गुवाहाटी : असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत को 'गोपनीय हत्या' के आरोप से मुक्त कर दिया गया है. गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने इस संबंध में दायर याचिका को खारिज कर दिया. याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश संदीप की खंडपीठ ने सोमवार को कहा कि याचिकाकर्ता अपने दावों के समर्थन में पर्याप्त सबूत देने में विफल रहे हैं. राज्यसभा सांसद अजीत कुमार भुइयां और अनंत कालिता ने अर्जी दायर की थी. याचिका में तीन सितंबर, 2018 के न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी गई थी.
अपने पहले के आदेश में गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने महंत को उनके दूसरे कार्यकाल (1996 -2001) के दौरान 'गुप्त हत्याओं' का दोषी ठहराने वाले जांच आयोग को अमान्य करार दिया गया था. तब न्यायमूर्ति मिताली ठाकुरिया ने यह भी कहा था कि महंत के खिलाफ लगाए गए आरोप असम के कुछ राजनीतिक और गैर-राजनीतिक दलों द्वारा उनकी सार्वजनिक छवि को खराब करने की साजिश का हिस्सा हैं. सोमवार को आवेदन को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह देखा गया कि याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय के पहले के फैसले के 531 दिनों के बाद वादकालीन आवेदन दायर किया है.
कोर्ट ने कहा कि इतनी देर से आवेदन करने के बाद भी अपीलकर्ता अपनी याचिका के समर्थन में ठोस सबूत पेश करने में विफल रहे. न्यायाधीशों ने कहा कि उन्होंने पाया कि याचिकाकर्ता के 'तीन हलफनामों में असंगत और विरोधाभासी दलीलें' भी हैं. कोर्ट ने कहा कि देरी की माफी के लिए आवेदन वास्तविक दावों और आधारों पर आधारित नहीं है. इसलिए, यह स्वीकृति के योग्य नहीं है. इसके परिणामस्वरूप, याचिका खारिज की जाती है.
फैसले का खंडन 'बिल्कुल झूठा और अस्वीकार्य है क्योंकि फैसले को मीडिया द्वारा बड़े पैमाने पर कवर किया गया था. अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि चूंकि देरी को माफ करने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया है, इसलिए रिट अपील, जिसे अभी क्रमांकित किया जाना है, स्वत: विफल हो जाएगी. सितंबर 2018 में, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने माना था कि 1998-2001 के बीच अज्ञात व्यक्तियों द्वारा उल्फा उग्रवादियों के रिश्तेदारों की हत्याओं की जांच के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा 2005 में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) के एन सैकिया के तहत जांच आयोग का गठन किया गया था. जोकि अमान्य था.
आयोग ने 2007 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. आयोग ने महंत और केंद्रीय गृह मंत्रालय को हत्याओं के लिए दोषी ठहराया था. महंत ने आयोग के गठन की वैधता को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था और अदालत ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया था. कलिता और भुइयां ने आयोग के गठन को अवैध घोषित करने वाले उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए 2021 में उच्च न्यायालय का रुख किया था जिसे सोमवार को खारिज कर दिया गया. महंत ने बाद में कहा कि आखिरकार न्याय की जीत हुई है और अदालत के फैसले ने न्यायपालिका में उनके विश्वास की फिर से पुष्टि की है.
(पीटीआई)