नई दिल्ली/गाजियाबाद : किसान नेता राकेश टिकैत (Farmer leader Rakesh Tikait) ने कहा कि सरकार फेयर कंडीशन लगा रही कि किसान आएं बातचीत करें, लेकिन कानून खत्म नहीं होंगे, और धरना खत्म कर दें. टिकैत ने कहा कि हम चाहते हैं कि सरकार को जो भी बातचीत करनी, हाउस के अंदर करे, लेकिन कंडीशन लगाकर बातचीत नहीं होगी. उन्होंने सवाल किया कि वो कौन सा सिस्टम है, जिससे मंडी बच जाएंगी. देश में कई मंडी बंदी की कगार पर हैं. बिहार में सभी मंडियां बंद हो चुकी हैं.
सरकार से बातचीत को हम तैयार- टिकैत
उन्होंने कहा कि जब मंडियों में पैसा नहीं होगा, तो मंडी खत्म हो जाएंगी, मंडी किसानों का एक प्लेटफॉर्म हैं. सरकार बिहार की तरह पूरे देश में मंडी खत्म करना चाहती है. उन्होंने कहा कि सरकार को जब भी बातचीत करनी हो, उसके लिए हम तैयार हैं. कंडीशन लगाकर कोई बात नहीं होगी. जब कानून वापस नहीं होंगे, तब तक आंदोलन जारी रहेगा.
राकेश टिकैत ने कहा कि गेहूं की खरीद नहीं हुई. 1975 रुपये एमएसपी होने के बाद कैसे किसानों ने 1400 रुपये के रेट में सरकार केंद्रों पर ही गेंहू लूट ली गई, सबको पता है. अब चावल की फसल आएगी तो उसका भी यही हाल होगा, इसीलिए किसान एमएसपी पर कानून की मांग कर रहा है लेकिन गूंगी बहरी सरकार को कुछ सुनाई नहीं देता. यूपी में किसान को देश में सबसे महंगी बिजली दी जा रही है.
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किसानों का प्रदर्शन जारी
बता दें कि केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में देश की राजधानी दिल्ली का घेराव कर रहे किसानों के प्रदर्शन को लगभग 7 महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है. केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली चलो मार्च के तहत अपना प्रदर्शन शुरू किया था. दिल्ली का घेराव कर रहे इन किसानों के प्रदर्शन को बीती 26 जून के दिन सात महीने हो चुके हैं. ये किसान दिल्ली के टीकरी, सिंघू और गाजीपुर बॉर्डर पर डटे हुए हैं.
शुरुआत में इस प्रदर्शन में सबसे ज्यादा पंजाब के किसान शामिल हुए, लेकिन धीरे-धीरे इसमें यूपी से लेकर उत्तराखंड और हरियाणा समेत कुछ अन्य राज्यों के किसान भी शामिल हो गए. किसानों के इस आंदोलन को शुरूआत में भारी समर्थन भी मिला. देश के अलावा दुनिया के अन्य देशों में रह रहे भारतीय भी इन किसानों के समर्थन में उतरे. सोशल मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया तक में किसानों का हल्ला बोल सुर्खियां बटोरता रहा.
इस पूरे मसले पर किसान और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है, लेकिन अब तक बात नहीं बन पाई है. किसान नेताओं के प्रतिनिधिमंडल और सरकार के बीच 11 मुलाकातें हुईं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. इन बैठकों में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी शामिल हुए, लेकिन किसान और सरकार अपने-अपने पाले में डटे रहे. किसान कानून वापस लेने की मांग पर अड़े रहे और सरकार अपने फैसले पर कायम रही.