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युवाओं के लिए बनी प्रेरणास्रोत शकुंतला, विपरीत परिस्थितियों से जूझकर पहुंचीं शिखर पर

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 16, 2023, 1:46 PM IST

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में फाउंडर्स लैब की प्रमुख शकुंतला कासरगड्डा ने विपरीत परिस्थितियों में पढ़ाई पूरी की. अपनी मेंहनत और लगन से आज वह शिखर पर पहुंच चुकी हैं. अब वह युवाओं को प्रोत्साहित कर रही हैं.

Shakuntala reached the peak after battling adverse circumstances and became a source of inspiration for the youth.
विपरीत परिस्थितियों से जूझकर शिखर पर पहुंची शकुंतला युवाओं के लिए बनी प्रेरणास्रोत

हैदराबाद: युवा विदेश जा रहे हैं क्योंकि वे अच्छा पैसा कमा सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो देश का भविष्य और अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा! कासरगड्डा शकुंतला ने यही सोचा था. छात्रों के विचारों को स्टार्ट-अप की ओर बढ़ावा देना. युवा उद्यमी बनाना. उन्होंने पढ़ाई के लिए बहुत संघर्ष किया. शकुंतला कासरगड्डा ने 'ईटीवी भारत' को बताया कि कैसे वह 'नो स्कूल' से लेकर 'फाउंडर्स लैब' स्थापित करने तक का मुकाम हासिल की.

शकुंतला कासरगड्डा ने कहा,'घर में यह भावना रहती है कि लड़की को मेहनत नहीं करनी चाहिए. इसलिए मैंने घर पर ही अपने बड़े भाई की किताबों से पढ़ाई की. आंध्र प्रदेश के जग्गैयापेट जब मैं 12 वर्ष की थी तब मेरे पिता सत्यनारायण की मृत्यु हो गई. फिर मेरे घरवाले मुझे स्कूल भेजने के लिए तैयार हो गये. मैंने दसवीं कक्षा तक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. इसके बाद घरवालों ने प्रश्न सवाल उठाया कि तुम्हें आगे की शिक्षा की आवश्यकता क्यों है? उपस्थिति से छूट मिलने के बाद मैंने इंटरमीडिएट और बीए समाजशास्त्र से किया. मेरी जिद देखकर परिवार वाले नरम पड़ गए. इसके बाद मैंने उस्मानिया यूनिवर्सिटी से पीजी की.'

शकुंतला ने आगे कहा,'मैं भी सिविल की तैयारी के लिए दिल्ली गई. लेकिन हमारे साथ चल रहे दादाजी की मृत्यु हो गई और नौकरी ज्वाइन करनी पड़ी. तभी मुझे टाटा ट्रस्ट से 2 लाख रुपये की फेलोशिप मिली. लेकिन इसे पाने वालों को तीन साल तक ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में काम करना पड़ता है. इसलिए मदुरै में 'डॉन फाउंडेशन' से जुड़ गए. मैदानी स्तर पर समस्याओं को सरकार के ध्यान में लाए. मैं हैदराबाद आई क्योंकि इसकी सेवाएँ तेलुगु राज्यों में भी उपलब्ध थीं. मैं मौलाली में अपने नेतृत्व में एक सामुदायिक स्कूल खोलने और उसके लिए सरकारी मान्यता प्राप्त करना नहीं भूल सकती.'

उन्होंने कहा,' उसके बाद मैंने बीवाईएसटी अर्न्स्ट एंड यंग में युवा उद्यमिता और आंध्र प्रदेश सरकार के साथ डिजिटल प्रशासन पर काम किया. 18 साल में करीब 20 हजार महिलाओं की मदद की. वीहब (WeHub) में सोशल इम्पैक्ट एंटरप्रेन्योर के प्रमुख के रूप में मैंने स्टार्टअप्स को फंडिंग और मार्केटिंग के अवसर प्रदान किए और एक संरक्षक के रूप में कार्य किया. जब मैंने छात्रों को अवसरों की तलाश में विदेश जाते देखा तो मैंने सोचा कि देश के भविष्य और अर्थव्यवस्था का क्या होगा. उन्हें बिजनेस के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए इस साल हमने 'फाउंडर्स लैब' शुरू की. तेलंगाना के मंत्री केटीआर ने इसका उद्घाटन किया. मुझे इसकी परवाह नहीं थी कि मैं अपनी 4 लाख रुपए की नौकरी छोड़कर जोखिम ले रही हूं. अगर कोई उत्पाद सफल होता है तो कई कंपनियां उसे आर्थिक और मार्केटिंग के लिहाज से मदद करती हैं.'

उन्होंने कहा,'अच्छे लोगों को संस्थानों में जोड़ा जाएगा. छात्रों के पास कई विचार होते हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि उन्हें कैसे प्रकट किया जाए. हम उसके लिए एक मंच उपलब्ध करा रहे हैं. हम विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के साथ काम करने के अवसर भी प्रदान कर रहे हैं. हम एनजीओ की मदद से सरकारी डिग्री कॉलेजों के छात्रों को बिजनेस का पाठ पढ़ा रहे हैं. 250 विचार आकार ले रहे हैं. 15 हजार छात्र हमसे जुड़े हैं. दूसरे राज्यों के कॉलेजों से भी संपर्क साधा है.'

ये भी पढ़ें- युवा संगम योजना: तेलंगाना का दौरा करेंगे उत्तराखंड के छात्र, एक भारत श्रेष्ठ भारत की कल्पना होगी साकार

उन्होंने कहा,'टीम में विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं से 12 लोग शामिल हैं. हम छात्रों के लिए 24 घंटे उपलब्ध हैं. मेरा लक्ष्य यह साबित करना है कि थोड़े से सहयोग से नियमित कॉलेजों से भी स्टार्टअप आ सकते हैं. मैं वांछित एमपीसी और सिविल्स नहीं कर सकी. मैंने परिस्थिति के अनुसार खुद को बदला. वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करें. अपना भविष्य तय करें. वही सच्ची आजादी है. और कोई नहीं देता. आपको इसे स्वयं अर्जित करना होगा. यह शकुंतला का वर्तमान पीढ़ी को संदेश है.'

हैदराबाद: युवा विदेश जा रहे हैं क्योंकि वे अच्छा पैसा कमा सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो देश का भविष्य और अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा! कासरगड्डा शकुंतला ने यही सोचा था. छात्रों के विचारों को स्टार्ट-अप की ओर बढ़ावा देना. युवा उद्यमी बनाना. उन्होंने पढ़ाई के लिए बहुत संघर्ष किया. शकुंतला कासरगड्डा ने 'ईटीवी भारत' को बताया कि कैसे वह 'नो स्कूल' से लेकर 'फाउंडर्स लैब' स्थापित करने तक का मुकाम हासिल की.

शकुंतला कासरगड्डा ने कहा,'घर में यह भावना रहती है कि लड़की को मेहनत नहीं करनी चाहिए. इसलिए मैंने घर पर ही अपने बड़े भाई की किताबों से पढ़ाई की. आंध्र प्रदेश के जग्गैयापेट जब मैं 12 वर्ष की थी तब मेरे पिता सत्यनारायण की मृत्यु हो गई. फिर मेरे घरवाले मुझे स्कूल भेजने के लिए तैयार हो गये. मैंने दसवीं कक्षा तक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. इसके बाद घरवालों ने प्रश्न सवाल उठाया कि तुम्हें आगे की शिक्षा की आवश्यकता क्यों है? उपस्थिति से छूट मिलने के बाद मैंने इंटरमीडिएट और बीए समाजशास्त्र से किया. मेरी जिद देखकर परिवार वाले नरम पड़ गए. इसके बाद मैंने उस्मानिया यूनिवर्सिटी से पीजी की.'

शकुंतला ने आगे कहा,'मैं भी सिविल की तैयारी के लिए दिल्ली गई. लेकिन हमारे साथ चल रहे दादाजी की मृत्यु हो गई और नौकरी ज्वाइन करनी पड़ी. तभी मुझे टाटा ट्रस्ट से 2 लाख रुपये की फेलोशिप मिली. लेकिन इसे पाने वालों को तीन साल तक ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में काम करना पड़ता है. इसलिए मदुरै में 'डॉन फाउंडेशन' से जुड़ गए. मैदानी स्तर पर समस्याओं को सरकार के ध्यान में लाए. मैं हैदराबाद आई क्योंकि इसकी सेवाएँ तेलुगु राज्यों में भी उपलब्ध थीं. मैं मौलाली में अपने नेतृत्व में एक सामुदायिक स्कूल खोलने और उसके लिए सरकारी मान्यता प्राप्त करना नहीं भूल सकती.'

उन्होंने कहा,' उसके बाद मैंने बीवाईएसटी अर्न्स्ट एंड यंग में युवा उद्यमिता और आंध्र प्रदेश सरकार के साथ डिजिटल प्रशासन पर काम किया. 18 साल में करीब 20 हजार महिलाओं की मदद की. वीहब (WeHub) में सोशल इम्पैक्ट एंटरप्रेन्योर के प्रमुख के रूप में मैंने स्टार्टअप्स को फंडिंग और मार्केटिंग के अवसर प्रदान किए और एक संरक्षक के रूप में कार्य किया. जब मैंने छात्रों को अवसरों की तलाश में विदेश जाते देखा तो मैंने सोचा कि देश के भविष्य और अर्थव्यवस्था का क्या होगा. उन्हें बिजनेस के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए इस साल हमने 'फाउंडर्स लैब' शुरू की. तेलंगाना के मंत्री केटीआर ने इसका उद्घाटन किया. मुझे इसकी परवाह नहीं थी कि मैं अपनी 4 लाख रुपए की नौकरी छोड़कर जोखिम ले रही हूं. अगर कोई उत्पाद सफल होता है तो कई कंपनियां उसे आर्थिक और मार्केटिंग के लिहाज से मदद करती हैं.'

उन्होंने कहा,'अच्छे लोगों को संस्थानों में जोड़ा जाएगा. छात्रों के पास कई विचार होते हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि उन्हें कैसे प्रकट किया जाए. हम उसके लिए एक मंच उपलब्ध करा रहे हैं. हम विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के साथ काम करने के अवसर भी प्रदान कर रहे हैं. हम एनजीओ की मदद से सरकारी डिग्री कॉलेजों के छात्रों को बिजनेस का पाठ पढ़ा रहे हैं. 250 विचार आकार ले रहे हैं. 15 हजार छात्र हमसे जुड़े हैं. दूसरे राज्यों के कॉलेजों से भी संपर्क साधा है.'

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उन्होंने कहा,'टीम में विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं से 12 लोग शामिल हैं. हम छात्रों के लिए 24 घंटे उपलब्ध हैं. मेरा लक्ष्य यह साबित करना है कि थोड़े से सहयोग से नियमित कॉलेजों से भी स्टार्टअप आ सकते हैं. मैं वांछित एमपीसी और सिविल्स नहीं कर सकी. मैंने परिस्थिति के अनुसार खुद को बदला. वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करें. अपना भविष्य तय करें. वही सच्ची आजादी है. और कोई नहीं देता. आपको इसे स्वयं अर्जित करना होगा. यह शकुंतला का वर्तमान पीढ़ी को संदेश है.'

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