चेन्नई: तमिलनाडु में एमके स्टालिन की द्रमुक सरकार को परेशानी में डालने की कोशिश में, तमिलनाडु के राज्यपाल रवि ने खुद एक असहज स्थिति में आ गए हैं. सत्तारूढ़ द्रमुक के साथ जारी लड़ाई में वह एक बार फिर लड़खड़ा गए हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद गुरुवार को जेल में बंद मंत्री सेंथिल बालाजी को बर्खास्त करने की घोषणा के पांच घंटे के भीतर ही उन्हें अपना निर्णय वापस लेना पड़ा.
जेल में बंद मंत्री को कैबिनेट से बर्खास्त करने के अपने फैसले पर रोक लगाने के लिए राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा, जिसके चलते डीएमके को हौसला मिला और इसके बाद सत्तारूढ़ दल के साथ-साथ उसके सहयोगी भी राज्यपाल रवि के खिलाफ आक्रामक हो गए हैं. जेल में बंद मंत्री को वापस बुलाने की मांग पहले से कहीं ज्यादा तेज हो गई है. राज्यपाल ने मई के अंतिम सप्ताह में ही बालाजी को मंत्रालय से हटाने के लिए पत्र लिखा था, हालांकि उन्हें 14 जून को गिरफ्तार कर लिया गया था.
अब, राज्यपाल को एक दृढ़ और स्पष्ट प्रतिक्रिया में, मुख्यमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी सरकार सेंथिल बालाजी को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री के रूप में बनाए रखने पर दृढ़ है. राजभवन को भेजे संदेश में उन्होंने कहा कि राज्यपाल के विचार, उनके पहले पत्र में व्यक्त किए गए, संविधान के विपरीत हैं. सरकार सेंथिल बालाजी को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री के रूप में बनाए रखने के लिए बहुत दृढ़ है. उन्होंने यह पत्र पार्टी के वरिष्ठ सहयोगियों और कानूनी विशेषज्ञों से विचार-विमर्श के बाद लिखा.
बताया जा रहा है कि यह पत्र शुक्रवार शाम को ही राजभवन में भेज दिया गया है. मीडिया को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री थंगम थेनारासु ने कहा कि स्टालिन ने अपने पत्र में बताया है कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत किसी मंत्री की नियुक्ति और निष्कासन मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है. थेनारासु ने उभरती स्थिति के आधार पर सभी कानूनी विकल्प खुले रखने की बात करते हुए कहा कि राज्यपाल ने बिना सोचे समझे और आवश्यक कानूनी सलाह के यह जल्दबाजी और एकतरफा निर्णय लिया था.
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु सरकार इसकी उपेक्षा करती है और इसे पूरी तरह से खारिज कर देती है. क्योंकि, उनके पास यह निर्णय लेने की कोई शक्ति निहित नहीं है. इस पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने दो टूक फैसला सुनाया था. वह संवैधानिक स्थिति से पूरी तरह अवगत हैं कि राज्यपाल के पास किसी मंत्री को नियुक्त करने या बर्खास्त करने में स्वतंत्र रूप से कार्य करने की कोई शक्ति नहीं है. फिर भी उन्होंने नासमझी में यह दुस्साहसिक कदम उठाया है. केंद्रीय गृह मंत्री की सलाह पर राज्यपाल ने उन्हें स्थगित रखा था.
आरोप लगाते हुए सेंथिल बालाजी के खिलाफ निर्देशित कार्रवाई में राजनीतिक प्रतिशोध की बू आती है, उन्होंने कहा कि हम सेंथिल बालाजी से संबंधित मामले की किसी भी निष्पक्ष जांच के विरोधी नहीं हैं. लेकिन, जब एआईएडीएमके के पूर्व मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले हैं, जिनके आवासों की तलाशी ली गई है, तो हम बालाजी को बाहर करने पर सवाल उठाते हैं. विपक्ष से लेकर राज्यपाल तक बालाजी को निशाना बनाने की एकनिष्ठ कोशिश क्यों?
उन्होंने कहा कि सिर्फ आरोपी ठहराए जाने के कारण उन्हें बर्खास्त करने की जरूरत नहीं है. यहां तक कि आरोप पत्र भी दाखिल नहीं किया गया है. इसलिए, यह अस्वीकार्य है. दिवंगत जयललिता अपने खिलाफ आरोप तय होने के बावजूद पद पर बनी रहीं. यहां तक कि आपराधिक मामलों का सामना कर रहे केंद्रीय मंत्री भी पद पर बने हुए हैं. हल्के-फुल्के अंदाज में वरिष्ठ वकील और डीएमके के राज्यसभा सांसद पी. विल्सन ने कहा कि यदि अनुमति दी गई, तो राज्यपाल इस बहाने से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद से हटा देंगे कि उन्होंने उन्हें पद की शपथ दिलाई थी.
विल्सन ने कहा कि राज्यपाल अच्छी तरह जानते हैं कि उनके पास किसी मंत्री को बर्खास्त करने की कोई शक्ति नहीं है. यहां तक कि संवैधानिक प्रावधान 154, 163 और 164, जिनका उन्होंने उल्लेख किया था, उन्हें कोई शक्ति प्रदान नहीं करते जैसा कि उन्होंने दावा किया था. शीर्ष अदालत के कई फैसलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि राज्यपाल के कार्य मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना किए गए तो अमान्य होंगे. उन्होंने सेंथिल बालाजी को अयोग्य ठहराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठाया.