अगरतला: 50 साल के फजरुल हक ने अपनी बहन शाइस्ता बेगम को इस जीवनकाल में दोबारा देखने की सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं. बता दें, उन्होंने बचपन से ही अपनी छोटी बहन को समाज की बुराइयों से बचाने के लिए वह सब कुछ किया, जो एक भाई को करना चाहिए था.
फजरुल हक अच्छी तरह से जानते थे कि उनके बगैर उनकी बहन का जीवन आसान नहीं होगा क्योंकि वह दूसरों दूसरों की तरह काम करने में सक्षम नहीं थी. 13 साल पहले ऐसा कुछ हुआ कि वह उसकी निगरानी नहीं कर सका. जिसके परिणामस्वरुप वह अपनी बहन से बिछड़ गए. बता दें, पिछले साल फजरुल हक ने जीवन के 50 साल पूरे किए हैं और पूरे देश में अपनी बहन को खोजते रहे. 13 साल के बाद पता चला कि बांग्लादेश के रास्ते वह सीमा पार चली गई थीं और अगरतला शहर के एक मानसिक अस्पताल में भर्ती हैं.
बांग्लादेश के सहायक उच्चायुक्त की मदद से उन्होंने अधिकारियों से संपर्क किया और जरूरी दस्तावेज के बाद यह पुष्टि हुई कि यह शाइस्ता बेगम हैं. फजरुल ने बिना समय बर्बाद किए अधिकारियों से संपर्क किया और शुक्रवार को अपनी बहन शायस्ता से मिले. उन्होंने कहा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपनी बहन से एक बार फिर मिल सकूंगा. मुझे बहुत खुशी है कि मेरी बहन इतने लंबे समय के बाद मेरे साथ वापस आ गई है.
उन्होंने कहा कि बहन को देखने के इंतजार में मेरी आंखे पथरा गई थीं. फजरुल हक और शाइस्ता अखौरा एकीकृत चेक पोस्ट होते हुए फरीदपुर स्थित अपने पैतृक घर लौटे. घर लौटने पर उनके भाई अमीर मजुमदार उनको लेने आया. दोनों परिवारों ने भारत सरकार और त्रिपुरा के लोगों को धन्यवाद भी दिया.
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इस मामले पर बताते हुए बांग्लादेश के सहायक उच्चायुक्त जुबेरुल हुसैन ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार अगरतला के आधुनिक मानसिक अस्पताल में 22 मानसिक रोगी भर्ती हैं. उन्हें इस बात का कोई पता नहीं है कि उन्होंने भारतीय क्षेत्र में कैसे प्रवेश किया. उन्होंने कहा कि उनमें से दस ठीक हो गए हैं और हम उन्हें अपने घर वापस भेजने के लिए जांच कर रहे हैं. बाकी लोगों को भी उनके स्वास्थ्य के आधार पर वापस भेजा जाएगा.