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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 'वोट की चोट' देने पर आमादा किसान नेता

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Published : Mar 4, 2021, 8:08 PM IST

Updated : Mar 4, 2021, 8:20 PM IST

ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा ने देश के अलग-अलग राज्यों में किसान महापंचायत आयोजित करने का एक कार्यक्रम तय किया है. लगातार उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तराखंड में महापंचायत आयोजित किए जा रहे हैं. यह आगे भी जारी रहेगा.

Farmer l
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नई दिल्ली : पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसान संगठनों के तेवर भी चढ़े हुए हैं. संयुक्त किसान मोर्चा ने भी घोषणा की कि वे चुनावी राज्यों में किसान महापंचायत का आयोजन करेंगे. जहां किसानों से अपील करेंगे कि वह भाजपा को वोट न दें.

किसान आंदोलन पर पहले भी राजनीतिक होने के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन विधानसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ कैंपेन करने की घोषणा से अब एक बार फिर यह आरोप सामने आने लगे हैं कि कहीं न कहीं किसान आंदोलन का उद्देश्य राजनीतिक हो गया है. हालांकि, किसान नेता इस बात का खंडन करते हैं.

बीजेपी के बहिष्कार की अपील

अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा जिस तरह से अन्य राज्यों में अपने कार्यक्रम कर रहे हैं, उसी तरह से इन पांच राज्यों में भी होंगे. इन राज्यों में अभी चुनाव हैं. इसका मतलब यह नहीं कि ये देश से बाहर हैं. इसलिए किसान मोर्चा पर राजनीति या चुनाव में कूदने का आरोप निराधार है. चुनाव की घोषणा के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने सभी किसान संगठनों की बैठक में यह निर्णय लिया कि वह इन पांच राज्यों में जाएंगे और लोगों से बीजेपी का बहिष्कार करने की अपील करेंगे.

'वोट की चोट' देने पर आमादा किसान नेता

हर राज्य में होंगे कार्यक्रम

कार्यक्रम की शुरुआत पश्चिम बंगाल से होने के संकेत हैं. किसान मोर्चा के कार्यक्रम का सीधा असर चुनावों पर जरूर पड़ेगा. हन्नान मोल्लाह खुद पश्चिम बंगाल से सीपीआईएम पार्टी के 8 बार सांसद रह चुके हैं. ऐसे में किसानों के मंच पर उनकी मौजूदगी यह एक तरफ वह किसान मोर्चा के नेता के रूप में लोगों को बीजेपी को वोट न देने की अपील करेगी, वहीं दूसरी तरफ वह पश्चिम बंगाल में सीपीएम के प्रमुख चेहरों में से एक की बात भी लोग मानेंगे.

महापंचायत से होगा एलान

हन्नान मोल्लाह का कहना है कि किसान आंदोलन और दलगत राजनीति दोनों अलग-अलग चीजें हैं. ऐसा नहीं है कि संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े सभी बड़े चेहरे पश्चिम बंगाल में आगामी 12 मार्च को होने वाले किसान महापंचायत में उपस्थित रहेंगे. किसान महापंचायत का आयोजन किसान यूनियनों की पश्चिम बंगाल इकाई ने तय किया है और यह राज्य इकाई का ही कार्यक्रम है. इस समय किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं और सभी बड़े नेता दिल्ली के बोर्डरों पर मौजूद हैं. ऐसे में कुछ नेता बंगाल के किसान महापंचायत में भी जाएंगे जैसे सभी अन्य महापंचायतों में जाते रहे हैं.

बीजेपी को वोट की चोट

कुल मिलाकर हन्नान मोल्लाह ने यह स्पष्ट किया कि संयुक्त किसान मोर्चा के कार्यक्रम को राजनीति से न जोड़ा जाए. लेकिन स्वयं संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने ही कहा है कि वह बीजेपी को 'वोट की चोट' देना चाहते हैं. इसलिए राज्यों में घोषित विधानसभा चुनावों में किसान नेता सक्रिय भूमिका में दिखेंगे. इसमें बंगाल का नाम सबसे पहले लिया गया और पश्चिम बंगाल के सभी 294 विधानसभा क्षेत्र में जाकर किसानों को पत्र देने का कार्यक्रम भी रखा गया है.

बंगाल सबसे महत्वपूर्ण

मोल्लाह कहते हैं कि किसानों को दिया जाने वाला पत्र एक सामान्य पत्र है, जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा अपील की जाएगी. इन चुनावों में उस पार्टी का साथ न दें जिनके द्वारा यह तीन काले कानून लाए गए हैं. यह पत्र सभी राज्यों के लिए समान ही रहेगा. बंगाल के लिए कोई विशेष नहीं होगा. चुनाव में मतदाताओं की बात होती है और देश में सबसे ज्यादा मतदाता किसान ही हैं. इसलिए किसानों की भूमिका इन विधानसभा चुनावों में भी महत्वपूर्ण है.

किसानों से दूर है सरकार

किसान आंदोलन के अब 100 दिन पूरे होने वाले हैं. लेकिन 26 जनवरी को किसानों के ट्रेक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद सरकार और किसान संगठनों के बीच का गतिरोध गहराता जा रहा है. किसान नेताओं में इसको लेकर निराशा का भाव स्पष्ट झलकता है. हन्नान मोल्लाह कहते हैं कि जब प्रधानमंत्री ने कहा कि वह किसानों से महज एक कॉल दूर हैं, तो सरकार को अपने प्रस्ताव में कुछ संशोधन कर किसानों के पास आना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सरकार बड़ा दिल रखने की बात करती है लेकिन वही पुराने प्रस्ताव के साथ आती है, जिसे किसानों ने पहले ही इनकार कर दिया है.

यह भी पढ़ें- अनुराग और तापसी से पुणे के वेस्टिन होटल में हुई पूछताछ, मोबाइल-लैपटॉप जब्त

नई दिल्ली : पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसान संगठनों के तेवर भी चढ़े हुए हैं. संयुक्त किसान मोर्चा ने भी घोषणा की कि वे चुनावी राज्यों में किसान महापंचायत का आयोजन करेंगे. जहां किसानों से अपील करेंगे कि वह भाजपा को वोट न दें.

किसान आंदोलन पर पहले भी राजनीतिक होने के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन विधानसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ कैंपेन करने की घोषणा से अब एक बार फिर यह आरोप सामने आने लगे हैं कि कहीं न कहीं किसान आंदोलन का उद्देश्य राजनीतिक हो गया है. हालांकि, किसान नेता इस बात का खंडन करते हैं.

बीजेपी के बहिष्कार की अपील

अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा जिस तरह से अन्य राज्यों में अपने कार्यक्रम कर रहे हैं, उसी तरह से इन पांच राज्यों में भी होंगे. इन राज्यों में अभी चुनाव हैं. इसका मतलब यह नहीं कि ये देश से बाहर हैं. इसलिए किसान मोर्चा पर राजनीति या चुनाव में कूदने का आरोप निराधार है. चुनाव की घोषणा के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने सभी किसान संगठनों की बैठक में यह निर्णय लिया कि वह इन पांच राज्यों में जाएंगे और लोगों से बीजेपी का बहिष्कार करने की अपील करेंगे.

'वोट की चोट' देने पर आमादा किसान नेता

हर राज्य में होंगे कार्यक्रम

कार्यक्रम की शुरुआत पश्चिम बंगाल से होने के संकेत हैं. किसान मोर्चा के कार्यक्रम का सीधा असर चुनावों पर जरूर पड़ेगा. हन्नान मोल्लाह खुद पश्चिम बंगाल से सीपीआईएम पार्टी के 8 बार सांसद रह चुके हैं. ऐसे में किसानों के मंच पर उनकी मौजूदगी यह एक तरफ वह किसान मोर्चा के नेता के रूप में लोगों को बीजेपी को वोट न देने की अपील करेगी, वहीं दूसरी तरफ वह पश्चिम बंगाल में सीपीएम के प्रमुख चेहरों में से एक की बात भी लोग मानेंगे.

महापंचायत से होगा एलान

हन्नान मोल्लाह का कहना है कि किसान आंदोलन और दलगत राजनीति दोनों अलग-अलग चीजें हैं. ऐसा नहीं है कि संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े सभी बड़े चेहरे पश्चिम बंगाल में आगामी 12 मार्च को होने वाले किसान महापंचायत में उपस्थित रहेंगे. किसान महापंचायत का आयोजन किसान यूनियनों की पश्चिम बंगाल इकाई ने तय किया है और यह राज्य इकाई का ही कार्यक्रम है. इस समय किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं और सभी बड़े नेता दिल्ली के बोर्डरों पर मौजूद हैं. ऐसे में कुछ नेता बंगाल के किसान महापंचायत में भी जाएंगे जैसे सभी अन्य महापंचायतों में जाते रहे हैं.

बीजेपी को वोट की चोट

कुल मिलाकर हन्नान मोल्लाह ने यह स्पष्ट किया कि संयुक्त किसान मोर्चा के कार्यक्रम को राजनीति से न जोड़ा जाए. लेकिन स्वयं संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने ही कहा है कि वह बीजेपी को 'वोट की चोट' देना चाहते हैं. इसलिए राज्यों में घोषित विधानसभा चुनावों में किसान नेता सक्रिय भूमिका में दिखेंगे. इसमें बंगाल का नाम सबसे पहले लिया गया और पश्चिम बंगाल के सभी 294 विधानसभा क्षेत्र में जाकर किसानों को पत्र देने का कार्यक्रम भी रखा गया है.

बंगाल सबसे महत्वपूर्ण

मोल्लाह कहते हैं कि किसानों को दिया जाने वाला पत्र एक सामान्य पत्र है, जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा अपील की जाएगी. इन चुनावों में उस पार्टी का साथ न दें जिनके द्वारा यह तीन काले कानून लाए गए हैं. यह पत्र सभी राज्यों के लिए समान ही रहेगा. बंगाल के लिए कोई विशेष नहीं होगा. चुनाव में मतदाताओं की बात होती है और देश में सबसे ज्यादा मतदाता किसान ही हैं. इसलिए किसानों की भूमिका इन विधानसभा चुनावों में भी महत्वपूर्ण है.

किसानों से दूर है सरकार

किसान आंदोलन के अब 100 दिन पूरे होने वाले हैं. लेकिन 26 जनवरी को किसानों के ट्रेक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद सरकार और किसान संगठनों के बीच का गतिरोध गहराता जा रहा है. किसान नेताओं में इसको लेकर निराशा का भाव स्पष्ट झलकता है. हन्नान मोल्लाह कहते हैं कि जब प्रधानमंत्री ने कहा कि वह किसानों से महज एक कॉल दूर हैं, तो सरकार को अपने प्रस्ताव में कुछ संशोधन कर किसानों के पास आना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सरकार बड़ा दिल रखने की बात करती है लेकिन वही पुराने प्रस्ताव के साथ आती है, जिसे किसानों ने पहले ही इनकार कर दिया है.

यह भी पढ़ें- अनुराग और तापसी से पुणे के वेस्टिन होटल में हुई पूछताछ, मोबाइल-लैपटॉप जब्त

Last Updated : Mar 4, 2021, 8:20 PM IST
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