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खाद की उपलब्धता : कितनी हकीकत कितना फसाना, एक नजर

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Published : Nov 30, 2022, 10:55 PM IST

Updated : Dec 1, 2022, 7:33 AM IST

केंद्र सरकार भले ही यह दावा करे कि देश में खाद की कोई समस्या नहीं है, और किसानों को उनकी मांग के अनुसार खाद उपलब्ध करवा दिया जा रहा है, पर ईटीवी भारत ने अपनी पड़ताल मे पाया कि सरकार के दावे पूरी तरह सच नहीं हैं. अभी भी कई ऐसे राज्य हैं, जिन्हें उनकी मांग के अनुसार फर्टिलाइजर उपलब्ध नहीं करवाया गया है

lack of manure
खाद की कमी

हैदराबाद : रबी मौसम में खाद की जरूरत बढ़ जाती है. फार्टिलाइजर किसानों की पहुंच के बाहर न हो, इसलिए सरकार ने इस पर दी जाने वाली सब्सिडी दोगुनी कर दी है. बावजूद इसके कई राज्य ऐसे हैं, जो खाद की किल्लतों का सामना कर रहे हैं.

अब राजस्थान का ही उदाहरण ले लीजिए. यहां पर अक्टूबर-नवंबर महीने के लिए नौ लाख मिट्रिक टन यूरिया को उपलब्ध करवाने की मंजूरी दी गई थी. इसके बावजूद वहां पर 4.65 लाख मि. टन खाद उपलब्ध करवाई गई. यहां पर 3.20 मि. टन डीएपी की जरूरत थी, लेकिन दिया गया मात्र 2.15 लाख मि. टन.

सिर्फ राजस्थान ही किल्लत का सामना नहीं कर रहा है. बिहार और हिमाचल जैसे राज्य, जो मुख्य रूप से कृषि प्रधान राज्य है, वहां पर भी ऐसी ही स्थिति है. ईटीवी भारत ने हिमाचल प्रदेश स्टेट को-ऑपरेटिव मार्केटिंग एंड कंज्यूमर्स फेडरेशन लि. आंकड़ों का अध्ययन किया. इसके अनुसार हिमाचल ने आठ हजार मि.टन फर्टिलाइजर की मांग की थी, लेकिन उसे मात्र 8 हजार टन ही उपलब्ध करवाया गया. यहां पर 12 लाख किसानों के सामने खेती को लेकर बड़ी समस्या आ गई है.

हिमाचल किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह तंवर ने कहा कि रबी सीजन में बुवाई के समय उर्वरकों की अनुपलब्धता का सीधा असर गेहूं, मटर, आलू और सेब जैसी फसलों के उत्पादन पर पड़ेगा. हालांकि हिमफेड के अध्यक्ष गणेश दत्त ने आश्वासन दिया कि कमी को जल्द ही दूर कर लिया जाएगा, लेकिन राज्य के किसानों के लिए स्थिति से निपटना मुश्किल है.

बिहार और दिल्ली जैसे राज्यों में भी यही स्थिति है. दिल्ली के किसान हर साल अक्टूबर की शुरुआत में सरसों की बुआई शुरू कर देते हैं. सरसों हमेशा 15 अक्टूबर तक और गेहूं नवंबर में बोया जाता है. दिल्ली के किसान पड़ोसी राज्यों में खाद की कमी की वजह से यहां भी कमी का सामना कर रहे हैं.

कंझावला गांव के किसान राज डबास कहते हैं कि दिल्ली को 10 हजार मीट्रिक टन खाद की जरूरत है, लेकिन दिल्ली के किसानों को खाद सोनीपत से खरीदनी पड़ रही है. नवंबर माह में यूरिया खाद के साथ डीएपी खाद की भी मांग काफी अधिक रहती है. उनके अनुसार दिल्ली के किसानों को कम से कम 2500 मीट्रिक टन उर्वरक की आवश्यकता होती है, जो उपलब्ध नहीं है.

ये भी पढ़ें - कर्नाटक: 205 किलो प्याज बेचने वाले किसान को महज 8 रुपये का मुनाफा

बिहार की तो स्थिति कुछ अलग ही है. ऐसा लगता है कि केंद्र और राज्य के बीच चल रही राजनीतिक रस्सा-कशी को भी यहां पर भी महसूस किया जा सकता है. राज्य के आंकड़े बताते हैं कि बिहार को फर्टिलाइजर की जितनी भी जरूरत है, केंद्र मात्र 37 फीसदी ही उपल्बध करा पाया है. बिहार सरकार के अनुसार पूरे राज्य में फर्टिलाइजर की कमी है. पर केंद्र राज्य के आंकड़ों से सहमत नहीं है.

केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में अभी भी 1.68 लाख मिट्रिक टन यूरिया स्टोर में रखा हुआ है, लेकिन राज्य सरकार वितरित कर पाने में विफल हो रही है. बिहार के कृषि मंत्री सर्वजीत ने इसका खंडन किया है. मंत्री ने कहा, ‘वर्तमान सीजन में हमारी जरूरत 255000 मि.टन यूरिया की है, लेकिन केंद्र ने मात्र 37 फीसद ही उपलब्ध करवाया है.

कुछ राज्यों में चल रहे संकट के बावजूद तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे कई राज्य हैं जहां मांग आपूर्ति का अंतर इतना स्पष्ट नहीं है. यह केवल इस रबी के मौसम लिए उर्वरक सब्सिडी को दोगुना करने के केंद्र के फैसले के कारण ही संभव हो पाया है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जुलाई में रबी सीजन के लिए फॉस्फेटिक और पोटाशिक (पी एंड के) उर्वरकों के लिए नाइट्रोजन (एन), फास्फोरस (पी), पोटाश (के) और सल्फर (एस) के लिए 51,875 करोड़ रुपये की सब्सिडी को मंजूरी दी थी. रबी सीजन के लिए कुल उर्वरक सब्सिडी यूरिया के लिए 80,000 करोड़ रुपये, 1,38,875 करोड़ रुपये और रबी और खरीफ दोनों के लिए सब्सिडी राशि 2.25 लाख करोड़ रुपये थी. केंद्र सरकार के मुताबिक यह अब तक की सबसे ज्यादा सब्सिडी थी. पिछले साल यह 1.65 लाख करोड़ रुपए था.

हैदराबाद : रबी मौसम में खाद की जरूरत बढ़ जाती है. फार्टिलाइजर किसानों की पहुंच के बाहर न हो, इसलिए सरकार ने इस पर दी जाने वाली सब्सिडी दोगुनी कर दी है. बावजूद इसके कई राज्य ऐसे हैं, जो खाद की किल्लतों का सामना कर रहे हैं.

अब राजस्थान का ही उदाहरण ले लीजिए. यहां पर अक्टूबर-नवंबर महीने के लिए नौ लाख मिट्रिक टन यूरिया को उपलब्ध करवाने की मंजूरी दी गई थी. इसके बावजूद वहां पर 4.65 लाख मि. टन खाद उपलब्ध करवाई गई. यहां पर 3.20 मि. टन डीएपी की जरूरत थी, लेकिन दिया गया मात्र 2.15 लाख मि. टन.

सिर्फ राजस्थान ही किल्लत का सामना नहीं कर रहा है. बिहार और हिमाचल जैसे राज्य, जो मुख्य रूप से कृषि प्रधान राज्य है, वहां पर भी ऐसी ही स्थिति है. ईटीवी भारत ने हिमाचल प्रदेश स्टेट को-ऑपरेटिव मार्केटिंग एंड कंज्यूमर्स फेडरेशन लि. आंकड़ों का अध्ययन किया. इसके अनुसार हिमाचल ने आठ हजार मि.टन फर्टिलाइजर की मांग की थी, लेकिन उसे मात्र 8 हजार टन ही उपलब्ध करवाया गया. यहां पर 12 लाख किसानों के सामने खेती को लेकर बड़ी समस्या आ गई है.

हिमाचल किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह तंवर ने कहा कि रबी सीजन में बुवाई के समय उर्वरकों की अनुपलब्धता का सीधा असर गेहूं, मटर, आलू और सेब जैसी फसलों के उत्पादन पर पड़ेगा. हालांकि हिमफेड के अध्यक्ष गणेश दत्त ने आश्वासन दिया कि कमी को जल्द ही दूर कर लिया जाएगा, लेकिन राज्य के किसानों के लिए स्थिति से निपटना मुश्किल है.

बिहार और दिल्ली जैसे राज्यों में भी यही स्थिति है. दिल्ली के किसान हर साल अक्टूबर की शुरुआत में सरसों की बुआई शुरू कर देते हैं. सरसों हमेशा 15 अक्टूबर तक और गेहूं नवंबर में बोया जाता है. दिल्ली के किसान पड़ोसी राज्यों में खाद की कमी की वजह से यहां भी कमी का सामना कर रहे हैं.

कंझावला गांव के किसान राज डबास कहते हैं कि दिल्ली को 10 हजार मीट्रिक टन खाद की जरूरत है, लेकिन दिल्ली के किसानों को खाद सोनीपत से खरीदनी पड़ रही है. नवंबर माह में यूरिया खाद के साथ डीएपी खाद की भी मांग काफी अधिक रहती है. उनके अनुसार दिल्ली के किसानों को कम से कम 2500 मीट्रिक टन उर्वरक की आवश्यकता होती है, जो उपलब्ध नहीं है.

ये भी पढ़ें - कर्नाटक: 205 किलो प्याज बेचने वाले किसान को महज 8 रुपये का मुनाफा

बिहार की तो स्थिति कुछ अलग ही है. ऐसा लगता है कि केंद्र और राज्य के बीच चल रही राजनीतिक रस्सा-कशी को भी यहां पर भी महसूस किया जा सकता है. राज्य के आंकड़े बताते हैं कि बिहार को फर्टिलाइजर की जितनी भी जरूरत है, केंद्र मात्र 37 फीसदी ही उपल्बध करा पाया है. बिहार सरकार के अनुसार पूरे राज्य में फर्टिलाइजर की कमी है. पर केंद्र राज्य के आंकड़ों से सहमत नहीं है.

केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में अभी भी 1.68 लाख मिट्रिक टन यूरिया स्टोर में रखा हुआ है, लेकिन राज्य सरकार वितरित कर पाने में विफल हो रही है. बिहार के कृषि मंत्री सर्वजीत ने इसका खंडन किया है. मंत्री ने कहा, ‘वर्तमान सीजन में हमारी जरूरत 255000 मि.टन यूरिया की है, लेकिन केंद्र ने मात्र 37 फीसद ही उपलब्ध करवाया है.

कुछ राज्यों में चल रहे संकट के बावजूद तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे कई राज्य हैं जहां मांग आपूर्ति का अंतर इतना स्पष्ट नहीं है. यह केवल इस रबी के मौसम लिए उर्वरक सब्सिडी को दोगुना करने के केंद्र के फैसले के कारण ही संभव हो पाया है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जुलाई में रबी सीजन के लिए फॉस्फेटिक और पोटाशिक (पी एंड के) उर्वरकों के लिए नाइट्रोजन (एन), फास्फोरस (पी), पोटाश (के) और सल्फर (एस) के लिए 51,875 करोड़ रुपये की सब्सिडी को मंजूरी दी थी. रबी सीजन के लिए कुल उर्वरक सब्सिडी यूरिया के लिए 80,000 करोड़ रुपये, 1,38,875 करोड़ रुपये और रबी और खरीफ दोनों के लिए सब्सिडी राशि 2.25 लाख करोड़ रुपये थी. केंद्र सरकार के मुताबिक यह अब तक की सबसे ज्यादा सब्सिडी थी. पिछले साल यह 1.65 लाख करोड़ रुपए था.

Last Updated : Dec 1, 2022, 7:33 AM IST
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