नई दिल्ली : फ्यूचर रिटेल लिमिटेड (एफआरएल) ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के एक हालिया आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में दायर अपनी नई याचिका पर जल्द सुनवाई करने का अनुरोध किया है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि वह एफआरएल को रिलायंस रिटेल के साथ 24,731 करोड़ रुपये के विलय के सौदे पर आगे बढ़ने से रोकने संबंधी पहले के निर्देश को लागू करेगा.
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की तीन सदस्यीय पीठ ने एफआरएल के वकील से कहा, 'मुझे फाइल देखने दीजिए और मैं एक तारीख दूंगा.'
सिंगापुर की आपातकालीन मध्यस्थता अदालत (ईए) द्वारा एफआरएल को सौदे पर आगे बढ़ने से रोकने वाले आदेश को लागू कराने के लिए अमेजन की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने 17 अगस्त को कहा था कि अगर चार सप्ताह के भीतर उच्चतम न्यायालय से कोई स्थगन नहीं मिलता है, तो वह फ्यूचर रिटेल लिमिटेड (एफआरएल) को रिलायंस रिटेल के साथ हुए सौदे में आगे बढ़ने से रोकने वाले एकल न्यायधीश के आदेश को लागू करेगा.
उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश की पीठ ने 18 मार्च को सिंगापुर आपात पंचाट (ईए) के फ्यूचर रिटेल को, रिलायंस रिटेल को अपना कारोबार 24,713 करोड़ रुपये में बेचने के सौदे पर रोक के आदेश को उचित ठहराया था.
न्यायमूर्ति जे आर मिधा ने फ्यूचर रिटेल को निर्देश दिया था कि वह रिलायंस के साथ सौदे पर आगे कोई कार्रवाई नहीं करे. अदालत ने कहा था कि समूह ने जानबूझकर ईए के आदेश का उल्लंघन किया है. उच्च न्यायालय ने फ्यूचर समूह की सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया था और साथ ही कंपनी और उसके निदेशकों पर 20 लाख रुपये की लागत भी लगाई थी.
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एफआरएल की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ताओं हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी ने पीठ से इस मामले में जल्द सुनवाई का अनुरोध किया और कहा कि अगर शीर्ष अदालत ने उसके पक्ष में आदेश पर रोक नहीं लगाई तो उच्च न्यायालय एफआरएल को रिलायंस रिटेल के साथ हुए सौदे में आगे बढ़ने से रोकने वाले एकल न्यायधीश के आदेश को लागू कर देगा.
साल्वे ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश के 'दूरगामी परिणाम' होंगे और एफआरएल की अपील पर नौ सितंबर को सुनवाई की मांग की क्योंकि उच्च न्यायालय के समक्ष मामला 16 सितंबर को सूचीबद्ध है.
रोहतगी ने एक अन्य याचिका का हवाला देते हुए कहा कि उच्च न्यायालय ने पूरी संपत्ति कुर्क करने का आदेश दिया है और अगर फ्यूचर ग्रुप एवं अन्य को शीर्ष अदालत से अनुकूल आदेश नहीं मिला तो अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाएगी.