लखनऊ : पूर्वोत्तर के राज्यों में हिंदी भाषा के साथ भारतीय संस्कृति और सभ्यता को मजबूती और बढ़ावा देने का काम पिछले 38 वर्षों से गोरखपुर की धरती से किया जा रहा है. यहां के 'श्रीराम वनवासी कल्याण आश्रम' में पूर्वोत्तर के राज्यों के अनुसूचित जनजाति के उन बच्चों में हिंदी, संस्कृति की शिक्षा के साथ विज्ञान और भारतीय परंपरा का ज्ञान देने का काम निशुल्क किया जा रहा है, जो इससे पूरी तरह वंचित और हासिल करने में असमर्थ थे.
इसका परिणाम है कि यहां से शिक्षा लेने वाले बच्चे शिक्षक और डॉक्टर बनकर देश की सेवा में तो लगे ही हैं, अपने समाज के बीच में भी जाकर शिक्षा की अनूठी अलख जगा रहे हैं. अरुणाचल, नागालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम जैसे राज्यों में हिंदी के चयनित पिछले 38 वर्षों में अधिकतर शिक्षक इसी वनवासी कल्याण आश्रम के हैं. यहां आज भी सैकड़ों बच्चे समर्पित भाव के साथ शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. इनके देखभाल में लगे हुए लोग भी इन्हें अपने परिवार के सदस्य जैसा प्रेम देते हैं, जिससे यहां कभी छात्रों की कमी नहीं हुई.
गोरक्षपीठ के सहयोग से संघ की यह मुहिम लाई रंग
वनवासी कल्याण आश्रम के सचिव ध्रुव दास मोदी कहते हैं कि पूर्वोत्तर के राज्यों में कन्वर्जन होने की बड़ी समस्या 90 के दशक में संघ ने महसूस की. इसको दूर करने के लिए पूर्वोत्तर के उन सात प्रदेशों, जिन्हें सेवन सिस्टर्स कहा जाता है, के आदिवासी और अशिक्षित समुदाय के लोगों को शिक्षा से जोड़ने की पहल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शुरू की. इसके परिणाम स्वरूप गोरखपुर में इस केंद्र की स्थापना ब्रह्मलीन महंत वैद्यनाथ की देख-रेख में 5 विद्यार्थियों से शुरू हुई. शुरुआती दिनों में गोरखनाथ मंदिर की व्यवस्था में रहते-खाते और सरस्वती शिशु मंदिर, सरस्वती विद्या मंदिर में शिक्षा ग्रहण करते थे. इस अभियान की ओर संघ तेजी के साथ बढ़ रहा था.
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पूर्वोत्तर के राज्यों के बच्चे भी यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए आने को आतुर थे. इसको देखते हुए एक आश्रम की स्थापना बेहद जरूरी हो गई थी. ऐसे में शहर के प्रतिष्ठित समाजसेवी परमेश्वर ने मौजूदा आश्रम की जमीन को मुफ्त में वनवासी कल्याण आश्रम को दान किया. जहां से यह अभियान आज भी निरंतर रूप से जारी है. करीब 450 विद्यार्थी यहां से शिक्षा ग्रहण करके विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बना रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनकी इस शिक्षा व्यवस्था से जो बच्चे तैयार हुए वह आज के समय में अपने प्रदेशों में शिक्षक की भूमिका निभा रहे हैं. साथ ही सेना और चिकित्सीय पेशे में भी वह अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं.
अखंड भारत के नक्शे और संस्कृति से भी रूबरू होते हैं छात्र
मौजूदा समय में इस आश्रम में जो बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, उन्हें रहने-खाने, पढ़ने-लिखने की पूरी तरह से मुक्त सुविधा उपलब्ध कराई जाती है. यहां तक की शुद्धता का भी विशेष ध्यान रखा जाता है, जिसमें पानी से लेकर भोजन तक सब उपलब्ध होता है. हॉस्टल में रहने वाले पांच-पांच बच्चों का समूह भोजन बनाने में प्रशिक्षित होता है और खुद से भोजन तैयार करता है. इस छात्रावास में संघ की परिकल्पना के स्वरूप 'अखंड भारत' का नक्शा भी छात्रों के सामने होता है. साथ ही भारतीय संस्कृति का दर्शन भी इन्हें कराया जाता है.
यही वजह है कि जो बच्चे आज शिक्षित और प्रशिक्षित हो रहे हैं, उनका कहना है कि जो उन्हें कभी नहीं हासिल हो सकता था, वह यहां आकर पूरा हुआ है. उनका सपना है कि वह यहां से अच्छी शिक्षा लेकर अपने घरों को लौटें तो अपने भाई-बहन, समाज को इससे जोड़ने का प्रयास करें. उन्हें हिंदी, संस्कृत भाषा का भी ज्ञान कराएं. इन्हें 12 दिन तक शिक्षा गोरखपुर में मिलती है. बीएचयू या अन्य जगहों से शिक्षा लेने के दौरान भी यह आश्रम छात्रों की मदद करता है.