ETV Bharat / bharat

Milkha Singh : फ्लाइंग सिख के नाम से लोकप्रिय, जिनकी सादगी बनी मिसाल

author img

By

Published : Jun 19, 2021, 1:50 AM IST

Updated : Jun 19, 2021, 12:29 PM IST

फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया है. इससे पहले रविवार को उनकी पत्नी निर्मल कौर का निधन हो गया है. मिल्खा सिंह के निधन से खेल जगत को अपूरणीय क्षति हुई है. मिल्खा सिंह का जीवन संघर्षों से भरा रहा. मिल्खा सिंह राष्ट्रमंडल खेलों में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के एकमात्र पुरुष खिलाड़ी थे. आइए उनके जीवन पर एक नजर डालते हैं....

Milkha Singh
Milkha Singh

हैदराबाद : भारत के महान धावक मिल्खा सिंह का निधन हो गया है. इससे पहले उनकी पत्नी और भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर ने कोरोना संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया था. पद्मश्री मिल्खा सिंह 91 वर्ष के थे. मिल्खा सिंह ने जीवन चुनौतियों भरा रहा. वह वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से सुर्खियों में आए थे. 1958, में कटक में हुए राष्ट्रीय खेलों में 200 और 400 मीटर के रिकॉर्ड तोड़ दिए. आइए उनके जीवन के बारे में विस्तार से जानते हैं.....

सिंह एक पूर्व भारतीय ट्रैक और फील्ड धावक थे. 'फ्लाइंग सिख' के नाम से विख्यात मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर सन् 1929 को पाकिस्तान के फैसलाबाद में हुआ था, जबकि अन्य रिपोर्टों के मुताबिक, उनका जन्म 8 अक्टूबर सन् 1935 को हुआ था. सिंह राष्ट्रमंडल खेलों में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के एकमात्र पुरुष खिलाड़ी थे.

1959 में, पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया
खेल में उनकी शानदार उपलब्धियों के लिए साल 1959 में, मिल्खा सिंह को पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. वर्ष 1960 के ओलंपिक खेलों में 400 मीटर की फाइनल दौड़ में मिल्खा सिंह को मिलने वाला चौथा स्थान के लिए सर्वाधिक याद किया जाता है.

व्यक्तिगत जीवन
मिल्खा सिंह का विवाह निर्मल कौर से हुआ था. वह भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान थीं. उनके परिवार में उनके बेटे गोल्फर जीव मिल्खा सिंह और तीन बेटियां हैं .

कैसा रहा करियर
तीन बार फेल कर दिए जाने के बाद भी मिल्खा सिंह सेना में भर्ती होने की कोशिश करते रहे और अंततः वर्ष 1952 में वह सेना की विद्युत मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा में शामिल होने में सफल हो गए. एक बार सशस्त्र बल के उनके कोच हवीलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ के लिए प्रेरित कर दिया, तब से वह अपना अभ्यास कड़ी मेहनत के साथ करने लगे. वह वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से सुर्खियों में आए. वर्ष 1958 में कटक में हुए राष्ट्रीय खेलों में 200 और 400 मीटर के रिकॉर्ड तोड़ दिए.

उनका सबसे बड़ा और शायद सबसे सुखद क्षण तब साबित हुआ जब उन्होंने रोम में हुए वर्ष 1960 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल में चौथे स्थान प्राप्त किया. वर्ष 1964 में, उन्होंने टोक्यो में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल में भी देश का प्रतिनिधित्व किया था. वर्ष 1958 में रोम में आयोजित हुई ओलंपिक रेस में उन्होंने 400 मीटर वाली दौड़ की जीत के साथ-साथ वर्ष 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक भी जीते. इसके अतिरिक्त वह वर्ष 1958 के एशियाई खेलों (200 मीटर और 400 मीटर श्रेणियों में) और वर्ष 1962 के एशियाई खेलों (200 मीटर श्रेणी में) में भी कुछ रिकॉर्ड अपने नाम किए थे.

पाक राष्ट्रपति अयूब खान ने फ्लाइंग सिख का नाम दिया
यह, 1962 में पाकिस्तान में हुई वह रेस थी ,जिसमें मिल्खा सिंह ने टोक्यो एशियाई खेलों की 100 मीटर रेस में स्वर्ण पदक विजेता अब्दुल खलीक को हरा दिया था और उनको पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने 'द फ्लाइंग सिख' नाम दिया.

बाद का जीवन
वर्ष 1958 के एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह को मिली सफलताओं के सम्मान में, उन्हें भारतीय सिपाही के पद से कनिष्ठ कमीशन अधिकारी पर पदोन्नत कर दिया गया. अंततः वह पंजाब शिक्षा मंत्रालय में खेल निदेशक बने और वर्ष 1998 में इस पद से सेवानिवृत्त हुए. मिल्खा सिंह ने जीत में मिले पदक को देश को समर्पित कर दिए थे. शुरुआत में इन सभी पदकों को नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में प्रदर्शित किया गया था, परन्तु बाद में इन्हें पटियाला में एक खेल संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया गया. मिल्खा सिंह द्वारा रोम के ओलंपिक खेलों में पहने गये जूते को भी खेल संग्रहालय में प्रदर्शित कर रखा गया है. इस एडिडास जूते की जोड़ी को मिल्खा सिंह ने वर्ष 2012 में, राहुल बोस द्वारा आयोजित की गई एक चैरिटी नीलामी में दान कर दिया था, जिसे उन्होंने वर्ष 1960 के दशक के फाइनल में पहना था.

'भाग मिल्खा भाग'
मिल्खा सिंह की जीवन कथा को बायोग्राफिकल फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' में प्रदर्शित किया गया था, जिसे राकेश ओमप्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित की गई थी, जिसमें फरहान अख्तर तथा सोनम कपूर ने मुख्य भूमिका निभाई थी. जब मिल्खा सिंह से पूछा गया कि उन्होंने अपने जीवन पर फिल्म बनाने की इजाजत क्यों दी, तो उन्होंने कहा कि अच्छी फिल्में युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत होती हैं और वह खुद फिल्म देखेंगे और देखेंगे कि उनके जीवन की घटनाओं को सही तरीके से प्रदर्शित किया गया है या नहीं. वह युवाओं को यह फिल्म दिखा कर उन्हें एथलेटिक्स में शामिल होने के लिए प्रेरित करना चाहते थे, जिससे भारत को विश्व स्तर पर पदक जीतकर एक गर्व महसूस हो सके.

रिकॉर्ड, पुरस्कार और सम्मान

  • 1958 के एशियाई खेलों की 200 मीटर रेस में – प्रथम
  • 1958 के एशियाई खेलों की 400 मीटर रेस में – प्रथम
  • 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों की 440 गज रेस में – प्रथम
  • 1959 में – पद्मश्री श्री पुरस्कार
  • 400 मीटर में वर्ष 1962 के एशियाई खेलों की 400 मीटर रेस में – प्रथम
  • 1962 के एशियाई खेलों की 4*400 रिले रेस में – प्रथम
  • 1964 के कलकत्ता राष्ट्रीय खेलों की 400 मीटर रेस में – द्वितीय

हैदराबाद : भारत के महान धावक मिल्खा सिंह का निधन हो गया है. इससे पहले उनकी पत्नी और भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर ने कोरोना संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया था. पद्मश्री मिल्खा सिंह 91 वर्ष के थे. मिल्खा सिंह ने जीवन चुनौतियों भरा रहा. वह वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से सुर्खियों में आए थे. 1958, में कटक में हुए राष्ट्रीय खेलों में 200 और 400 मीटर के रिकॉर्ड तोड़ दिए. आइए उनके जीवन के बारे में विस्तार से जानते हैं.....

सिंह एक पूर्व भारतीय ट्रैक और फील्ड धावक थे. 'फ्लाइंग सिख' के नाम से विख्यात मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर सन् 1929 को पाकिस्तान के फैसलाबाद में हुआ था, जबकि अन्य रिपोर्टों के मुताबिक, उनका जन्म 8 अक्टूबर सन् 1935 को हुआ था. सिंह राष्ट्रमंडल खेलों में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के एकमात्र पुरुष खिलाड़ी थे.

1959 में, पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया
खेल में उनकी शानदार उपलब्धियों के लिए साल 1959 में, मिल्खा सिंह को पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. वर्ष 1960 के ओलंपिक खेलों में 400 मीटर की फाइनल दौड़ में मिल्खा सिंह को मिलने वाला चौथा स्थान के लिए सर्वाधिक याद किया जाता है.

व्यक्तिगत जीवन
मिल्खा सिंह का विवाह निर्मल कौर से हुआ था. वह भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान थीं. उनके परिवार में उनके बेटे गोल्फर जीव मिल्खा सिंह और तीन बेटियां हैं .

कैसा रहा करियर
तीन बार फेल कर दिए जाने के बाद भी मिल्खा सिंह सेना में भर्ती होने की कोशिश करते रहे और अंततः वर्ष 1952 में वह सेना की विद्युत मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा में शामिल होने में सफल हो गए. एक बार सशस्त्र बल के उनके कोच हवीलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ के लिए प्रेरित कर दिया, तब से वह अपना अभ्यास कड़ी मेहनत के साथ करने लगे. वह वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से सुर्खियों में आए. वर्ष 1958 में कटक में हुए राष्ट्रीय खेलों में 200 और 400 मीटर के रिकॉर्ड तोड़ दिए.

उनका सबसे बड़ा और शायद सबसे सुखद क्षण तब साबित हुआ जब उन्होंने रोम में हुए वर्ष 1960 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल में चौथे स्थान प्राप्त किया. वर्ष 1964 में, उन्होंने टोक्यो में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल में भी देश का प्रतिनिधित्व किया था. वर्ष 1958 में रोम में आयोजित हुई ओलंपिक रेस में उन्होंने 400 मीटर वाली दौड़ की जीत के साथ-साथ वर्ष 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक भी जीते. इसके अतिरिक्त वह वर्ष 1958 के एशियाई खेलों (200 मीटर और 400 मीटर श्रेणियों में) और वर्ष 1962 के एशियाई खेलों (200 मीटर श्रेणी में) में भी कुछ रिकॉर्ड अपने नाम किए थे.

पाक राष्ट्रपति अयूब खान ने फ्लाइंग सिख का नाम दिया
यह, 1962 में पाकिस्तान में हुई वह रेस थी ,जिसमें मिल्खा सिंह ने टोक्यो एशियाई खेलों की 100 मीटर रेस में स्वर्ण पदक विजेता अब्दुल खलीक को हरा दिया था और उनको पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने 'द फ्लाइंग सिख' नाम दिया.

बाद का जीवन
वर्ष 1958 के एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह को मिली सफलताओं के सम्मान में, उन्हें भारतीय सिपाही के पद से कनिष्ठ कमीशन अधिकारी पर पदोन्नत कर दिया गया. अंततः वह पंजाब शिक्षा मंत्रालय में खेल निदेशक बने और वर्ष 1998 में इस पद से सेवानिवृत्त हुए. मिल्खा सिंह ने जीत में मिले पदक को देश को समर्पित कर दिए थे. शुरुआत में इन सभी पदकों को नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में प्रदर्शित किया गया था, परन्तु बाद में इन्हें पटियाला में एक खेल संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया गया. मिल्खा सिंह द्वारा रोम के ओलंपिक खेलों में पहने गये जूते को भी खेल संग्रहालय में प्रदर्शित कर रखा गया है. इस एडिडास जूते की जोड़ी को मिल्खा सिंह ने वर्ष 2012 में, राहुल बोस द्वारा आयोजित की गई एक चैरिटी नीलामी में दान कर दिया था, जिसे उन्होंने वर्ष 1960 के दशक के फाइनल में पहना था.

'भाग मिल्खा भाग'
मिल्खा सिंह की जीवन कथा को बायोग्राफिकल फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' में प्रदर्शित किया गया था, जिसे राकेश ओमप्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित की गई थी, जिसमें फरहान अख्तर तथा सोनम कपूर ने मुख्य भूमिका निभाई थी. जब मिल्खा सिंह से पूछा गया कि उन्होंने अपने जीवन पर फिल्म बनाने की इजाजत क्यों दी, तो उन्होंने कहा कि अच्छी फिल्में युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत होती हैं और वह खुद फिल्म देखेंगे और देखेंगे कि उनके जीवन की घटनाओं को सही तरीके से प्रदर्शित किया गया है या नहीं. वह युवाओं को यह फिल्म दिखा कर उन्हें एथलेटिक्स में शामिल होने के लिए प्रेरित करना चाहते थे, जिससे भारत को विश्व स्तर पर पदक जीतकर एक गर्व महसूस हो सके.

रिकॉर्ड, पुरस्कार और सम्मान

  • 1958 के एशियाई खेलों की 200 मीटर रेस में – प्रथम
  • 1958 के एशियाई खेलों की 400 मीटर रेस में – प्रथम
  • 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों की 440 गज रेस में – प्रथम
  • 1959 में – पद्मश्री श्री पुरस्कार
  • 400 मीटर में वर्ष 1962 के एशियाई खेलों की 400 मीटर रेस में – प्रथम
  • 1962 के एशियाई खेलों की 4*400 रिले रेस में – प्रथम
  • 1964 के कलकत्ता राष्ट्रीय खेलों की 400 मीटर रेस में – द्वितीय
Last Updated : Jun 19, 2021, 12:29 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.