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मृतक के संरक्षित वीर्य के नमूने को माता-पिता या वारिस को जारी करने का कानून नहीं : अस्पताल

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Published : Feb 6, 2022, 8:07 PM IST

दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया गया है कि अविवाहित मृत पुरुष के संरक्षित किए गए वीर्य के नमूने को उसके माता-पिता या कानूनी वारिसों को जारी करने के लिए देश में कोई कानून नहीं है.

symbolic photo
प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली : दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल ने उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक हलफनामे में कहा कि केंद्र सरकार के राजपत्र में एआरटी (सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी) अधिनियम, एक अविवाहित व्यक्ति के वीर्य के नमूने के निपटान या उपयोग की प्रक्रिया को निर्दिष्ट नहीं करता है, जिसकी मृत्यु हो गई है.

अस्पताल की प्रतिक्रिया एक दंपति की याचिका पर आई है, जिसमें गंगा राम अस्पताल के एक केंद्र से अपने मृत बेटे के संरक्षित किए गए वीर्य के नमूने को जारी करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. उच्च न्यायालय ने पिछले साल दिसंबर में याचिका पर अस्पताल और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा था. इस मामले में याचिकाकर्ताओं के कैंसर से पीड़ित अविवाहित बेटे ने कीमोथैरेपी शुरू होने से पहले वर्ष 2020 में अपने वीर्य के नमूने को संरक्षित किया था.

यह भी पढ़ें- Assembly Elections 2022: निर्वाचन आयोग ने रोड शो, वाहन रैलियों पर प्रतिबंध बढ़ाया

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 30 साल की उम्र में मरने वाले अपने बेटे के एकमात्र जीवित उत्तराधिकारी होने के नाते बेटे के शरीर के अवशेषों पर उनका सबसे बड़ा हक है. उन्होंने कहा कि मृतक के शुक्राणु प्राप्त करने का उद्देश्य उनके मृत बेटे की वंशावली को जारी रखना है.

नई दिल्ली : दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल ने उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक हलफनामे में कहा कि केंद्र सरकार के राजपत्र में एआरटी (सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी) अधिनियम, एक अविवाहित व्यक्ति के वीर्य के नमूने के निपटान या उपयोग की प्रक्रिया को निर्दिष्ट नहीं करता है, जिसकी मृत्यु हो गई है.

अस्पताल की प्रतिक्रिया एक दंपति की याचिका पर आई है, जिसमें गंगा राम अस्पताल के एक केंद्र से अपने मृत बेटे के संरक्षित किए गए वीर्य के नमूने को जारी करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. उच्च न्यायालय ने पिछले साल दिसंबर में याचिका पर अस्पताल और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा था. इस मामले में याचिकाकर्ताओं के कैंसर से पीड़ित अविवाहित बेटे ने कीमोथैरेपी शुरू होने से पहले वर्ष 2020 में अपने वीर्य के नमूने को संरक्षित किया था.

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याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 30 साल की उम्र में मरने वाले अपने बेटे के एकमात्र जीवित उत्तराधिकारी होने के नाते बेटे के शरीर के अवशेषों पर उनका सबसे बड़ा हक है. उन्होंने कहा कि मृतक के शुक्राणु प्राप्त करने का उद्देश्य उनके मृत बेटे की वंशावली को जारी रखना है.

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