नई दिल्ली : चौदहवीं शताब्दी में तुगलक वंश के शासक फिरोजशाह तुगलक ने फिरोजशाह कोटला किले का निर्माण कराया था. वर्तमान समय में यह किला भारत में तुगलक वंश के शासन का प्रतीक है, लेकिन इसकी ऐतिहासिक महत्ता भारत की आजादी की लड़ाई से भी जुड़ती है. इसी किले में क्रांतिकारियों की वो महत्वपूर्ण बैठक हुई थी, जिसकी परिणति अंग्रेजी शासन के खिलाफ कई महत्वपूर्ण घटनाओं के रूप में दिखी.
'सितंबर 1928 में यहां हुई थी मीटिंग'
सितंबर 1928 में फ़िरोजशाह कोटला किले में भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारियों ने एक महत्वपूर्ण बैठक की थी. इसी बैठक से निकला हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन. इसी बैठक में इसका फैसला हुआ था कि हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में सोशलिस्ट शब्द जोड़ा जाएगा और इसके बाद, क्रांति के जरिए आजादी पाने की सोच रखने वाले एक नई ताकत के साथ सामने आए.
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'किले में कहीं नहीं है जानकारी का पत्थर'
सेंट्रल एसेम्बली पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा बम फेंकने की घटना में भी इस बैठक का बड़ा योगदान है, लेकिन इन तमाम ऐतिहासिक उल्लेखों से इतर, इस पूरे किले में कहीं भी इसकी जानकारी देने वाला पत्थर नहीं है कि यहां इन क्रांतिकारियों के पांव पड़े थे. हालांकि, यहां से चंद कदमों की दूरी पर ही बहादुरशाह जफर रोड पर स्थिति है शहीद पार्क, जहां लगी हैं शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की आदमकद प्रतिमा.
'टूटा पड़ा है मूर्तियों की नींव का पत्थर'
आजादी के आंदोलन में इस जगह की अहमियत को देखते हुए 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यहां इन क्रांतिकारियों की प्रतिमाओं का अनावरण किया था और इस पार्क को नाम दिया गया था शहीद पार्क, लेकिन आज यह बदइंतजामी और बेकद्री से जूझ रहा है. अपने खून से देश की आजादी की लड़ाई की नींव को सींचने वाले क्रांतिकारियों की मूर्तियां यहां आज खंडित आधार पर टिकी हैं. मूर्तियों की नींव का पत्थर टूटा पड़ा है और यह भगत सिंह की पुण्यतिथि पर देश के लिए शर्म की बात है.