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उपभोक्ता अदालतें किसी भी मामले को एक महीने से ज्यादा स्थगित न करें: केंद्र सरकार

लंबे समय तक उपभोक्ता अदालतों में मामला लंबित न रहे, इसिलए केंद्र सरकार ने सभी उपभोक्ता अदालतों (जिला, राज्य, राष्ट्रीय) को पत्र लिखा है. सरकार ने कहा है कि किसी भी मामले को किसी भी स्तर पर एक महीने से अधिक स्थगित न किया जाए. पत्र में लिखा गया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत प्रदान की गई समय-सीमा का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक महीने से अधिक के लिए स्थगन न दें.

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Published : May 20, 2022, 10:55 PM IST

नई दिल्ली : उपभोक्ता अदालतों में लंबे समय तक मामलों के लंबित रहने को लेकर केंद्र सरकार ने शुक्रवार को बड़ा फैसला किया. केंद्र सरकार ने सभी उपभोक्ता अदालतों से, जिला-राज्य-राष्ट्रीय, किसी भी उपभोक्ता मामलों को एक महीने से अधिक समय तक के लिए स्थगित नहीं करने को कहा है.

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने राष्ट्रीय, राज्य और जिला आयोगों के रजिस्ट्रारों और अध्यक्षों को लिखा है कि वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत प्रदान की गई समय-सीमा का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक महीने से अधिक के लिए स्थगन न दें.

सरकार ने कहा कि यदि पार्टियों द्वारा मांगे गए स्थगन के कारण शिकायतों के समाधान में दो महीने से अधिक की देरी होती है, तो आयोग उन पर जुर्माना लगाने पर विचार कर सकता है. उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने अपने पत्र में कहा कि उपभोक्ता मंचों को उपभोक्ताओं को सस्ता, परेशानी मुक्त और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना चाहिए.

सिंह ने कहा कि बार-बार और लंबे समय तक स्थगन न केवल एक उपभोक्ता को सुनने और उसके निवारण के अधिकार से वंचित करता है, बल्कि उस अधिनियम की भावना को भी छीन लेता है जिसका विधायिका ने इरादा किया था.

उन्होंने अपने पत्र में कहा, "उपभोक्ता आयोगों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया जाता है कि किसी भी परिस्थिति में लंबी अवधि के लिए स्थगन प्रदान नहीं किया जाता है. इसके अलावा, किसी भी पक्ष द्वारा स्थगन के दो से अधिक अनुरोधों के मामले में, उपभोक्ता आयोग, निवारक उपाय के रूप में, पार्टियों पर जुर्माना लगा सकता है.'

आपको बता दें कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम अधिनियम की धारा 38(7) के तहत उपभोक्ता शिकायतों को दर्ज करने का प्रावधान करता है. कानून के प्रावधानों के अनुसार, प्रत्येक उपभोक्ता शिकायत का यथाशीघ्र निपटान किया जाना आवश्यक है और किसी भी मामले में फोरम को नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 3 महीने की अवधि के भीतर शिकायत का फैसला करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए.

यह प्रावधान उन उपभोक्ता मामलों पर लागू होता है जहां शिकायत के लिए वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती है और जरूरत हुई भी तो पांच महीने के भीतर वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण संभव हो जाए.

अधिनियम कानून में यह भी कहा गया है कि जब तक पर्याप्त कारण नहीं दिखाया जाता है और स्थगन के कारणों को लिखित रूप में दर्ज नहीं किया जाता है, तब तक उपभोक्ता आयोगों द्वारा कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा. कानून के तहत, आयोगों को पार्टियों पर जुर्माना लगाने का भी अधिकार है यदि वे मामले में देरी करते हैं.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 38(2)(ए) के तहत, आयोग स्वीकार की गई शिकायत की एक प्रति विरोधी पक्ष को भेजता है और उसे 30 दिनों की अवधि के भीतर मामले का अपना पक्ष देने का निर्देश देता है. कुछ विशेष मामलों में आयोग 15 दिनों का अतिरिक्त समय दे सकता है.

अधिनियम की धारा 38(3)(बी)(ii) में प्रावधान है कि यदि विरोधी पक्ष कोई कार्रवाई करने में विफल रहता है या कानूनी रूप से अनिवार्य समय सीमा के भीतर अपने मामले का प्रतिनिधित्व करने में विफल रहता है, तो आयोग साक्ष्य के आधार पर एक पक्षीय निर्णय दे सकता है.

नई दिल्ली : उपभोक्ता अदालतों में लंबे समय तक मामलों के लंबित रहने को लेकर केंद्र सरकार ने शुक्रवार को बड़ा फैसला किया. केंद्र सरकार ने सभी उपभोक्ता अदालतों से, जिला-राज्य-राष्ट्रीय, किसी भी उपभोक्ता मामलों को एक महीने से अधिक समय तक के लिए स्थगित नहीं करने को कहा है.

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने राष्ट्रीय, राज्य और जिला आयोगों के रजिस्ट्रारों और अध्यक्षों को लिखा है कि वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत प्रदान की गई समय-सीमा का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक महीने से अधिक के लिए स्थगन न दें.

सरकार ने कहा कि यदि पार्टियों द्वारा मांगे गए स्थगन के कारण शिकायतों के समाधान में दो महीने से अधिक की देरी होती है, तो आयोग उन पर जुर्माना लगाने पर विचार कर सकता है. उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने अपने पत्र में कहा कि उपभोक्ता मंचों को उपभोक्ताओं को सस्ता, परेशानी मुक्त और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना चाहिए.

सिंह ने कहा कि बार-बार और लंबे समय तक स्थगन न केवल एक उपभोक्ता को सुनने और उसके निवारण के अधिकार से वंचित करता है, बल्कि उस अधिनियम की भावना को भी छीन लेता है जिसका विधायिका ने इरादा किया था.

उन्होंने अपने पत्र में कहा, "उपभोक्ता आयोगों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया जाता है कि किसी भी परिस्थिति में लंबी अवधि के लिए स्थगन प्रदान नहीं किया जाता है. इसके अलावा, किसी भी पक्ष द्वारा स्थगन के दो से अधिक अनुरोधों के मामले में, उपभोक्ता आयोग, निवारक उपाय के रूप में, पार्टियों पर जुर्माना लगा सकता है.'

आपको बता दें कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम अधिनियम की धारा 38(7) के तहत उपभोक्ता शिकायतों को दर्ज करने का प्रावधान करता है. कानून के प्रावधानों के अनुसार, प्रत्येक उपभोक्ता शिकायत का यथाशीघ्र निपटान किया जाना आवश्यक है और किसी भी मामले में फोरम को नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 3 महीने की अवधि के भीतर शिकायत का फैसला करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए.

यह प्रावधान उन उपभोक्ता मामलों पर लागू होता है जहां शिकायत के लिए वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती है और जरूरत हुई भी तो पांच महीने के भीतर वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण संभव हो जाए.

अधिनियम कानून में यह भी कहा गया है कि जब तक पर्याप्त कारण नहीं दिखाया जाता है और स्थगन के कारणों को लिखित रूप में दर्ज नहीं किया जाता है, तब तक उपभोक्ता आयोगों द्वारा कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा. कानून के तहत, आयोगों को पार्टियों पर जुर्माना लगाने का भी अधिकार है यदि वे मामले में देरी करते हैं.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 38(2)(ए) के तहत, आयोग स्वीकार की गई शिकायत की एक प्रति विरोधी पक्ष को भेजता है और उसे 30 दिनों की अवधि के भीतर मामले का अपना पक्ष देने का निर्देश देता है. कुछ विशेष मामलों में आयोग 15 दिनों का अतिरिक्त समय दे सकता है.

अधिनियम की धारा 38(3)(बी)(ii) में प्रावधान है कि यदि विरोधी पक्ष कोई कार्रवाई करने में विफल रहता है या कानूनी रूप से अनिवार्य समय सीमा के भीतर अपने मामले का प्रतिनिधित्व करने में विफल रहता है, तो आयोग साक्ष्य के आधार पर एक पक्षीय निर्णय दे सकता है.

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