जयपुर (राजस्थान) : वयोवृद्ध गांधीवादी समाजसेवक डॉ. एस एन सुब्बाराव 'भाईजी' का बुधवार सुबह यहां एक अस्पताल में निधन हो गया. वह 92 वर्ष के थे.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सुब्बाराव के निधन पर शोक जताते हुए इसे अपूरणीय क्षति बताया है. पद्मश्री से सम्मानित सुब्बाराव को तबीयत खराब होने पर कुछ दिन पहले यहां एसएमएस (सवाई मानसिंह) अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनका अस्पताल में बुधवार तड़के निधन हो गया.
मुख्यमंत्री गहलोत सुब्बाराव का हालचाल जानने मंगलवार को भी अस्पताल गए थे. उन्होंने सुब्बाराव के निधन पर शोक जताते हुए कहा, 'वयोवृद्ध गांधीवादी, भाईजी डॉ एसएन सुब्बाराव के निधन से मुझे व्यक्तिगत रूप से बेहद आघात पहुंचा है. सत्तर वर्ष से अधिक समय से देश के युवाओं से जुड़कर अपने शिविरों के माध्यम से लगातार उन्हें प्रेरणा देने वाले और देश की पूंजी गांधीवादी विचारक एवं प्रेरक का देहांत एक अपूरणीय क्षति है.'
गहलोत ने कहा कि भाईजी ने युवाओं को जागरुक करने की जीवनपर्यन्त मुहिम चलाई, विदेशों में भी नई पीढ़ी को देश के बारे में बताया और यहां के संस्कार, संस्कृति एवं अनेकता में एकता का सन्देश उन तक पहुंचाने का कार्य किया.
उन्होंने कहा, 'उनके (सुब्बाराव के) शिविरों में जाकर मुझे बेहद सुकून महसूस होता था. उनके प्रेरणागीत और विचार प्रेरणादायी सन्देश देते रहेंगे.'
मुख्यमंत्री ने कहा, 'हम सौभाग्यशाली हैं कि राजस्थान में उनका सानिध्य हमें मिलता रहा. ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उनके सहयोगियों एवं अनुयायियों को इस बेहद कठिन समय में सम्बल दे एवं दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें.'
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उल्लेखनीय है कि सुब्बाराव का जन्म बेंगलुरू में हुआ था.
हाफ पैंट और खादी की शर्ट थी पहचान
पूरे देश-दुनिया में प्रख्यात गांधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में उतारने वाली डॉक्टर सुब्बाराव की पहचान हाफ पैंट और खादी की शर्ट थी. डॉ सुब्बाराव विश्व में गांधीवादी विचारधारा का प्रचार करते थे और यही वजह है कि जब भी वह देश के बाहर जाते थे, तब भी हाफ पेंट और खादी की शर्ट ही पहनते थे. लोग उन्हें 'भाई जी' के नाम से जानते थे. उन्होंने अपने जीवन में गांधीवादी के अलावा किसी को महत्व नहीं दिया है.
672 डकैतों का कराया था आत्मसमर्पण
मध्यप्रदेश के चम्बल को दस्यु मुक्त करने में डॉ. एस एन सुब्बाराब का बड़ा योगदान रहा है. उन्होंने एक साथ 672 डकैतों का समर्पण कराया था. गांधीवादी विचारों को स्थापित करने के लिए उन्होंने 1954 में चंबल में कदम रखा था. शांति के प्रेरक डॉ. सुब्बाराव ने चंबल घाटी में डाकू उन्मूलन के लिए वर्षा काम किया था. वो निरंतर डकैतों के संपर्क में रहे और उनका ह्दय परिवर्तन कराने में सफल रहे. चंबल घाटी शांति मिशन के तहत उन्होंने बड़ी संख्या में डकैतों का एक साथ समपर्ण कराया था. जौरा के गांधी सेवाश्रम में आयोजित सरेंडर कार्यक्रम में उनसे प्रेरित होकर मौहर सिंह और माधौ सिंह जैसे बड़े डकैतों ने हथियार डाल दिये थे.
पद्मश्री सहित कई उपाधियों से हुए सम्मानित
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन के सहभागी रहे प्रख्यात गांधीवादी विचारक डॉक्टर एसएन सुबाराव 'पद्मश्री' से सम्मानित हुए थे. उन्हें 1995 में राष्ट्रीय युवा परियोजना का राष्ट्रीय युवा पुरस्कार मिला. 1995 में ही डी.लिट काशी विद्या पीठ द्वारा सम्मानित उपाधि, भारतीय एकता पुरस्कार, वर्ल्ड पीस मूवमेंट ट्रस्ट इंडिया द्वारा प्रदान शांतिदूत अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. 2002 में विश्व मानवधिकार प्रोत्साहन पुरस्कार, 2003 का राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, 2003 का राष्ट्रीय संप्रदाय सद्भावना पुरस्कार, 2006 जमानालाल बजाज पुरस्कार, 2008 महात्मा गांधी पुरस्कार, अनुवर्त अहिंसा पुरस्कार-2010, साल 2014 में भारतीय साथी संगठन दिल्ली द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, इसी साल कर्नाटक सरकार द्वारा महात्मा गांधी प्रेरणा सेवा पुरस्कार-2014 और राष्ट्रीय सद्भावना एकता पुरस्कार-2014 नागपुर, महाराष्ट्र से सम्मानित किया गया था.