लुधियाना: पंजाब में पराली का प्रबंधन किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है जो पिछले कई सालों में बढ़ गई है. जब से फसलों की कटाई मशीनों से होने लगी है तब से पराली किसानों की समस्या बन गयी है. पंजाब में हर साल 29.68 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती होती है और इसकी कटाई के बाद जो वेस्ट (शेष) बचता है उसी को पराली कहते हैं. किसान इसको पहले खेतों में ही जलाते थे या फिर अत्याधुनिक मशीनों के माध्यम से इसे खेत में ही जोत कर मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाते थे. लेकिन यह काम छोटे किसानों के लिए मुश्किल था. इसको ध्यान में रखते हुए पंजाब सरकार पिछले कुछ सालों में किसानों को किराए पर बड़ी मशीनें देने की स्कीम भी शुरू की थी इसके बावजूद भी पंजाब में लगातार पराली जलाने के मामले बढ़ते ही गए.
तीन साल में रिकॉर्ड तोड़ पराली को आग : पिछले 3 साल में पंजाब में बड़ी मात्रा में पराली जलायी गई. पिछले 3 साल में पराली जलाने के 2,02,826 मामले सामने आए हैं और अगर साल पिछले 10 साल के रेकॉर्ड देखें तो पराली जलाने के 2019 में 55,210 मामले जबकि 2020 में 70,592 मामले वहीं 2021 में 71,024 मामले सामने आए थे जो कि एक बड़ा मसला है 2020 में ही 17.96 लाख हेक्टेयर इलाके को पंजाब के किसानों ने आग के हवाले किया जिससे बड़ी तादाद में प्रदूषण भी फैला. खासकर कर कोरोना वायरस के कहर के दौरान इसका प्रभाव मानवीय शरीर पर ज्यादा बढ़ा. कोरोना काल में खांसी. गला मे खरास आदि समस्याएं उत्तर भारत के इलाकों में ज्यादा देखने को मिली और खास करके पराली जलाने के सीजन में इसकी संख्या मे इजाफा देखा गया.
गड़वासु (GADVASU) की रिसर्च : गुरु अंगद देव वेटरनरी एवं एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी की ओर से पराली प्रबंधन को लेकर एक नई तकनीक खोजी है जिसके साथ पराली में यूरिया मेला सिस मिलाकर ऐसा मिक्सर तैयार किया जाता है जिसे पशु आसानी से खा सकते हैं पशुओं को पराली खिलाने में किए गए रिसर्च के नतीजे भी काफी सकारात्मक मिले हैं. यूनिवर्सिटी लगातार कई सालों की शोध के बाद इस नतीजे पर पहुंची है कि पराली को ट्रीट कर पशुओं को खिलाया सकता है जिससे पराली का प्रबंधन भी होगा और पशुओं को पोस्टिक आहार भी मिलेगा
मिश्रण कैसे होता है तैयार : गुरु अंगद देव वेटरनरी यूनिवर्सिटी के माही डॉ आर एस पराली को सीधे तौर पर अगर पशुओं को खिलाया जाएगा तो इससे उनकी तबीयत खराब होगी वह उसको हजम नहीं कर पाएंगे क्योंकि पराली को हजम करने की पशुओं में समृद्ध था सिर्फ 35 से 40% ही होती है लेकिन अगर इसको ट्रीट किया जाए इसमें शीरा और यूरिया मिलाकर पानी में रखकर पराली का मिक्सर तैयार किया जाए तो इसको हजम करने की समर्था पशुओं में 45 से 50% हो जाती है
किन चीजों का किसान रखें ध्यान : वेटरनरी यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ डॉ आर एस ग्रेवाल ने बताया कि पराली का मिश्रण तैयार करते वक्त किसानों को मिश्रण की वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में ही डालना होता है. इस तकनीक को काफी समय से खोजा जा रहा था लेकिन अब उसको डेयरी फार्म पर इंप्लीमेंट किया गया है उन्होंने बताया इस तकनीक को यूरिया मोलासेस ट्रीटमेंट ऑफ पैडी स्ट्रा बोला जाता है इसमें 1 क्विंटल पराली सुखी लेनी होती है उसमें 3 किलो शीला हीरा और 1 किलो यूरिया 30 किलो पानी में मिलाकर घोल तैयार किया जाता है उन्होंने बताया कि 4 महीने से कम आयु के पशुओं को यह मिश्रण नहीं दिया जा सकता परंतु दुधारू पशुओं को आसानी से यह मिश्रण दिन में दो-दो किलो खिलाया जा सकता है और जो पशु अब दूध नहीं दे सकते उनको यह 4 से 5 किलो रोजाना खिलाया जा सकता है.
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गौशालाओं के लिए लाभदायक : गुरु अंगद देव वेटरनरी और एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट डॉक्टर ने बताया है कि इसको हम पहले ही कई गौशालाओं में टेस्ट कर चुके हैं. गौशाला में अक्सर यह समस्या रहती थी कि आवारा गाय या अन्य पशुओं प्रबंधन कैसे किया जाए उनके चारे का व्यवस्था कैसे हो इसी को लेकर यह एक अच्छी तकनीक है जिससे ना सिर्फ पराली का प्रबंधन होगा बल्कि गौशाला को आसानी से चारा भी उपलब्ध होगा. आवारो पशुओं को दिन में 4 से 5 किलो तक यह मिश्रण दिया जा सकता है क्योंकि इसको पशु आसानी से पचा भी सकते हैं. यह मिश्रण उनकी सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद साबित होगाै. छोटे किसान भी आसानी से इस मिश्रण को अपने घर पर तैयार कर सकते हैं जबकि अगर बड़े किसान हैं या जो डेयरी संचालक टीआरएस मशीन को ट्रैक्टर के साथ कंबाइन करके इस मिश्रण को तैयार कर सकते हैं उन्होंने बोला कि टीआरएस मशीन में जो पराली के बड़े हिस्से होते हैं वह भी कट कर काफी बड़ी हो जाते हैं और उसका भी काफी फायदा होता है
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