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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022: घूंघट में ही रह जाता शारदा सिन्हा का टैलेंट...अगर सास से ना मिलता चैलेंज - Folk singer Sharda Sinha struggle story

'बिहार-कोकिला' 'पद्म श्री' और 'पद्म भूषण' शारदा सिन्हा ने महिला दिवस (Folk singer Sharda Sinha on Womens Day 2022) के मौके पर ईटीवी भारत के माध्यम से शुभकामनाएं दी हैं. इस दौरान उन्होंने अपने संघर्षों का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि तमाम कठिनाइयों को दरकिनार करते हुए सफल बना जा सकता है. पढ़ें पूरी खबर..

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022 पर शारदा सिन्हा
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022 पर शारदा सिन्हा
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Published : Mar 5, 2022, 12:57 PM IST

पटना: हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day 2022) मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य महिला अधिकारों को बढ़ावा देना और उनको सशक्त बनाना है. इस मौके पर ईटीवी भारत (Womens Day 2022 with ETV Bharat) ने लोक गायिका शारदा सिन्हा से खास बातचीत की. शारदा सिन्हा ने महिला दिवस पर शुभकामनाएं देते हुए कहा कि संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि सिर्फ अधिकारों की ही बात नहीं करनी चाहिए बल्कि अपनी जिम्मेदारियों को भी ईमानदारी से निभाना चाहिए.

महिला दिवस पर दी शुभकामनाएं
बता दें, शारदा सिन्हा बिहार की लोकप्रिय गायिका हैं. ऐसे में महिला दिवस के मौके पर उन्होंने अपने जीवन के कई अनछुए पहलुओं को साझा किया. उन्होंने तमाम महिलाओं से अपील करते हुए कहा कि आप जिस भी क्षेत्र से जुड़ी हैं, संघर्ष और मेहनत से मुकाम हासिल करें. जो भी लक्ष्य होगा उसे जरूर पाया जा सकता है. मेहनत के अलावा सफलता पाने का और कोई दूसरा रास्ता नहीं है.

शारदा सिन्हा ने ईटीवी भारत से की विशेष बातचीत

'घूंघट में ही सिमट जाती मेरा गायकी'
लोक गायिका शारदा सिन्हा ने बताया कि गायन से लेकर पढ़ाई और जॉब तक के दौरान उन्हें कड़े संघर्ष (Folk singer Sharda Sinha struggle story) का सामना करना पड़ा था. सारी चीजें छोड़कर आगे बढ़ना आसान था, लेकिन सबको साथ लेकर चलना उतना ही मुश्किल. बच्चों के लिए भी बहुत कम समय मिलता था, इसके लिए बुरा भी लगता था. मेरे गायन को लेकर ससुराल में विरोध हुआ. मेरा टैलेंट घूंघट में ही रह जाता पर मैंने इसके लिए संघर्ष किया. 'मेरे संघर्ष के कारण ही मेरे ससुराल वाले मेरे गायन के लिए राजी हुए. मेरी सासु मां मेरे गाने के खिलाफ थीं, लेकिन जब दूसरे लोगों ने मेरी तारीफ की तो वो भी मान गईं. जब बाहरी लोगों ने उनके सामने मेरी तारीफ की तो उनको भी अच्छा लगा. बाद में एक ऐसा मुकाम आया कि मैंने अपनी सास से उनकी सास के जो गीत थे वो सीखे. उन्होंने मुझसे कहा कि तुमसे नहीं हो पाएगा. फिर भी मैंने सीखा और समाज के सामने अपनी गायकी और गाने को प्रस्तुत किया. मुझे गर्व है कि मैं लोक गीतों को आंगन से निकालकर समाज के सामने लाई. आज ये गीत घर-घर फैल चुके हैं.'- शारदा सिन्हा, लोक गायिका

पढ़ें- पद्मभूषण शारदा सिन्हा की मार्मिक अपील का असर, 13 विश्वविद्यालयों के रुके वेतन-पेंशन का फंड जारी

कई कंपनियों ने रिकॉर्डिंग करने से किया था मना
शारदा सिन्हा ने भोजपुरी को एक नई और अलग पहचान दिलाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन उनका कहना है कि इसके योद्धा महेंद्र मिश्रा, बिहारी ठाकुर थे. विंध्यावासिनी जी ने भी अहम योगदान दिया, लेकिन उस समय रेडियो था. हमारे समय में लाउडस्पीकर पर लोग हमें सुनते थे. शुरूआत में तो म्यूजिक कंपनी मेरी रिकॉर्डिंग करने को तैयार नहीं थी. जैसे गीत हम गाते थे वैसा वो नहीं चाहते थे. उन लोगों की अलग तरह की डिमांड थी, लेकिन मैंने कभी कॉम्प्रोमाइज नहीं किया. मैंने भोजपुरी के साथ ही मैथिली में भी बहुत सारे गाने गाए हैं. मुझे भोजपुरी क्षेत्र के लोगों ने बहुत प्यार दिया है.

छठ के प्रति शारदा सिन्हा की क्यों है गहरी आस्था?
शारदा सिन्हा ने बताया कि छठ मेरी नानी करती थी. पटना में छठ के मौके पर नानी किराए में एक घर लेकर छठ करती थी. ससुराल में भी बहुत ही जबरदस्त तरीके से छठ का आयोजन किया जाता था. मुझे शुरू से ही छठ के गीत सुनना बहुत अच्छा लगता था. मैंने जब सबसे पहला छठ का गीत गाया तो उसके कारण लोगों ने मुझे बहुत प्यार दिया. आज भी लोग कहते हैं कि आपके गीत लगाकर छठ करते हैं. सुनकर मैं रोमांचित होती हूं. महिलाओं ने संघर्ष करके बहुत कुछ हासिल किया है. 1908 में वोटिंग का अधिकार महिलाओं को मिला. लगभग 15 हजार महिलाओं ने जुलूस निकाला तब जाकर उन्हें समानता और वोटिंग का अधिकार मिला. महिलाओं को अपने अधिकार को समझना होगा और कड़े संघर्ष को टक्कर देना होगा. साथ ही साथ अपने कर्तव्यों को भी समझना चाहिए. कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां महिलाएं नहीं हैं. एक महिला पढ़ती है तो पूरा घर पढ़ जाता है. घर से लेकर बाहर तक को संभालती हैं. महिलाएं और सशक्त हों और आगे बढ़ें.

पढ़ें- महिला दिवस विशेष : लोकसंगीत की 'मालिनी', जिनके स्वर से लोकगीत महक उठे

'पद्म श्री' एवं 'पद्म भूषण' सम्मान
बता दें कि शारदा सिन्हा बिहार की एक लोकप्रिय गायिका हैं. इनका जन्म 1 अक्टूबर 1952 को हुआ था. शारदा सिन्हा ने मैथिली, बज्जिका, भोजपुरी के अलावा हिन्दी गीत गाये हैं. 'मैने प्यार किया' और 'हम आपके हैं कौन' जैसी फिल्मों में इनके द्वारा गाये गीत काफी प्रचलित हुए हैं. इनके गाये गीतों के कैसेट संगीत बाजार में सहजता से उपलब्ध हैं. दुल्हिन, पीरितिया, मेंहदी जैसे कैसेट्स काफी बिके हैं. बिहार और यहां से बाहर दुर्गा-पूजा, विवाह-समारोह या अन्य संगीत समारोहों में शारदा सिन्हा द्वारा गाये गीत अक्सर सुनाई देते हैं. लोकगीतों के लिए इन्हें 'बिहार-कोकिला', 'पद्म श्री' एवं 'पद्म भूषण' सम्मान से विभूषित किया गया है.

पटना: हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day 2022) मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य महिला अधिकारों को बढ़ावा देना और उनको सशक्त बनाना है. इस मौके पर ईटीवी भारत (Womens Day 2022 with ETV Bharat) ने लोक गायिका शारदा सिन्हा से खास बातचीत की. शारदा सिन्हा ने महिला दिवस पर शुभकामनाएं देते हुए कहा कि संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि सिर्फ अधिकारों की ही बात नहीं करनी चाहिए बल्कि अपनी जिम्मेदारियों को भी ईमानदारी से निभाना चाहिए.

महिला दिवस पर दी शुभकामनाएं
बता दें, शारदा सिन्हा बिहार की लोकप्रिय गायिका हैं. ऐसे में महिला दिवस के मौके पर उन्होंने अपने जीवन के कई अनछुए पहलुओं को साझा किया. उन्होंने तमाम महिलाओं से अपील करते हुए कहा कि आप जिस भी क्षेत्र से जुड़ी हैं, संघर्ष और मेहनत से मुकाम हासिल करें. जो भी लक्ष्य होगा उसे जरूर पाया जा सकता है. मेहनत के अलावा सफलता पाने का और कोई दूसरा रास्ता नहीं है.

शारदा सिन्हा ने ईटीवी भारत से की विशेष बातचीत

'घूंघट में ही सिमट जाती मेरा गायकी'
लोक गायिका शारदा सिन्हा ने बताया कि गायन से लेकर पढ़ाई और जॉब तक के दौरान उन्हें कड़े संघर्ष (Folk singer Sharda Sinha struggle story) का सामना करना पड़ा था. सारी चीजें छोड़कर आगे बढ़ना आसान था, लेकिन सबको साथ लेकर चलना उतना ही मुश्किल. बच्चों के लिए भी बहुत कम समय मिलता था, इसके लिए बुरा भी लगता था. मेरे गायन को लेकर ससुराल में विरोध हुआ. मेरा टैलेंट घूंघट में ही रह जाता पर मैंने इसके लिए संघर्ष किया. 'मेरे संघर्ष के कारण ही मेरे ससुराल वाले मेरे गायन के लिए राजी हुए. मेरी सासु मां मेरे गाने के खिलाफ थीं, लेकिन जब दूसरे लोगों ने मेरी तारीफ की तो वो भी मान गईं. जब बाहरी लोगों ने उनके सामने मेरी तारीफ की तो उनको भी अच्छा लगा. बाद में एक ऐसा मुकाम आया कि मैंने अपनी सास से उनकी सास के जो गीत थे वो सीखे. उन्होंने मुझसे कहा कि तुमसे नहीं हो पाएगा. फिर भी मैंने सीखा और समाज के सामने अपनी गायकी और गाने को प्रस्तुत किया. मुझे गर्व है कि मैं लोक गीतों को आंगन से निकालकर समाज के सामने लाई. आज ये गीत घर-घर फैल चुके हैं.'- शारदा सिन्हा, लोक गायिका

पढ़ें- पद्मभूषण शारदा सिन्हा की मार्मिक अपील का असर, 13 विश्वविद्यालयों के रुके वेतन-पेंशन का फंड जारी

कई कंपनियों ने रिकॉर्डिंग करने से किया था मना
शारदा सिन्हा ने भोजपुरी को एक नई और अलग पहचान दिलाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन उनका कहना है कि इसके योद्धा महेंद्र मिश्रा, बिहारी ठाकुर थे. विंध्यावासिनी जी ने भी अहम योगदान दिया, लेकिन उस समय रेडियो था. हमारे समय में लाउडस्पीकर पर लोग हमें सुनते थे. शुरूआत में तो म्यूजिक कंपनी मेरी रिकॉर्डिंग करने को तैयार नहीं थी. जैसे गीत हम गाते थे वैसा वो नहीं चाहते थे. उन लोगों की अलग तरह की डिमांड थी, लेकिन मैंने कभी कॉम्प्रोमाइज नहीं किया. मैंने भोजपुरी के साथ ही मैथिली में भी बहुत सारे गाने गाए हैं. मुझे भोजपुरी क्षेत्र के लोगों ने बहुत प्यार दिया है.

छठ के प्रति शारदा सिन्हा की क्यों है गहरी आस्था?
शारदा सिन्हा ने बताया कि छठ मेरी नानी करती थी. पटना में छठ के मौके पर नानी किराए में एक घर लेकर छठ करती थी. ससुराल में भी बहुत ही जबरदस्त तरीके से छठ का आयोजन किया जाता था. मुझे शुरू से ही छठ के गीत सुनना बहुत अच्छा लगता था. मैंने जब सबसे पहला छठ का गीत गाया तो उसके कारण लोगों ने मुझे बहुत प्यार दिया. आज भी लोग कहते हैं कि आपके गीत लगाकर छठ करते हैं. सुनकर मैं रोमांचित होती हूं. महिलाओं ने संघर्ष करके बहुत कुछ हासिल किया है. 1908 में वोटिंग का अधिकार महिलाओं को मिला. लगभग 15 हजार महिलाओं ने जुलूस निकाला तब जाकर उन्हें समानता और वोटिंग का अधिकार मिला. महिलाओं को अपने अधिकार को समझना होगा और कड़े संघर्ष को टक्कर देना होगा. साथ ही साथ अपने कर्तव्यों को भी समझना चाहिए. कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां महिलाएं नहीं हैं. एक महिला पढ़ती है तो पूरा घर पढ़ जाता है. घर से लेकर बाहर तक को संभालती हैं. महिलाएं और सशक्त हों और आगे बढ़ें.

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'पद्म श्री' एवं 'पद्म भूषण' सम्मान
बता दें कि शारदा सिन्हा बिहार की एक लोकप्रिय गायिका हैं. इनका जन्म 1 अक्टूबर 1952 को हुआ था. शारदा सिन्हा ने मैथिली, बज्जिका, भोजपुरी के अलावा हिन्दी गीत गाये हैं. 'मैने प्यार किया' और 'हम आपके हैं कौन' जैसी फिल्मों में इनके द्वारा गाये गीत काफी प्रचलित हुए हैं. इनके गाये गीतों के कैसेट संगीत बाजार में सहजता से उपलब्ध हैं. दुल्हिन, पीरितिया, मेंहदी जैसे कैसेट्स काफी बिके हैं. बिहार और यहां से बाहर दुर्गा-पूजा, विवाह-समारोह या अन्य संगीत समारोहों में शारदा सिन्हा द्वारा गाये गीत अक्सर सुनाई देते हैं. लोकगीतों के लिए इन्हें 'बिहार-कोकिला', 'पद्म श्री' एवं 'पद्म भूषण' सम्मान से विभूषित किया गया है.

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