हैदराबाद : गांधी फैमिली भारतीय राजनीति का ऐसा परिवार है, जिसकी धुरी पर भारत की सत्ता करीब 50 साल तक घूमती रही. हालांकि जवाहर लाल नेहरू के जमाने में ही गांधी फैमिली अस्तित्व में आ गई थी, मगर इसका बोलबाला उस समय शुरू हुआ, जब 1959 में कांग्रेस की कमान इंदिरा गांधी ने अपने हाथ में ली. आज गांधी फैमिली में कई बड़े नामों की चर्चा अक्सर होती है, मगर उसमें एक शख्सियत के बारे में न तो राजनीतिज्ञ बात करते हैं और न ही कांग्रेस. वह नाम है फिरोज जहांगीर गांधी, जो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति और राजीव गांधी व संजय गाधी के पिता थे. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और बीजेपी के सांसद वरूण गांधी फिरोज गांधी के पोते हैं.
पारसी थे फिरोज, मगर उनके शव को हिंदू तरीके से जलाया गया था
8 सितंबर 2021 को फिरोज गांधी की 61वीं पुण्यतिथि थी. 1960 में 8 सितंबर को ही फिरोज गांधी का दिल्ली के वेलिंगटन अस्पताल में हार्ट अटैक के बाद निधन हुआ था. इस अस्पताल को अब राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल कहते हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जब फ़िरोज़ को पहली बार दिल का दौरा पड़ा था तभी उन्होंने हिंदू तरीकों से अपने अंतिम संस्कार की ख्वाहिश जाहिर की थी. उन्हें अंतिम संस्कार का पारसी तरीका पसंद नहीं था, जिसमें शव को पक्षियों के भोजन के लिए छोड़ दिया जाता है. हालांकि उनकी मौत के बाद इंदिरा गांधी ने यह सुनिश्चित कराया था कि पारसी रस्मों का भी पालन किया जाए. उनके 16 साल के बेटे राजीव गांधी ने निगमबोध घाट पर उनके शव को मुखाग्नि दी थी. फ़िरोज़ गांधी के अस्थि कलश को इलाहाबाद ले जाया गया था. उसका एक भाग संगम में प्रवाहित कर दिया गया, बचे हुए अवशेष को इलाहाबाद की पारसी क़ब्रगाह में दफ़ना दिया गया.
फिरोज की अनदेखी पर बीजेपी कसती रही है तंज
फिरोज जहांगीर गांधी की कांग्रेस की तरफ से उपेक्षा पर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं. कांग्रेस के विरोधी मानते हैं कि फिरोज गांधी पारसी थे, इसलिए आज का गांधी परिवार राजनीतिक कैलकुलेशन के कारण फिरोज गांधी को तवज्जो नहीं देता. 2019 में इस विषय पर उत्तरप्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने जब राहुल गांधी की आलोचना की थी, तब पारसी मजार की देख-रेख करने वाले बाबूलाल ने कहा था कि राहुल गांधी फिरोज गांधी की मजार पर आखिरी बार 2009 में गए थे. बीजेपी नेता वरुण गांधी आधिकारिक तौर पर फिरोज वरुण गांधी लिखते हैं, मगर उन्हें भी कभी पारसी मजार के पास नहीं देखा गया.
जिसने दिया गांधी सरनेम, उसका रुतबा क्यों कम किया
शादी से पहले इंदिरा गांधी का सरनेम नेहरू था. 26 मार्च 1942 को उन्होंने फिरोज गांधी के साथ इलाहाबाद के आनंद भवन में हिंदू रीति-रिवाज से शादी की थी. स्वीडन के जर्नलिस्ट बर्टिल फाल्क (Bertil Falk) के अनुसार, फिरोज जहांगीर गांधी के सरनेम अंग्रेजी में Gandy था, जिसका उच्चारण गांधी ही होता है. फिरोज गांधी के पिता जहांगीर गांधी के सरनेम भी Gandy वाला गांधी ही है. यह गलत धारणा है कि अंतरधार्मिक शादी के कारण महात्मा गांधी ने अपना सरनेम फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी को दे दिया. हालांकि बाद में फिरोज और इंदिरा गांधी ने सरनेम में Gandhi स्पेलिंग लिखी. मौत के बाद फिरोज गांधी का नाम भी कांग्रेस के जेहन से मिटने लगा. अब गांधी फैमिली की बात नेहरू से शुरू होती है और राहुल पर खत्म होती है.
आखिर क्यों गुमनाम होते गए गांधी परिवार के फिरोज गांधी
बीजेपी के नेता इसके लिए फिरोज गांधी के पारसी धर्म को कारण मानते हैं. मगर राजनीति विश्लेषक उनके प्रखर व्यक्तित्व को गुमनामी का कारण बताते हैं. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी फिरोज काफी मुखर रहे. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इंदिरा गांधी के साथ जेल गए. आजादी के बाद जब वह रायबरेली से सांसद बने तब उन्होंने कई मौकों पर अपनी ही सरकार की आलोचना की. सरकार उनके ससुर जवाहर लाल नेहरू की थी, मगर उन्होंने मुद्दों पर सरकार को घेरने में कोई कमी नहीं की. इस कारण वह नेहरू के मुरीद कांग्रेसियों के लिए नापसंद बन गए. कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को जब पार्टी का वारिस चुना तब उन्हें जवाहर लाल नेहरू के स्वभाविक उत्तराधिकारी के तौर पर प्रचारित किया गया. नेहरू के कद के सामने धीरे-धीरे फिरोज गांधी की स्मृति धूमिल पड़ती गई.
फिरोज गांधी के कारण देना पड़ा था वित्त मंत्री को इस्तीफा
एलआईसी के मामले में फिरोज गांधी के विरोध के कारण प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे टीटी कृष्णमाचारी को इस्तीफा देना पड़ा था. 16 दिसंबर 1957 को फिरोज गांधी ने लोकसभा में एलआईसी में एक घोटाले का मुद्दा उठाया. संसद में अपने तथ्यों से यह साबित कर दिया कि वित्त मंत्री के प्रोत्साहन के कारण एलआईसी ने कोलकाता के एक उद्योगपति की कंपनियों में 1.25 करोड़ रुपये का निवेश किया है. उन्होंने इस मामले की जांच पालियामेंट्री कमिटी से कराने की मांग की. इसके बाद दबाव में आई नेहरू सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम.सी. छागला से इस मामले की न्यायिक जांच कराई. गड़बड़ी के संकेत मिलने पर टीटी कृष्णमाचारी को 18 फरवरी 1958 को पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. माना जाता है कि इस प्रकरण के बाद नेहरू से उनके रिश्ते सहज नहीं रहे.
फिरोज गांधी का प्राइवेट बिल, जिससे प्रेस को मिली आजादी
फिरोज गांधी ने प्रेस की स्वतंत्रता का वकालत करने वाले पहले सांसद थे. आजादी के बाद पत्रकारों को संसदीय कार्यवाही पर रिपोर्ट करने की अनुमति नहीं थी. इस तरह की किसी भी कार्यवाही के प्रकाशन पर पाबंदी लगी थी. 1956 में फिरोज गांधी ने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक प्राइवेट बिल पेश किया, जो बाद में संसदीय कार्यवाही (प्रकाशन का संरक्षण) अधिनियम 1956 के रूप में एक कानून बन गया. इस बिल के पास होने के बाद मीडिया को संसद की कार्यवाही के बारे में लिखने की अनुमति मिली. संसदीय इतिहास में यह पहला प्राइवेट बिल था, जिसे न सिर्फ सदन ने मंजूर किया बल्कि इसे कानून भी बनाना पड़ा.
रायबरेली से सांसद रहे फिरोज गांधी, जो फैमिली की परंपरागत सीट हो गई
उत्तरप्रदेश में कई लोकसभा सीट परंपरागत रूप से गांधी परिवार की मानी जाती रही है. अमेठी और रायबरेली. कांग्रेस अमेठी को 2019 में हार चुकी है मगर रायबरेली अभी भी सोनिया गांधी के कब्जे में है. रायबरेली सीट गांधी फैमिली की परंपरागत कैसे रही ? आजादी के बाद इस सीट से गांधी परिवार का सदस्य सांसद रहा या उनके पसंद के कांग्रेसी सांसद रहे. सिर्फ आपातकाल के बाद 1977-80 के बीच यह सीट किसी दूसरी पार्टी के हाथ में गई. जनता पार्टी के राज नारायण इस दौरान सांसद रहे. इस सीट से दो बार लगातार फिरोज गांधी सांसद रहे. उन्होंने1952 में हुए पहले आम चुनाव में रायबरेली से जीत दर्ज की थी. इसके बाद 1957 में भी वह इस सीट से सांसद चुने गए. 1967-77 तक इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव जीतती रहीं. 1999 से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.