चंडीगढ़ : नवरात्र के साथ पंजाब के अमृतसर में दुर्गियाना मंदिर में विश्व प्रसिद्ध लंगूर मेला शुरू हो गया है. नवरात्र पर लोग अपने बच्चों को लंगूर के वेश में सजा कर मंदिर में माथा टेकने आते हैं. जिन भक्तों की बच्चों की मन्नत पूरी होती है, वे नवरात्र पर अपने बच्चों को लंगूर की वेशभूषा में सजाकर इन दिनों माथा टेकने आते हैं.
शारदीय नवरात्र के दौरान श्री हनुमान मंदिर में प्राचीन काल से लंगूर मेला आयोजित हो रहा है और दुनियाभर में प्रसिद्ध है. ऐसी मान्यता है कि रामायण काल में जब भगवान श्री राम ने अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को छोड़ा तो लव और कुश ने घोड़े को पकड़कर बरगद के पेड़ से बांध दिया था. युद्ध के दौरान, भगवान राम चंद्र के परम सेवक हनुमानजी भी इस स्थान पर पहुंचे.
कहा जाता है कि लव और कुश के साथ बातचीत के दौरान, हनुमानजी को एहसास हुआ कि ये श्री राम जी की संतान हैं. प्यार के कारण उन्होंने लव और कुश को कुछ नहीं कहा. लव और कुश ने हनुमानजी को भी बरगद के पेड़ से बांध दिया. जब माता सीता जी को इस बात का पता चला तो वह इस स्थान पर पहुंचीं.
माता सीता जी ने लव और कुश से कहा कि हनुमानजी उनके पुत्र के समान हैं, इसलिए इन्हें खोला जाना चाहिए. वह जिस स्थान पर आए और खोले जाने के बाद बैठे, उनकी मूर्ति बाद में स्वतः ही प्रकट हो गई. जिस पेड़ से हनुमानजी को बांधा गया था, वह आज भी यहां मौजूद है.
क्यों मनाया जाता है लंगूर मेला
जिन लोगों को पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है, वे यहां आकर बरगद के पेड़ पर मौली बांधकर पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगते हैं. अगर उनकी यह मन्नत पूरी हो जाती है तो वे नवरात्र के दौरान बच्चों को लंगूर की वेश में सजा कर श्री हनुमान मंदिर आते हैं. यहां दिन में दो बार माथा टेकते हैं.
दशहरे के अगले दिन, एकादशी के मौके पर बच्चों की लंगूर वाली पोशाक को उसी स्थान पर उतार दिया जाता है, जहां मौली बंधी गई थी.
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