नई दिल्ली : ग्रेविटी बैटरी के नाम से जाना जाने वाला यह एनर्जी स्टोरेज डिवाइस लंबे समय में स्थायी ऊर्जा उत्पन्न करता है. यह अक्षय ऊर्जा (renewable energy ) सोर्स से जुड़ी चुनौतियों को खत्म करता है. एनर्जी स्टोरेज डिवाइस लिथियम-आयन बैटरी या हानिकारक केमिकल के बिना काम करता है. यह ग्रेविटेशनल पोटेंशियल एनर्जी उत्पन्न करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा का उपयोग करता है, जिसे बाद में जनरेटर के माध्यम से बिजली में बदला जाता है. भारत भी इस तकनीक पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो ईको फ्रेंडली पावर जेनरेशन मैथड की व्यापक उपलब्धता का मार्ग प्रशस्त करती है. एनटीपीसी ने हाल ही में स्विस-अमेरिकी कंपनी एनर्जी वॉल्ट होल्डिंग्स इंक के साथ एक एमओयू पर सिग्नेचर किया है. इस समझौते के तहत क्लीन एनर्जी के लिए केंद्र स्थापित करने की संभावना तलाशी जाएगी.
पेंडुलम घड़ी से शुरुआत (Starting from the pendulum clock)
उपकरणों में गुरुत्वाकर्षण बल यानी ग्रैविटेशनल फोर्स का प्रयोग अनादि काल से होता आ रहा है. 1656 में क्रिस्टियान ह्यूजेंस द्वारा आविष्कार की गई पेंडुलम घड़ी इसका उदाहरण है. पेंडुलम घड़ी को मैकेनिकल मूवमेंट भी ग्रैविटी से ही मिलता है. ग्रैविटी बैटरी उसी सिस्टम का एडवांस रूप है, जो ग्रैविटी की शक्ति को बिजली में बदल सकती हैं.
ग्रैविटी स्टोरेज क्या है?( What is gravity storage?) : ग्रैविटी बैटरी के काम करने का मूल सिद्धांत ग्रैविटी फोर्स का उपयोग कर बिजली का स्टोरेज करना है. इसके लिए किसी बैटरी की आवश्यकता नहीं होती है. शुरूआत में इस प्रक्रिया को पानी की मदद से किया गया था, जिसे ग्रैविटी बेस्ट पंप स्टोरेज हाइड्रोपावर (पीएसएच) सिस्टम कहा जाता है. इसे पहली बार 1907 में स्विट्ज़रलैंड में विकसित किया गया था, आज इसे दुनिया में सबसे बड़े ग्रिड पावर स्टोरेज सिस्टम के रूप में मान्यता मिली है. साइंटिस्ट पानी की आवश्यकता के बिना गुरुत्वाकर्षण का उपयोग कर द्रव्यमान को ज्यादा या कम करके बिजली को स्टोर करने का एक तरीका लेकर आए हैं.
क्या हैं फायदे (Benefits aplenty) : लिथियम-आयन बैटरी में ऐसे रसायन होते हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं. इसके अलावा, उन्हें रीसाइकल करना भी मुश्किल है. एनर्जी वॉल्ट के क्लीन एनर्जी सिस्टम के साथ ऐसा नहीं हैं. कंक्रीट ब्लॉक राख और अन्य स्थानीय रूप से उपलब्ध कचरे में पॉलिमर डालकर बनाए जाते हैं. ग्रैविटी स्टोरेज सिस्टम के रखरखाव की लागत लिथियम बैटरी सिस्टम की लगभग आधी है. बैटरी स्टोरेज सिस्टम में सेल वक्त के साथ खराब भी हो जाते हैं. उन्हें समय-समय पर बदलने की जरूरत है, जबकि एनर्जी वॉल्ट की ओर से उपयोग किए जाने वाले बुनियादी ढांचे में कोई ऐसा हिस्सा नहीं है, जिसे बार-बार बदलने की आवश्यकता हो.
ग्रैविटी स्टोरेज सिस्टम पर खराब मौसम का फर्क नहीं पड़ता है और यह हाई टेंपरेंचर का भी सामना कर सकता है. इससे लिथियम बैटरी जैसी रासायनिक आग का खतरा नहीं होता है. इसकी दक्षता लगभग 90 प्रतिशत है, इसका मतलब है कि इस प्रक्रिया में केवल 10 प्रतिशत तक ऊर्जा नष्ट होती है. पंप स्टोरेज हाइड्रो प्लांट की दक्षता 70 प्रतिशत है.
स्टोरेज हाइड्रोपावर (PSH) सिस्टम में ग्रैविटी स्टोरेज मैकेनिज्म का उपयोग कई जगहों पर हो रहा है. इस सिस्टम के लिए दो जलाशयों की आवश्यकता होती है. उनमें से एक वाटर बैराज के ऊपर और दूसरा सबसे नीचे होना चाहिए. बिजली पैदा करने वाले पंप और टर्बाइन को बीच में रखा जाता है. यह सिस्टम पूरी तरह से बैटरी की तरह काम करता है.
कैसे काम करता है स्टोरेज हाइड्रोपावर : जब ग्रिड में अतिरिक्त बिजली होती है, तो इसका उपयोग निचले जलाशय से ऊपरी जलाशय में पानी पंप करने के लिए किया जाता है. बिजली को ऊपरी जलाशय में पंप किए गए पानी के रूप में जमा किया जाता है. जब बिजली की जरूरत होती है तो यह पानी निचले जलाशय में छोड़ा जाता है, ग्रैविटी यानी गुरुत्वाकर्षण की सहायता से पानी नीचे की ओर बहता है और टर्बाइनों को घुमाता है. इस तरह बिजली पैदा होती है. यह बैटरी को चार्ज और डिस्चार्ज करने की प्रक्रिया के समान है.
ग्रैविटी बैटरी क्यों? (Why gravity batteries?): कोयले से बिजली प्रोडक्शन के कारण पर्यावरण में हानिकारक कार्बन उत्सर्जन हो रहा है. कार्बन उत्सर्जन को कम किए बिना, 2050 तक नेट जीरो तक पहुंचना मुश्किल होगा. अभी भारत समेत पूरी दुनिया में बिजली की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है. इस मांग को पूरी करने के लिए देश पवन और सौर ऊर्जा जैसे रिन्यूअल एनर्जी सोर्स की ओर बढ़ रहे हैं. हालांकि, पर्याप्त हवा या धूप नहीं होने पर इसमें बिजली आपूर्ति में उतार-चढ़ाव होता है. बेहतर पावर स्टोरेज सिस्टम की मदद से इस प्रॉब्लम को दूर किया जा सकता है. ऐसा नहीं किया तो हमें जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रहना पड़ सकता है.
मौजूदा फ्यूल स्टोरेज सिस्टम बहुत महंगा है. टेस्ला ने ऑस्ट्रेलिया में 100 मेगावाट की बैटरी आधारित स्टोरोज सुविधा बनाने के लिए 6.6 अरब डॉलर खर्च किए हैं. दुनिया की सबसे बड़ी हाइड्रो स्टोरेज फैसिलिटी वर्जीनिया में बाथ काउंटी है, जहां पंप स्टोरेज के निर्माण में 160 अरब डॉलर की लागत आई है. हालांकि, एनर्जी वॉल्ट के ग्रैविटी स्टोरेज यूनिट के निर्माण में केवल $ 70 से $ 80 मिलियन का खर्च आया, इसलिए एक्सपर्ट इसे फ्यूल स्टोरेज के लिए बेहतर मानते हैं. एक्सपर्ट का मानना है कि के ग्रैविटी स्टोरेज यूनिट सस्ती है और यह लॉन्ग टर्म पावर स्टोरेज की सुविधा प्रदान करती है.
स्टोरेज हाइड्रोपावर (PSH) में हैं कुछ कमियां : एनर्जी फर्म ग्रैविटी पावर और न्यू एनर्जी लेट्स गो ने भी ग्रैविटी का उपयोग कर बिजली स्टोर करने की प्लानिंग की है. दोनों तरीकों में वजन और पानी का कॉम्बिनेशन शामिल है. मूवेवल पिस्टन पर चलने वाले रॉक मॉस के जरिये पानी को पंप किया जाता है. फिर बिजली बनाने के लिए, पानी को टरबाइन और जनरेटर में भेजा जाता है. स्टोरेज हाइड्रोपावर (PSH) सिस्टम में एक दिक्कत भी है. इसके लिए दो बड़े जलाशयों की आवश्यकता होती है जिन्हें अलग-अलग ऊंचाई पर बनाना होता है. सीमित भौगोलिक स्थितियों के मद्देनजर इसे हर जगह बनाना मुश्किल है.
एनर्जी वॉल्ट की ओर से विकसित इस सिस्टम में बिजली को स्टोर करने के लिए पानी के बजाय. भारी कंक्रीट ब्लॉकों को आवश्यकतानुसार ऊपर और नीचे ले जाया जाता है. इसके लिए छह हाथों वाली एक बड़ी क्रेन प्रणाली विकसित की गई थी. एनर्जी वॉल्ट ने स्विट्जरलैंड के टिसिनो में एक पायलट सेंटर स्थापित किया है, जहां 75 मीटर लंबी क्रेन लगाई गई है. क्रेन में लगी मोटर विंड फार्म से एकत्रित बिजली से चलती है. ये क्रेन कंक्रीट ब्लॉक के जरिये बिजली पैदा करने में मदद करती है. इस सिस्टम में हर घंटे 35 मेगावाट बिजली का भंडारण किया जा सकता है, जो लगभग एक हजार घरों को बिजली देने के लिए पर्याप्त है. एनर्जी वॉल्ट के इस आविष्कार ने भारत सहित कई देशों का ध्यान आकर्षित किया है. ग्रेविट्रीसिटी (यूके), न्यू एनर्जी लेट्स गो (जर्मनी) और ग्रेविटी पावर (यूएस) भी ग्रैविटी बैटरी अप्रोच का उपयोग कर टेक्नॉलजी विकसित कर रहे हैं.
पढ़ें : केंद्र की राज्यों से अपील, अक्षय ऊर्जा को दें बढ़ावा, कार्बन उत्सर्जन में करें कटौती