जान जाने का भी खतरा रहता है. डॉक्टरों के मुताबिक अगर इसका सही समय पर इलाज न किया जाए तो आंखों की रोशनी जाने के अलावा मरीज की मौत भी हो सकती है. यह इन्फेक्शन साइनस से होते हुए आंखों को अपनी चपेट में लेता है. इसके बाद शरीर में फैल जाता है. इसे रोकने के लिए डॉक्टर को सर्जरी करके इन्फेक्टेड आंख या जबड़े का ऊपरी एक हिस्सा तक निकालना पड़ता है.

सामान्य तौर पर पाया जाता है व्हाइट फंगस

फंगल इन्फेक्शन पुरानी बीमारी हैं. जिस व्हाइट फंगस को लेकर चर्चा हो रही है, वह बहुत सामान्य से फंगस हैं. जो बालों में, नाखून में या शरीर की मृत कोशिकाओं पर पैदा हो जाते हैं.

जबलपुर में मिला व्हाइट फंगस का मामला

प्रदेश में इस संक्रमण से बचने के लिए सरकार कई इंतजाम कर रही है. जैसे ही स्वास्थ्य विभाग इससे निपटने के लिए तैयार हुआ, तो मध्यप्रदेश में व्हाइट फंगस (white fungus) के मामले भी आने शुरू हो गए. जबलपुर में व्हाइट फंगस का केस सामने आया है, जो प्रदेश का पहला मामला है.

जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में 5 दिन पहले ब्लैक फंगस की शिकायत पर भर्ती हुए एक 55 वर्षीय बुजुर्ग में ऑपरेशन के दौरान व्हाइट फंगस (white fungus) होने की पुष्टि हुई है. डॉक्टरों के मुताबिक, मरीज में व्हाइट फंगस का जो वेरिएंट मिला है, वह ब्लैक फंगस के मुकाबले कम खतरनाक है. यह नाक में होने वाला फंगस है, जिसे ऑपरेशन के माध्यम से अलग करने के बाद केवल दवाइयों से ही ठीक किया जा सकता है.

डॉ. संजय गुप्ता, नेफ्रोलॉजिस्ट

कोरोना जैसे ही हैं व्हाइट फंगस के लक्षण

  • व्हाइट फंगस से फेफड़ों के संक्रमण के लक्षण HRCT में कोरोना जैसे ही दिखते हैं.
  • ऐसे मरीजों में रैपिड एंटीजन और RT-PCR टेस्ट निगेटिव होता है.
  • कोरोना जैसे लक्षणों में त्वचा पर धब्बे दिखने पर रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट और फंगस के लिए बलगम का कल्चर कराना चाहिए.
  • ऐसे कोरोना मरीज जो ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं उनके फेफड़ों को यह संक्रमित कर सकता है.
  • व्हाइट फंगस के संक्रमण की वही वजह है जो ब्लैक फंगस की है, जिनमें इम्यूनिटी कमी, मरीज का डायबिटिक होना, कैंसर के मरीज भी इसके शिकार हो सकते हैं.

बच्चों में भी हो सकता है संक्रमण

डायपर कैंडिडोसिस के रूप में यह संक्रमण छोटे बच्चों में भी हो सकता है. जिसके लक्षणों के तौर पर स्किन पर क्रीम कलर के सफेद धब्बे दिखाई देते हैं. छोटे बच्चों में यह मुंह को संक्रमित करता है जबकि महिलाओं में यह ल्यूकोरिया होना इसका मुख्य कारण है.

कैसे करें बचाव

  • जो मरीज ऑक्सीजन या वेंटिलेटर पर हैं उनके ऑक्सीजन या वेंटिलेटर उपकरण वायरस फ्री होना चाहिए.
  • ऑक्सीजन सिलेंडर ह्यूमिडिफायर में स्ट्रेलाइज वाटर का प्रयोग करना चाहिए
  • मरीजों के फेंफड़ों में जाने वाली ऑक्सीजन फंगस फ्री होनी चाहिए.
  • मरीजों का रैपिड एंटीजन और RT-PCR टेस्ट निगेटिव हो और जिनके HRCT में कोरोना जैसे लक्षण हों तो उनका तुरंत रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट कराना चाहिए.
  • इसके अलावा मरीजों के बलगम के फंगस और कल्चर की जांच भी कराना चाहिए.

जबलपुर : इन दिनों ब्लैक और व्हाइट फंगस को लेकर जनता परेशान हैं. ब्लैक फंगस से पीड़ित कई मरीज अस्पतालों में भर्ती हैं. अब व्हाइट फंगस के मामले भी सामने आने लगे हैं, लेकिन मानव शरीर में केवल दो ही प्रकार के फंगस का इंफेक्शन नहीं हो सकता बल्कि प्रकृति में लाखों किसम के फंगस पाए जाते हैं. इनमें से लगभग 14000 फंगस के बारे में लोगों को जानकारी है. वहीं 300 फंगस ऐसे हैं, जो मानव शरीर में रोग पैदा कर सकते हैं. फंगस पर अध्ययन करने वाले शोधार्थियों का कहना है कि व्हाइट, ब्लैक, ग्रीन, रेड, पिंक और ब्लू कलर के फंगस होते हैं. बड़ी समस्या यह है कि बहुत सारे फंगस पूरी तरह से अज्ञात हैं.

ग्रीन, पिंक और रेड फंगस

आखिर क्यों बढ़ रहा है फंगल इंफेक्शन ?

वैज्ञानिकों का कहना है कि फिलहाल मानव शरीर में जो फंगस नजर आ रहे हैं, उसकी एक बड़ी वजह कोरोना वायरस के दौरान इलाज की प्रणाली हैं. दरअसल, कोरोना से पीड़ित मरीजों के इलाज में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, ताकि वायरस सामान्य तरीके से अपना समय पूरा करके खत्म हो जाए, नहीं तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण से लड़ने के दौरान फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है. इसी की वजह से फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं. लोगों की जान चली जाती है. इसलिए शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर करके लोगों को बचाया जा रहा हैं, लेकिन इससे अन्य नुकसान भी हो रहे हैं. कमजोर इम्यून सिस्टम में फंगस को शरीर में पनपने के लिए जगह मिल रही हैं.

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह फंगस कहीं बाहर से नहीं आता, बल्कि हमारे आसपास के वातावरण में पाया जाता है. सामान्य तौर पर फ्रिज और सीलन वाले स्थान पर यह फंगस होता हैं. इन्हीं में से किसी एक जरिए से वह शरीर में पहुंच जाता है, जहां वह नुकसान पहुंचाने लगता हैं.

हाइजीन से घट सकता है फंगल इंफेक्शन

फंगल इंफेक्शन को शरीर में फैलने से रोकने के लिए कुछ बेहद सस्ती दवाएं भी इलाज के दौरान दी जाती हैं. साफ-सफाई रखने पर फंगल इंफेक्शन नहीं होता हैं, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि इलाज के दौरान कुछ लापरवाही हो रही हैं, जिसकी वजह से फंगल इंफेक्शन बढ़ रहा हैं.

डॉ. संजय गुप्ता, नेफ्रोलॉजिस्ट

क्या है ब्लैक फंगस

यह एक ऐसा फंगस इंफेक्शन है जिसे कोरोना वायरस ट्रिगर करता है. कोविड-19 टास्क फोर्स के एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये उन लोगों में आसानी से फैल जाता है, जो पहले से किसी ना किसी बीमारी से जूझ रहे हैं और जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है. इन लोगों में इंफेक्शन से लड़ने की क्षमता कम होती है.

कहां करता है अटैक

म्यूकर माइकोसिस (Mucormycosis) या ब्लैक फंगस, चेहरे, नाक, आंख और दिमाग में फैलकर उसको नष्ट कर देती है. इससे आंख सहित चेहरे का बड़ा हिस्‍सा नष्ट हो जाता है और जान जाने का भी खतरा रहता है. डॉक्टरों के मुताबिक अगर इसका सही समय पर इलाज न किया जाए तो आंखों की रोशनी जाने के अलावा मरीज की मौत भी हो सकती है. यह इन्फेक्शन साइनस से होते हुए आंखों को अपनी चपेट में लेता है. इसके बाद शरीर में फैल जाता है. इसे रोकने के लिए डॉक्टर को सर्जरी करके इन्फेक्टेड आंख या जबड़े का ऊपरी एक हिस्सा तक निकालना पड़ता है.

सामान्य तौर पर पाया जाता है व्हाइट फंगस

फंगल इन्फेक्शन पुरानी बीमारी हैं. जिस व्हाइट फंगस को लेकर चर्चा हो रही है, वह बहुत सामान्य से फंगस हैं. जो बालों में, नाखून में या शरीर की मृत कोशिकाओं पर पैदा हो जाते हैं.

जबलपुर में मिला व्हाइट फंगस का मामला

प्रदेश में इस संक्रमण से बचने के लिए सरकार कई इंतजाम कर रही है. जैसे ही स्वास्थ्य विभाग इससे निपटने के लिए तैयार हुआ, तो मध्यप्रदेश में व्हाइट फंगस (white fungus) के मामले भी आने शुरू हो गए. जबलपुर में व्हाइट फंगस का केस सामने आया है, जो प्रदेश का पहला मामला है.

जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में 5 दिन पहले ब्लैक फंगस की शिकायत पर भर्ती हुए एक 55 वर्षीय बुजुर्ग में ऑपरेशन के दौरान व्हाइट फंगस (white fungus) होने की पुष्टि हुई है. डॉक्टरों के मुताबिक, मरीज में व्हाइट फंगस का जो वेरिएंट मिला है, वह ब्लैक फंगस के मुकाबले कम खतरनाक है. यह नाक में होने वाला फंगस है, जिसे ऑपरेशन के माध्यम से अलग करने के बाद केवल दवाइयों से ही ठीक किया जा सकता है.

डॉ. संजय गुप्ता, नेफ्रोलॉजिस्ट

कोरोना जैसे ही हैं व्हाइट फंगस के लक्षण

  • व्हाइट फंगस से फेफड़ों के संक्रमण के लक्षण HRCT में कोरोना जैसे ही दिखते हैं.
  • ऐसे मरीजों में रैपिड एंटीजन और RT-PCR टेस्ट निगेटिव होता है.
  • कोरोना जैसे लक्षणों में त्वचा पर धब्बे दिखने पर रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट और फंगस के लिए बलगम का कल्चर कराना चाहिए.
  • ऐसे कोरोना मरीज जो ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं उनके फेफड़ों को यह संक्रमित कर सकता है.
  • व्हाइट फंगस के संक्रमण की वही वजह है जो ब्लैक फंगस की है, जिनमें इम्यूनिटी कमी, मरीज का डायबिटिक होना, कैंसर के मरीज भी इसके शिकार हो सकते हैं.

बच्चों में भी हो सकता है संक्रमण

डायपर कैंडिडोसिस के रूप में यह संक्रमण छोटे बच्चों में भी हो सकता है. जिसके लक्षणों के तौर पर स्किन पर क्रीम कलर के सफेद धब्बे दिखाई देते हैं. छोटे बच्चों में यह मुंह को संक्रमित करता है जबकि महिलाओं में यह ल्यूकोरिया होना इसका मुख्य कारण है.

कैसे करें बचाव

  • जो मरीज ऑक्सीजन या वेंटिलेटर पर हैं उनके ऑक्सीजन या वेंटिलेटर उपकरण वायरस फ्री होना चाहिए.
  • ऑक्सीजन सिलेंडर ह्यूमिडिफायर में स्ट्रेलाइज वाटर का प्रयोग करना चाहिए
  • मरीजों के फेंफड़ों में जाने वाली ऑक्सीजन फंगस फ्री होनी चाहिए.
  • मरीजों का रैपिड एंटीजन और RT-PCR टेस्ट निगेटिव हो और जिनके HRCT में कोरोना जैसे लक्षण हों तो उनका तुरंत रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट कराना चाहिए.
  • इसके अलावा मरीजों के बलगम के फंगस और कल्चर की जांच भी कराना चाहिए.
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