नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorates) (ईडी) ने केरल के सोने की तस्करी मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दायर एक ताजा हलफनामे में कहा है कि मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था, लेकिन जब जांच आगे बढ़ी और अपने ही तत्कालीन प्रधान सचिव की भूमिका का पता चला तो राज्य एजेंसी के खिलाफ हो गया. हलफनामे में कहा गया है कि भले ही केरल के मुख्यमंत्री द्वारा प्रधानमंत्री को एक पत्र भेजा गया था, लेकिन जब जांच आगे बढ़ी और उनके अपने तत्कालीन प्रधान सचिव की भूमिका का पता चला, तो राज्य का तंत्र ईडी के खिलाफ हो गया और आरोपियों को प्रभावित कर झूठे मामले दर्ज किये गये. जांच तथा मुकदमे को पटरी से उतारने के प्रयास किये गये.
ईडी ने कहा कि प्रमुख आरोपियों में से एक, जो उस समय के प्रधान सचिव, एम. शिवशंकर थे, आज भी केरल सरकार में एक प्रमुख उच्च पद पर बने हुए हैं. अगर केरल में मुकदमा जारी रहता है, तो हाई प्रोफाइल आरोपी आरोपी व्यक्तियों और गवाहों को प्रभावित करेगा और इस तरह मामले की निष्पक्ष और स्वतंत्र सुनवाई को पटरी से उतार देगा. उपरोक्त दो बिंदु स्पष्ट रूप से ईडी के खिलाफ राज्य द्वारा की गई दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई और वास्तविक दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने की दुर्भावनापूर्ण निष्क्रियता की व्याख्या करते हैं.
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ईडी ने कहा कि जमानत पर बाहर आने के बाद, आईएएस अधिकारी शिवशंकर अन्य आरोपियों को प्रभावित कर रहे हैं और जांच अधिकारी और जांच एजेंसी के खिलाफ झूठे सबूत गढ़ने के लिए राज्य मशीनरी का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह तथ्य कि राज्य सरकार ने एक केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा की गई जांच की जांच के लिए एक जांच आयोग का गठन किया है, यह दर्शाता है कि इस मामले में शामिल शक्तिशाली व्यक्ति जो केरल सरकार में उच्च पद पर हैं, वे राज्य मशीनरी का दुरुपयोग कर रहा है.
10 अक्टूबर को, सुप्रीम कोर्ट ने केरल से कर्नाटक में सोने की तस्करी मामले में मुकदमे को स्थानांतरित करने की मांग करने वाली प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर याचिका पर केरल सरकार को नोटिस जारी किया. ईडी ने आरोप लगाया है कि केरल सरकार में आरोपियों और शीर्ष अधिकारियों और पदाधिकारियों के बीच घनिष्ठ संबंध के कारण केरल में मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है.
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सुनवाई के दौरान, ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केरल सरकार द्वारा अपने अभियोगी आवेदन में दिए गए कथनों का उल्लेख किया कि उच्च राजनीतिक पदों पर रहने वालों की संलिप्तता के संबंध में आरोपी स्वप्ना सुरेश के बयानों ने राज्य में दंगे पैदा किए. मेहता ने कहा कि ये बयान यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त हैं कि केरल में स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई असंभव है.
मेहता ने प्रस्तुत किया कि केरल पुलिस ने सबूतों के निर्माण का आरोप लगाते हुए ईडी के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की, जिसे केरल उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया, और केरल पुलिस द्वारा दबाव डालने के संबंध में आरोपी स्वप्ना सुरेश और अन्य आरोपियों द्वारा लगाए गए आरोपों का भी हवाला दिया.
बता दें कि केरल सरकार ( Kerela government) ने सोने की तस्करी के मामले को बेंगलुरु (Bengaluru) स्थानांतरित करने की प्रवर्तन निदेशालय (ED) की याचिका के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का रुख किया है. इस बारे में राज्य का तर्क है कि ईडी ने मामले को स्थानांतरित करने के लिए कोई ठोस कारण नहीं बताया है और यदि बिना किसी कारण के मामले को स्थानांतरित किया जाता है तो राज्य के शासन को बदनाम किया जाएगा.
राज्य ने कहा कि ईडी ने राजनीतिक कार्यालयों को मामले में पक्ष बनाए बिना आरोप लगाया है और ईडी द्वारा पेश किए गए अधिकांश दस्तावेजों, विशेष रूप से आरोपियों के बयानों में मामले का कोई आधार नहीं है. साथ ही राज्य ने कहा है कि उसने किसी भी तरह से जांच में बाधा नहीं डाली है, भले ही यह आरोप लगाया जा रहा है कि राजनेता शामिल हैं. मामले को राज्य में सुलझाया जाना चाहिए और सभी मंत्री सहयोग करेंगे जैसे वे हमेशा केंद्रीय एजेंसियों के साथ करते हैं. मामले की सुनवाई 10 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित के नेतृत्व वाली बेंच द्वारा किए जाने की संभावना है.