तिरूवंतपुरम : केरल के एर्नाकुलम में इदमालयार जलाशय के पास जंगलों में एक छोटी सी झोंपड़ी में एक परिवार में दो बच्चों के साथ एक चार लोगों का परिवार रहता है, जहां रात में परिवार पर हाथी और बाघ जैसे जंगली जानवरों खतरा बना रहता है.
इसके अलावा यहां बारिश और बाढ़ भी कभी भी आ सकती है, जिससे छोटी सी झोपड़ी, जिसनें में वे रहते हैं, वह नदी में बह जाएगी. फिर भी, चेल्लप्पन और उनकी पत्नी यशोदा कभी भी बारिश, बाढ़ और जंगली जानवरों से भयभीत नहीं होते हैं. जंगल पिछले 18 वर्षों से उनका जीवन और आजीविका है.
यह दंपति दो भाइयों के बच्चे हैं, जो एक साथ रहने लगे. इस कारण आदिवासी बस्ती द्वारा उन्हें बाहर निकाल दिया. इसके बाद वह जंगल में चले गए और इदमालयार जलाशय के पास चट्टानों पर एक छोटी सी झोपड़ी स्थापित की और जंगलों में एकांत जीवन जीना शुरू कर दिया.
उनके पास न अपनी जमीन है, न राशन कार्ड और न ही आधार कार्ड और न ही राज्य से उन्हें कोई राशन मिलता है.
चेल्लप्पन और यशोधा जो मुथुवा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. इस दंपति के पास दुख और पीड़ा की कहानियां हैं, जिन्हें बताने के लिए वे अपने इन कठिन प्रस्तिथियों का सामना कर रहे हैं.
दंपति हर दिन अपने मूल भोजन का बंदोबस्त पैसा वाड्टुपारा में मछलियों को बेचकर पाते हैं. यह मछलियां वो इदमालयार जलाशय से पकड़ते हैं और 28 किलोमीटर दूर वाड्टूपारा ले जाते हैं.
इस बीच अगर कभी वहां बारिश हो जाए, तो चेल्लाप्पन मछली पकड़ने नहीं जाते. उनका परिवार उस दिन भूखा ही रहता है. उनके बच्चे वजयाचल के वेटिलप्पारा में ट्राइबल स्कूलों में पढ़ रहे हैं.
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इतनी ही नहीं सरकार राज्य में आदिवासी समुदायों के उत्थान और कल्याण के लिए करोड़ों खर्च करती है, लेकिन चेल्लप्पन और उनका परिवार फिर भी कम से कम एक वक्त भोजन के लिए जंगल पर निर्भर रहते हैं, जिसमें रहने के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं है.
परिवार को उम्मीद है कि अब उनके चुने हुए प्रतिनिधि उनके रहने के लिए एक सुरक्षित घर होने के अपने लंबे समय से लंबित सपने को साकार करने में मदद करेंगे.