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Fourth Agriculture Road Map आसान नहीं.. सुधाकर सिंह ने टिकैत को मैदान में उतारा, सवाल- लागू होगी मंडी व्यवस्था?

कृषि मंत्री पद विवादों के बीच छोड़ने के बाद से आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह लगातार किसान नेता राकेश टिकैत का बिहार में दौरा करा रहे हैं. अब एक बार फिर से तीन दिनों के लिए उनके साथ कार्यक्रम करने वाले हैं. कैमूर, रोहतास के भभुआ इलाके में किसान जनसभा करेंगे. मंडी कानून लागू करने और किसानों को उपज की उचित कीमत मिले, इसकी मांग भी एक बार फिर से करेंगे.

चौथा कृषि रोड मैप
चौथा कृषि रोड मैप
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 6, 2023, 8:26 PM IST

Updated : Oct 7, 2023, 4:07 PM IST

पटना : बिहार में इस साल अप्रैल से चौथा कृषि रोड मैप शुरू हो चुका है. 18 अक्टूबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू विधिवत रूप से उद्घाटन करेंगी. लेकिन, इस कार्यक्रम से पहले ही नीतीश सरकार की कई स्तर पर मुश्किलें बढ़ने वाली हैं. दरअसल, पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह बिहार के चौथे कृषि रोड मैप को लेकर सवाल खड़ा कर चुके हैं. इसपर उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र भी लिखा था. उन्होंने कृषि मंत्री रहते फिर से कृषि रोड मैप बनाने की बात भी कही थी, जिसमें कृषि के विशेषज्ञों को शामिल करने और अधिकारियों को इससे अलग करने की बात कही थी.

ये भी पढ़ें- Droupadi Murmu Bihar Visit: 18 अक्टूबर को बिहार दौरे पर आएंगी राष्ट्रपति, चौथे कृषि रोड मैप का करेंगी शुरुआत


चौथे कृषि रोड मैप पर बड़ी चुनौती : केंद्र सरकार ने जब मंडी कानून को समाप्त कर दिया था तो पूरे देश में किसानों का जबरदस्त आंदोलन हुआ. उस समय नीतीश कुमार एनडीए में थे और कृषि कानून का समर्थन किया था. नीतीश कुमार ने बिहार में जब सत्ता संभाली थी तो उस समय एपीएमसी एक्ट यानी एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी एक्ट को खत्म कर दिया था. 2006 में ही यह एक्ट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समाप्त किया था, इसके कारण बाजार समिति की जो व्यवस्था थी वह समाप्त हो गयी. नीतीश कुमार कई बार कह चुके हैं एपीएमपी एक्ट के समाप्त होने से किसानों को लाभ मिला है और इसलिए केंद्र ने जब कृषि कानून लागू किया तो उसका समर्थन किया था. लेकिन किसानों के विरोध के कारण केंद्र सरकार को कृषि कानून वापस लेना पड़ा.

ईटीवी भारत GFX.
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क्या है सुधारकर सिंह का विरोध? : वहीं, सुधाकर सिंह बिहार में मंडी व्यवस्था को लागू करने की मांग करते रहे हैं. उसमें किसान नेता राकेश सिंह टिकैत का साथ मिल रहा है. राकेश सिंह टिकैत ने मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा था और उनसे मंडी व्यवस्था लागू करने की मांग की थी. जिससे किसानों को उपज का सही मूल्य मिल सके. अब एक बार फिर से कैमूर रोहतास और औरंगाबाद में किसान जनसभा करने आ रहे हैं. राकेश सिंह टिकैत का उस समय यह कार्यक्रम हो रहा है, जब कुछ दिन बाद ही राष्ट्रपति 18 अक्टूबर को पटना में चौथे कृषि रोड मैप की विधिवत शुरुआत करेंगी. क्योंकि, पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह कृषि रोड मैप को लेकर अपनी नाराजगी जता चुके हैं. इससे बिहार के किसानों को किसी तरह का लाभ नहीं होने की बात भी कह चुके हैं.

APMC एक्ट खत्म लेकिन कारगर विकल्प नहीं मिला ? : बिहार के अर्थशास्त्री डॉक्टर विद्यार्थी विकास का भी कहना है एपीएमपी एक्ट के समाप्त होने से किसानों को कोई लाभ नहीं हुआ है. यहां भी मंडी व्यवस्था लागू होनी चाहिए जिससे किसानों को उनका सही मूल्य मिल सकता है. विद्यार्थी विकास का यह भी कहना है एपीएमपी एक्ट समाप्त करने के बाद बिहार सरकार ने किसानों की उपज बेचने के लिए कोई बेहतर व्यवस्था नहीं की और इसके कारण किसानों को ओने पौने दाम में अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं.

लीची, मखाना, मशरूम का बिहार में  उत्पादन
लीची, मखाना, मशरूम का बिहार में उत्पादन

बिहार में PACS का क्या है हाल? : बिहार में पैक्स के जरिए ही गेहूं और धान की खरीदी होती है. इनकी खरीद में किसानों को परेशानियां भी झेलनी पड़ती है. धान में नमी की वजह से छोटे किसान परेशान रहते हैं, फायदा बड़े किसानों को भी मिल पाता है. छोटे किसान आज भी बिचौलियों के माध्यम से अपने उत्पाद बेचते हैं. छोटे किसानों की संख्या बिहार में ज्यादा है इसलिए जो फायदा होना चाहिए वह उन्हें नहीं मिल पा रहा है. अर्थशात्री की मानें तो बिहार में पैक्स कुछ खास असर नहीं डाल पा रहा है.


''पैक्स के माध्यम से धान और गेहूं की खरीदारी जरूर होती है लेकिन उसमें भी कई तरह की परेशानियां किसानों को झेलना पड़ता है. धान में नमी सबसे बड़ी समस्या होती है. पैक्स में जिस प्रकार से किसानों से धान और गेहूं की खरीदारी होती है, इसका लाभ बड़े किसान ही उठा पाते हैं. छोटे किसान बिचौलियों के माध्यम से ही अपने उत्पाद बेच देते हैं. ऐसे में पैक्स से छोटे किसानों को बहुत ज्यादा लाभ नहीं मिल रहा है.''- डॉक्टर विकास विद्यार्थी, अर्थशास्त्री

ईटीवी भारत GFX.
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कब कब लागू हुआ कृषि रोड मैप : बिहार में अब तक तीन कृषि रोड मैप पूरा हो चुका है. नीतीश कुमार ने 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद 2008 में पहला कृषि रोड मैप लागू किया था. 2012 में दूसरा कृषि रोड मैप लागू किया और 5 साल बाद 2017 में तीसरा कृषि रोड मैप लागू किया. 2022 में ही तीसरे कृषि रोड मैप की अवधि समाप्त हो गई थी, लेकिन सरकार ने एक साल उसकी अवधि और बढ़ा दी. चौथे कृषि रोड मैप की शुरुआत इस साल हुई है, जिसका विधिवत उद्घाटन अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू करेंगी. चौथे कृषि रोड मैप पर 5 सालों में बिहार सरकार 1,62,000 करोड़ से अधिक की राशि खर्च करने वाली है.


इन फसलों में देशभर में बिहार का स्थान : ऐसे बिहार सरकार का दवा आ रहा है कि बिहार में कृषि रोड मैप का कृषि उत्पादन पर असर पड़ा है. कृषि रोड मैप के कारण ही आज चावल और गेहूं के उत्पादन में बिहार देश में छठे स्थान पर है. मक्का के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. सब्जी के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है. शहद के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. वहीं, फलों की बात करें तो लीची के उत्पादन में प्रथम स्थान, आम के उत्पादन में चौथे स्थान पर, अमरूद के उत्पादन में पांचवें स्थान और केला के उत्पादन में छठे स्थान पर है.

नीतीश की राह नहीं आसान? : आज कृषि रोड मैप के कारण बिहार के कई कृषि उत्पादन देश ही नहीं, देश के बाहर भी भेजे जा रहे हैं. अब चौथे कृषि रोड मैप से बड़ी उम्मीद है. इससे कृषि के क्षेत्र में एक लंबी छलांग बिहार लगा सकता है. लेकिन किसानों के लिए मंडी व्यवस्था या फिर बेहतर बाजार नहीं होने के कारण उन्हें उत्पादों का सही मूल्य कैसे मिलेगा? इस पर ध्यान अभी तक सरकार का नहीं गया है. कृषि रोड मैप से उत्पादन बढ़ा है, यह सही है. लेकिन आज भी किसान परेशान हैं, यह भी सत्य है. किसानों की इसी समस्या को लेकर सुधाकर सिंह राकेश टिकैत के साथ आंदोलन करने में लगे हैं.

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चौथे कृषि रोड मैप पर बड़ी चुनौती : केंद्र सरकार ने जब मंडी कानून को समाप्त कर दिया था तो पूरे देश में किसानों का जबरदस्त आंदोलन हुआ. उस समय नीतीश कुमार एनडीए में थे और कृषि कानून का समर्थन किया था. नीतीश कुमार ने बिहार में जब सत्ता संभाली थी तो उस समय एपीएमसी एक्ट यानी एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी एक्ट को खत्म कर दिया था. 2006 में ही यह एक्ट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समाप्त किया था, इसके कारण बाजार समिति की जो व्यवस्था थी वह समाप्त हो गयी. नीतीश कुमार कई बार कह चुके हैं एपीएमपी एक्ट के समाप्त होने से किसानों को लाभ मिला है और इसलिए केंद्र ने जब कृषि कानून लागू किया तो उसका समर्थन किया था. लेकिन किसानों के विरोध के कारण केंद्र सरकार को कृषि कानून वापस लेना पड़ा.

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क्या है सुधारकर सिंह का विरोध? : वहीं, सुधाकर सिंह बिहार में मंडी व्यवस्था को लागू करने की मांग करते रहे हैं. उसमें किसान नेता राकेश सिंह टिकैत का साथ मिल रहा है. राकेश सिंह टिकैत ने मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा था और उनसे मंडी व्यवस्था लागू करने की मांग की थी. जिससे किसानों को उपज का सही मूल्य मिल सके. अब एक बार फिर से कैमूर रोहतास और औरंगाबाद में किसान जनसभा करने आ रहे हैं. राकेश सिंह टिकैत का उस समय यह कार्यक्रम हो रहा है, जब कुछ दिन बाद ही राष्ट्रपति 18 अक्टूबर को पटना में चौथे कृषि रोड मैप की विधिवत शुरुआत करेंगी. क्योंकि, पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह कृषि रोड मैप को लेकर अपनी नाराजगी जता चुके हैं. इससे बिहार के किसानों को किसी तरह का लाभ नहीं होने की बात भी कह चुके हैं.

APMC एक्ट खत्म लेकिन कारगर विकल्प नहीं मिला ? : बिहार के अर्थशास्त्री डॉक्टर विद्यार्थी विकास का भी कहना है एपीएमपी एक्ट के समाप्त होने से किसानों को कोई लाभ नहीं हुआ है. यहां भी मंडी व्यवस्था लागू होनी चाहिए जिससे किसानों को उनका सही मूल्य मिल सकता है. विद्यार्थी विकास का यह भी कहना है एपीएमपी एक्ट समाप्त करने के बाद बिहार सरकार ने किसानों की उपज बेचने के लिए कोई बेहतर व्यवस्था नहीं की और इसके कारण किसानों को ओने पौने दाम में अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं.

लीची, मखाना, मशरूम का बिहार में  उत्पादन
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बिहार में PACS का क्या है हाल? : बिहार में पैक्स के जरिए ही गेहूं और धान की खरीदी होती है. इनकी खरीद में किसानों को परेशानियां भी झेलनी पड़ती है. धान में नमी की वजह से छोटे किसान परेशान रहते हैं, फायदा बड़े किसानों को भी मिल पाता है. छोटे किसान आज भी बिचौलियों के माध्यम से अपने उत्पाद बेचते हैं. छोटे किसानों की संख्या बिहार में ज्यादा है इसलिए जो फायदा होना चाहिए वह उन्हें नहीं मिल पा रहा है. अर्थशात्री की मानें तो बिहार में पैक्स कुछ खास असर नहीं डाल पा रहा है.


''पैक्स के माध्यम से धान और गेहूं की खरीदारी जरूर होती है लेकिन उसमें भी कई तरह की परेशानियां किसानों को झेलना पड़ता है. धान में नमी सबसे बड़ी समस्या होती है. पैक्स में जिस प्रकार से किसानों से धान और गेहूं की खरीदारी होती है, इसका लाभ बड़े किसान ही उठा पाते हैं. छोटे किसान बिचौलियों के माध्यम से ही अपने उत्पाद बेच देते हैं. ऐसे में पैक्स से छोटे किसानों को बहुत ज्यादा लाभ नहीं मिल रहा है.''- डॉक्टर विकास विद्यार्थी, अर्थशास्त्री

ईटीवी भारत GFX.
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कब कब लागू हुआ कृषि रोड मैप : बिहार में अब तक तीन कृषि रोड मैप पूरा हो चुका है. नीतीश कुमार ने 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद 2008 में पहला कृषि रोड मैप लागू किया था. 2012 में दूसरा कृषि रोड मैप लागू किया और 5 साल बाद 2017 में तीसरा कृषि रोड मैप लागू किया. 2022 में ही तीसरे कृषि रोड मैप की अवधि समाप्त हो गई थी, लेकिन सरकार ने एक साल उसकी अवधि और बढ़ा दी. चौथे कृषि रोड मैप की शुरुआत इस साल हुई है, जिसका विधिवत उद्घाटन अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू करेंगी. चौथे कृषि रोड मैप पर 5 सालों में बिहार सरकार 1,62,000 करोड़ से अधिक की राशि खर्च करने वाली है.


इन फसलों में देशभर में बिहार का स्थान : ऐसे बिहार सरकार का दवा आ रहा है कि बिहार में कृषि रोड मैप का कृषि उत्पादन पर असर पड़ा है. कृषि रोड मैप के कारण ही आज चावल और गेहूं के उत्पादन में बिहार देश में छठे स्थान पर है. मक्का के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. सब्जी के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है. शहद के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. वहीं, फलों की बात करें तो लीची के उत्पादन में प्रथम स्थान, आम के उत्पादन में चौथे स्थान पर, अमरूद के उत्पादन में पांचवें स्थान और केला के उत्पादन में छठे स्थान पर है.

नीतीश की राह नहीं आसान? : आज कृषि रोड मैप के कारण बिहार के कई कृषि उत्पादन देश ही नहीं, देश के बाहर भी भेजे जा रहे हैं. अब चौथे कृषि रोड मैप से बड़ी उम्मीद है. इससे कृषि के क्षेत्र में एक लंबी छलांग बिहार लगा सकता है. लेकिन किसानों के लिए मंडी व्यवस्था या फिर बेहतर बाजार नहीं होने के कारण उन्हें उत्पादों का सही मूल्य कैसे मिलेगा? इस पर ध्यान अभी तक सरकार का नहीं गया है. कृषि रोड मैप से उत्पादन बढ़ा है, यह सही है. लेकिन आज भी किसान परेशान हैं, यह भी सत्य है. किसानों की इसी समस्या को लेकर सुधाकर सिंह राकेश टिकैत के साथ आंदोलन करने में लगे हैं.

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Last Updated : Oct 7, 2023, 4:07 PM IST
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