हैदराबाद : देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन के पोते और पूर्व स्वास्थ्य सचिव केशव देसीराजू उत्तराखंड कैडर के 1978 बैच के आईएएस अधिकारी थे. केशव देसी राजू उत्तराखंड के इतिहास में अब तक के सबसे ईमानदार और जन भावनाओं से जुड़े अधिकारी माने जाते हैं. उत्तराखंड के लोगों में आज भी उनकी ईमानदारी की छवि कायम है. उनका शनिवार को 66 वर्ष की आयु में चेन्नई में निधन हो गया.
इतना ही नहीं उन्होंने साल 1950 के बाद उत्तराखंड के भवाली में टीबी के मरीजों के लिए बनाए गए सेनेटोरियम को बिकने नहीं दिया. राजनीतिक दबाव के कारण एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर तो कर दिए, लेकिन आज भी उन्हीं की वजह से यह मामला कोर्ट में अटका हुआ है. जिसकी वजह से हिमानी कंपनी को भवाली टीबी हॉस्पिटल नहीं मिल पाया है.
108 एंबुलेंस सेवा स्थापना में थी मुख्य भूमिका
उत्तराखंड में एमरजेंसी सेवा 108 की स्थापना का श्रेय भले ही राजनेताओं ने लिया हो, लेकिन केशव देसी राजू के साथ काम करने वाले बताते हैं कि 108 को उत्तराखंड में स्थापित करने की पूरी रणनीति और दूरदर्शिता केशव देसीराजू की ही थी. केशव देसीराजू को जानने वाले लोगों का कहना है कि वह उत्तराखंड के विषम भौगोलिक परिस्थितियों से वाकिफ थे और यहां के पहाड़ जैसे जीवन से भी वह बहुत करीबी नाता रखते थे.
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यही वजह थी कि 108 जैसी सर्विस को दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने के लिए एक विजन रखा और उसको अमलीजामा पहनाया. साल 2008 में शुरू हुई 108 सेवा के तत्कालीन संचालन करने वाली कंपनी EMRI के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनूप नौटियाल बताते हैं कि पूर्व आईएएस अधिकारी केशव देसीराजू एक मानवीय दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे और 108 की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी.
अल्मोड़ा में पिता की शव यात्रा में 10 किलोमीटर नंगे पांव चले थे जिलाधिकारी रहे केशव देसी राजू: केशव देसी राजू साल 1988 से 1990 तक अल्मोड़ा जिले के जिलाधिकारी रहे. इस दौरान उन्होंने पहाड़ के जीवन को बेहद करीब से देखा और खुद को जन भावनाओं से जोड़ते हुए उन्होंने अपना घर भी अल्मोड़ा में बनाया. आज भी उनका घर अल्मोड़ा में मौजूद है. इसी दौरान केशव देसीराजू के पिता का यही अल्मोड़ा में निधन हुआ था. तब वह पैदल बिना पांव में चप्पल पहने लगभग 10 किलोमीटर शवयात्रा के साथ विश्वनाथ घाट तक गए थे.अपने डीएम के कार्यकाल में उन्होंने गांव-गांव पैदल भ्रमण कर ग्रामीणों की समस्याओं को करीब से जाना और निदान की कोशिश की.
2016 में हुए थे रिटायर
यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान 2014 में उनके तबादले को लेकर विवाद हो गया था. उस समय वह केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव थे. विवाद इस बात को लेकर था कि बिना अगले स्वास्थ्य सचिव का नाम क्लियर हुए ही, उन्हें पद से हटा दिया गया था. वह इस पद पर मात्र एक साल तक रहे थे. यही सवाल जब पूर्व कैबिनेट सचिव टीएस सुब्रमण्यम से पूछा गया था, तो उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन बताया था. कोर्ट के अनुसार सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर तैनाती के बाद उनका कार्यकाल दो साल का होना चाहिए. हालांकि, यही सवाल जब देसीराजू से पूछा गया तो उन्होंने इसे बहुत अधिक तूल नहीं दिया. उन्होंने कहा था कि तबादला तो रूटिन मामला होता है.
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