नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा है कि एक विशेषज्ञ समिति का गठन राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal-NGT) को मामलों के निर्णय के अपने कर्तव्य से मुक्त नहीं करता है और किसी भी समिति को न्यायिक कार्य नहीं सौंपा जा सकता है.
शीर्ष अदालत ने एनजीटी के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसके द्वारा उसने गुजरात के द्वारका वाडिनार में पेट्रो-केमिकल कॉम्प्लेक्स (petro-chemical complex) में स्थित रिफाइनरी की क्षमता 20 एमएमटीपीए से 46 एमएमटीपीए करने के लिए एक निजी कंपनी को दी गई पर्यावरण मंजूरी की शर्तों के अनुपालन पर गौर करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था.
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि विशेषज्ञ समिति का गठन एनजीटी को निर्णय लेने के अपने कर्तव्य से मुक्त नहीं करता है. एनजीटी का न्यायिक कार्य समितियों, यहां तक कि विशेषज्ञ समितियों को भी नहीं सौंपा जा सकता है. फैसला एनजीटी का होना चाहिए.
पीठ ने कहा कि अधिकरण को संसद के एक कानून के तहत एक विशेषज्ञ न्यायिक प्राधिकार (expert judicial authority) के रूप में गठित किया गया है. शीर्ष अदालत ने एनजीटी के आदेश को खारिज करते हुए हरित अधिकरण के समक्ष याचिका के नए सिरे से निपटारे के लिए बहाल करते हुए पक्षों के सभी अधिकारों और दलीलों को बरकरार रखा. एनजीटी ने आठ जून को यह आदेश पारित किया था.
रिफाइनरी की क्षमता के विस्तार के लिए नायरा एनर्जी लिमिटेड के पक्ष में पांच जनवरी 2021 को पर्यावरण मंजूरी दिए जाने को चुनौती देने के लिए एनजीटी के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी.
(पीटीआई-भाषा)