देहरादून(उत्तराखंड): पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड इन दिनों वन्यजीवों के हमलों को लेकर सुर्खियों में है. उत्तराखंड में करीब 60 फीसदी वन क्षेत्र है. इसके बाद भी आये दिन वन्यजीव जंगलों को छोड़कर रिहायशी इलाकों की ओर रुख कर रहे हैं. जिससे उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले बढ़ रहे हैं. जंगलों की रिहायिश छोड़कर गांवों, शहरों की ओर जंगली जानवरों के रुख से लोग दहशत में हैं. प्रदेश में वन्यजीवों के हमलों को लेकर खराब होते हालातों के बीच अब प्रदेश के वन क्षेत्र की केयरिंग कैपेसिटी को जांचने की तैयारी की जाने लगी है. यही नहीं जंगलों की केयरिंग कैपेसिटी के आधार पर बाघ और गुलदार की संख्या को सीमित करने के उपायों पर भी विचार किया जाएगा.
उत्तराखंड में बाघ और गुलदारों के हमले इंसानों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं. बीते एक महीने में ही इन खूंखार शिकारी वन्य जीवों के हमले में पांच लोगों की जान जा चुकी है, जबकि दो से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं. यह आंकड़ा इतना समझाने के लिए काफी है कि प्रदेश में बाघ और गुलदार किस कदर इंसानी जिंदगियों के लिए मुसीबत बन गए हैं. बड़ी बात यह है कि बाघ और गुलदारों का आतंक केवल वन क्षेत्रों में ही नही है बल्कि अब तो बस्तियों के करीब पहुंचकर ये वन्यजीव इंसानों पर हमला कर रहे हैं. ताजा मामला राजपुर क्षेत्र का है. यहां 4 साल के बच्चे को गुलदार ने अपना निवाला बनाया. इस घटना के बाद अब पहाड़ी क्षेत्र के साथ ही मैदानी जिलों में भी बाघ और गुलदार का खतरा दिखने लगा है.
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उत्तराखंड में वन्यजीवों के हमलों के आंकड़े: अक्टूबर में गुलदार के हमले में कुल 10 लोग घायल हुए. दो लोगों ने गुलदार के हमले में जान गंवाई. अक्टूबर में ही बाघ के हमले में तीन लोगों की जान गई. नवंबर में गुलदार ने पांच लोगों पर हमला किया. नवंबर में दो लोग गुलदार के हमले में मारे गये. नवंबर महीने में ही बाघ के हमले में दो लोग घायल हुए. इसी महीने बाघ के हमले में तीन लोगों की जान गई. दिसंबर महीने में गुलदार के हमले में पांच लोग घायल हुए. दिसंबर महीने में गुलदार के हमले में एक बच्चे की मौत हुई. दिसंबर महीने में ही बाघ ने चार लोगों को निवाला बनाया. पिछले 3 महीने में 52 लोग वन्यजीवों के हमले में घायल हुए. वन्यजीवों ने 18 लोगों को मौत के घाट उतारा.
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बाघ और गुलदारों के हमलों को लेकर वन विभाग में भी हड़कंप मचा हुआ है. लगातार हो रही घटनाएं और घरों में घुसकर बाघ और गुलदार के हमलो की सूचनाएं अब सरकार को भी नए एक्शन प्लान को बनाने पर मजबूर कर रही हैं. एक के बाद एक घटना से वन विभाग के भीतर भी खलबली मची हुई है. भीमताल में हुई तीन मौत के मामलों का तो हाईकोर्ट ने भी संज्ञान लिया. इस तरह अब इन घटनाओं के बढ़ने के पीछे के कारणों को भी जानने की कोशिश होने लगी है. ऐसे में अब वन मंत्री सुबोध उनियाल ने प्रदेश में जंगलों की केयरिंग कैपेसिटी को भांपने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिया है. हालांकि, इसकी जरूरत काफी पहले से ही महसूस की जा रही थी. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाकायदा वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया की तरफ से केयरिंग कैपेसिटी का आकलन किया जा रहा है. बाकी क्षेत्रों में भी ऐसी घटनाएं बढ़ने के बाद बृहद रूप से जंगलों की केयरिंग कैपेसिटी का अध्ययन करने की जरूरत महसूस की जा रही है.
'जंगलों की केयरिंग कैपेसिटी का अध्ययन किए जाने के बाद बाघों की संख्या को सीमित करने पर विचार किया जाएगा. यह भी उम्मीद है कि जंगलों की डेंसिटी के लिहाज से इन वन्यजीवों की संख्या काफी ज्यादा बढ़ रही है'.
सुबोध उनियाल, वन मंत्री
दिसंबर महीने में बाघ और गुलदारों के आतंक से कई इलाके दहशत में दिखाई दे रहे हैं. इसी महीने 6 दिसंबर को रामनगर में अनीता नाम की महिला को बाघ ने मार दिया था. इसके बाद अगले ही दिन भीमताल में इंदिरा देवी नाम की महिला को भी बाघ ने मौत के घाट उतारा. दो दिन बाद 9 दिसंबर को पुष्पा नाम की महिला हमले में मारी गई. इसके बाद 19 दिसंबर को निकिता को खूंखार शिकारी का निवाला बनना पड़ा. दो दिन पहले देहरादून के राजपुर में 14 साल के बच्चे को घर से ही गुलदार उठाकर ले गया. जिसका बाद में शव बरामद किया गया. हल्द्वानी और टनकपुर में भी विनोद बिष्ट और गीता पर गुलदार ने हमला किया. जिसमें यह दोनों ही घायल हो गए. इस तरह दिसंबर महीने में एक के बाद एक कई हमले हुए.
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2023 में ही मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़े: साल 2023 में गुलदार के हमले में कुल 98 लोग घायल हुए. 18 लोगों को गुलदार के हमलों में जान गंवानी पड़ी. 2023 में बाघ के हमले में 9 लोग घायल हुए. 17 लोगों को बाघ के हमले में जान गंवानी पड़ी. 2023 में हाथी के हमले में छह लोग घायल हुए. पांच लोगों को हाथी के हमलों में अपनी जान गंवानी पड़ी. 2023 में भालू के हमले में 48 लोग घायल हुए. इस साल किसी की भी जान भालू के हमले में नहीं हुई. 2023 में मानव वन्यजीव संघर्ष में 316 लोग घायल हुए. 2023 में मानव वन्यजीव संघर्ष में 66 लोगों की जान गई.
उत्तराखंड में मानव वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिए पहले भी कई तरह के निर्णय लिए गए हैं. अब जिस तरह से घटनाएं बढ़ रही हैं उसके बाद लोगों को जागरूक करने की भी कोशिश की जा रही है. इसके अलावा ऐसे इलाकों को चिन्हित किया जा रहा है जहां बाघ और गुलदार के हमले पिछले कुछ समय में बढ़ रहे हैं. साथ ही वन विभाग के कर्मचारियों की गश्त भी बढ़ाई जा रही है. इन क्षेत्रों में जंगलों के आसपास अंधेरा ना हो इसके लिए स्ट्रीट लाइट लगाई जा रही है. साथ ही घासों को भी काटा जा रहा है. इसके लिए कर्मचारियों को घास काटने की मशीन भी दी जा रही है.
'सरकार के निर्देश के बाद उत्तराखंड वन विभाग के मुख्यालय में मानव वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिए एक प्रकोष्ठ का गठन किया गया है. फिलहाल यह प्रकोष्ठ राज्य बनने के बाद और खासतौर पर पिछले 5 सालों में अब तक हुए मानव वन्य जीव संघर्ष के आंकड़ों को जुटा रहा है. इसमें यह भी जानने की कोशिश हो रही है कि किन वन्य जीवों द्वारा कितने हमले किए गए और कौन-कौन से क्षेत्र इसके लिए संवेदनशील रहे. इतना ही नहीं इन हमलों के पीछे की वजह से लेकर उनके निवारण के लिए जरूरी उपाय का भी खाका तैयार किया जा रहा है. लोगों को जागरूक करते हुए अधिकारियों को भी जरूरी कदम उठाने की दिशा निर्देश दिए गए हैं.
निशांत वर्मा,मुख्य वन संरक्षक
उत्तराखंड के में देखा कुमाऊं क्षेत्र में इस वक्त बाघ और गुलदार के हमले की सबसे ज्यादा हम घटनाएं हो रही हैं. चिंता की बात यह है कि गुलदार की संख्या को लेकर अभी उत्तराखंड वन विभाग के पास कोई लेटेस्ट आंकड़ा नहीं है. जिसके कारण गुलदार की स्थिति और इससे बचाव या उपाय को लेकर भी बहुत ज्यादा दिक्कतें आ रही हैं. उधर दूसरी तरफ कुमाऊं क्षेत्र में बाघों की संख्या भी बेहद तेजी से बढ़ रही है. आंकड़ों के अनुसार कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में ही अकेले 260 बाघ मौजूद हैं. इसके अलावा कुमाऊं में ही वेस्टर्न सर्कल के पांच डिवीजन में 216 बाघ मिले हैं. यह संख्या कई राज्यों में कुल बाघों की संख्या से ज्यादा है.
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एक तरफ बाघों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी तरफ बूढ़े बाघ जंगलों से वयस्क बाघों से मुकाबला न करने के कारण बाहर हो रहे हैं. जाहिर है कि ऐसी स्थिति में भोजन की तलाश में आसान शिकार ढूंढने के लिए बाघ और गुलदार इंसानी बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं. जिसके कारण आये दिन मानव वन्यजीव संघर्ष के मामले दिनों दिन बढ़ रहे हैं.