अजमेर. बीसलपुर परियोजना में इंजीनियर हैं रामनिवास खाती. दुर्लभ वस्तुओं के शौक ने उन्हें विशेष बना दिया है. खाती के पास इतनी दुर्लभ वस्तुओं का खजाना है कि देखते देखते पूरा दिन बीत जाए. इंजीनियर रामनिवास खाती ने अपने दुर्लभ वस्तुओं के खजाने की कुछ बानगी प्रदर्शनी के रूप में एमडीएस यूनिवर्सिटी के सत्यार्थ सभागार परिसर क्षेत्र प्रदर्शित की. प्रदर्शनी का उद्घाटन राज्यपाल कलराज मिश्र ने किया और करीब से खाती के खजाने को भी देखा.
दरअसल, बुधवार को एमडीएस यूनिवर्सिटी में 10 वा दीक्षांत समारोह मनाया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र थे. दीक्षांत समारोह से पहले राज्यपाल कलराज मिश्र ने एमडीएस यूनिवर्सिटी में दुर्लभ वस्तुओं की प्रदर्शनी का उद्घाटन कर अवलोकन किया. दुर्लभ वस्तुओं की यह प्रदर्शनी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गई. लोगों ने यहां साढ़े तीन सौ वर्ष पुराना अखबार देखा तो विश्व की सबसे छोटी बाइबल, भागवत गीता भी देखी. 2600 वर्ष पुराना सिक्का और सबसे बड़े नोट को देखना भी लोगों के लिए खास अनुभव रहा. इन्हीं में रामनिवास खाती दुर्लभ वस्तुओं की प्रदर्शनी भी थी. जिसे देख लोग दंग रह गए.
कई तरह के केलकुलेटर के मालिक- इंजीनियर रामनिवास खाती ने बताया कि दुर्लभ वस्तुओं की प्रदर्शनियां लगती रहती हैं. जिसमें डाक टिकट और बैंक के नोट प्रदर्शित होते हैं. पहली बार ही शायद ऐसा हुआ है कि कुछ हटके प्रदर्शनी लगाई गई है. इनमें मेरे कई केलकुलेटर्स हैं. दावा करते हैं जो कैलकुलेटर्स का खजाना उनके पास है वो किसी और के पास नहीं है. कहते हैं कि विकास यात्रा कहते हैं उनके कैलकुलेटर्स. इसमें 550 वर्ष पुराना अबेकस भी शामिल है.
प्रथम विश्व युद्ध का अनमोल खजाना!- खाती बताते हैं कि नोटगेल्ड प्रदर्शनी का एक दूसरा विषय भी लिया गया. ये ऐसा टॉपिक है जिसके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं. इस गेल्ड की पूरी कथा सुनाते हैं. कहते हैं- प्रथम विश्व युद्ध में जब मेटल युद्ध में काम आने लग गया तब मेटल की भारी कमी हो गई थी. सिक्के बनना बंद हो गए. तब सिक्कों की वैल्यू बढ़ गई. उस दौर में नोट भी चला करते थे लेकिन सिक्के का महत्व ज्यादा था. तब प्रभावित देशों ने अपनी म्युनिसिपालिटी को आदेश दिए कि वो कागज के सिक्के या नोट छाप ले.
प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बीच के समय में यह नोट गेल्ड चला करते थे. नोट गेल्ड ऑस्ट्रिया और जर्मनी में चले थे. उन्होंने बताया कि नोट गेल्ड का काफी बड़ा संग्रह उनके पास है. खाती ने बताया कि ऑस्ट्रिया में उनके कई मित्र हैं उनको भी नोट गेल्ड के बारे में जानकारी नहीं है. उन्हें भी इसके बारे में समझाना पड़ता है. वे कहते हैं एक बार किसी व्यक्ति के बारे में अखबार में छपा था कि उसके पास 10 से 15 नोट गेल्ड है. लेकिन मेरे पास 2500 से 3000 तक नोट गेल्ड है. ऑस्ट्रिया में 2 हजार 800 म्युनिसिपालिटी है उनमें से 800 के नोट गेल्ड मेरे पास हैं.
स्पेशल डाक टिकट भी इनके पास- खाती बताते हैं कि 40 से 50 वर्ष पहले से वो डाक टिकटों का संग्रह कर रहे हैं. इसकी भी Interesting कहानी है इनके पास. कहते हैं, डाक टिकटों के बारे में ज्यादातर लोग यही जानते हैं कि आयताकार एक कागज टुकड़ा होता है. लंबे समय से डाक टिकट का संग्रह तो मैं कर रहा था लेकिन मुझे भी 6 वर्ष पहले ही जानकारी हुई कि कागज के अलावा दूसरी चीजों में भी स्टाम्प होता है. उसके बाद मैने अपनी कोशिशें जारी रखी और 150 तरह के डाक टिकट का संग्रह किया. पता चला कांच पर डाक टिकट, फोरसिलिंग पर डाक टिकट, लकड़ी पर डाक टिकट, कपड़े और रबड़ पर डाक टिकट, सोने की परत और एल्युमीनियम फॉयल, चांदी और स्टील की परत के अलावा कई चीजों से डाक टिकट बनता है. इन तीन दुर्लभ वस्तुओं की प्रदर्शनी पहले कहीं भी नहीं लगी है. पहली बार अजमेर में यह प्रदर्शनी लगाई गई है.
दुनिया की सबसे छोटी बाइबल भी- दुलर्भ वस्तुओं का संग्रह करने वाले इंजीनियर बताते हैं कि प्रदर्शनी में दुनिया की सबसे छोटी बाइबल भी शामिल है. 3गुना 3 एमएम साइज की बाइबल को खुली आंखों से नही देखा जा सकता. इसके लिए मैग्नीफाइंग ग्लास की मदद लेनी पड़ती है. सबसे छोटी बाइबल 6 भाषाओं में प्रिंट है. उनके संग्रह में सबसे छोटा सिक्का भी शामिल है. यह सिक्का साल 1382 का है. साइज 2 एमएम है और वजन 40 मिलीग्राम है. संग्रह में एक छोटी गीता भी है. जिसका साइज 32गुना 25 एमएम है. इसके अलावा प्रदर्शनी में और भी यूनिक आइटम शामिल हैं. साथ ही वो खत भी हैं जो विदेशों से मित्रों ने भेजे हैं. इनकी संख्या 2500 के लगभग है.
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पहले फ्रेंडशिप बुक अब फेसबुक- रामनिवास खाती ने बताया कि फ्रेंडशिप बुक के माध्यम से पहले दोस्त बनाए थे उस फ्रेंडशिप बुक के नमूने भी संग्रह में शामिल हैं. आज कल लोग फ्रेंडशिप बुक के बारे में नही जानते हैं. इंटरनेट का जमाना है. फ्रेंडशिप बुक के माध्यम से कैसे मित्र बनाए जाते थे उसकी सारी डिटेल दी गई है. वे 2600 वर्ष पुराने प्राचीन भारत के सिक्के के बारे में भी बताते हैं. इसके अलावा अनसर्कुलेटड सिक्के और नोट भी कलेक्शन को चार चांद लगाते हैं. सरकार कि ओर से समय समय पर जारी किए जाने वाले सिक्के भी हैं, 1000 हजार का सिक्का और 100 रुपये का पुराना बड़ा नोट भी इसमें शामिल है. भारत मे करंसी के रूप में पहले हुंडी चला करती थी. वे बताते हैं कि 1896 में हुंडी की व्यवस्था हुआ करती थी. उनके पास ऐसी कई हुंडियों का कलेक्शन भी है.