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बदला लेने के लिए दुष्कर्म के झूठे आरोप लगाना गलत, सख्ती से लगे रोक : HC

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि व्यक्तिगत बदला लेने के लिए छेड़छाड़ और बलात्कार के झूठे आरोप नहीं लगाए जा सकते. इससे सख्ती से निपटने की जरूरत है. उन्होंने एक रेप केस में दर्ज एफआईआर रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए गंभीर टिप्पणियां कीं और मुकदमा रद्द करने से इंकार कर दिया. पढ़ें पूरी रिपोर्ट.

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Published : Aug 17, 2021, 7:25 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के झूठे आरोप लगाने के मामलों पर गंभीर टिप्पणी की है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद, जो कि दो पार्टियों के बीच समझौते के आधार पर बलात्कार मामले की प्राथमिकी रद्द करने की एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप न्यायिक और जांच में पुलिस द्वारा खर्च किए गए समय का नुकसान हुआ है. कोर्ट ने कहा कि झूठे आरोप, बलात्कार के आरोपी का जीवन और करियर नष्ट कर सकते हैं.

कोर्ट ने कहा कि बलात्कार के झूठे मामले में आरोपी अपना सम्मान खो देता है. अपने परिवार का सामना नहीं कर सकता और उसे जीवन भर के लिए कलंकित कर दिया जाता है. न्यायाधीश ने 16 अगस्त को अपने आदेश में कहा कि व्यक्तिगत रुप से बदला लेने के लिए आईपीसी की धारा 376 के तहत एक जैसे अपराधों के संबंध में आरोप नहीं लगाए जा सकते.

यह देखते हुए कि बलात्कार जैसे अपराधों के झूठे केस में केवल अभियुक्तों का हाथ शामिल होने के मामलों में खतरनाक वृद्धि हुई है. अदालत ने कहा कि जो लोग बलात्कार के ऐसे झूठे आरोप लगाते हैं, उन्हें मुक्त होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

न्यायाधीश ने टिप्पणी की है कि अपराधों की गंभीर प्रकृति के कारण छेड़छाड़ और बलात्कार के मामलों से संबंधित झूठे दावों और आरोपों से सख्ती से निपटने की जरूरत है. इस तरह के मुकदमे बेईमान वादियों द्वारा इस उम्मीद में लगाए जाते हैं कि दूसरा पक्ष डर या शर्म से उनकी मांगों को स्वीकार कर लेगा.

जब तक गलत काम करने वालों को उनका परिणाम भुगतने की सजा नहीं दी जाएगी. तब तक ऐसे तुच्छ मुकदमों को रोकना मुश्किल होगा. अदालत ने कहा कि झूठे आरोपों की समस्या को हल किया जा सकता है, या कम से कम कुछ हद तक इसे कम किया जा सकता है, अगर वादियों पर ऐसी मुकदमेबाजी के लिए आर्थिक दंड लगाया जाए.

वर्तमान मामले में प्राथमिकी रद्द करने से इनकार करते हुए अदालत ने कहा कि वे आरोपों के गुण-दोष पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. अगर यह पाया जाता है कि आरोप सही नहीं थे तो अभियोक्ता और अन्य लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए. यह नोट किया गया कि वर्तमान मामले में शामिल पक्षों ने धारा 376 आईपीसी के तहत अपराधों के लिए एक-दूसरे के खिलाफ क्रॉस-केस शुरू किए हैं.

यह भी पढ़ें-राजद्रोह मामले में बच्चों से पुलिस पूछताछ किशोर न्याय अधिनियम का उल्लंघन : HC

अदालत ने यह भी कहा कि समझौते के आधार पर बलात्कार जैसे अपराधों के लिए प्राथमिकी रद्द करने से आरोपी, पीड़ितों पर दबाव बनाने के लिए प्रोत्साहित होंगे और आरोपी के लिए एक जघन्य अपराध से बचने के लिए दरवाजे खुलेंगे. जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती.

(पीटीआई)

नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के झूठे आरोप लगाने के मामलों पर गंभीर टिप्पणी की है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद, जो कि दो पार्टियों के बीच समझौते के आधार पर बलात्कार मामले की प्राथमिकी रद्द करने की एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप न्यायिक और जांच में पुलिस द्वारा खर्च किए गए समय का नुकसान हुआ है. कोर्ट ने कहा कि झूठे आरोप, बलात्कार के आरोपी का जीवन और करियर नष्ट कर सकते हैं.

कोर्ट ने कहा कि बलात्कार के झूठे मामले में आरोपी अपना सम्मान खो देता है. अपने परिवार का सामना नहीं कर सकता और उसे जीवन भर के लिए कलंकित कर दिया जाता है. न्यायाधीश ने 16 अगस्त को अपने आदेश में कहा कि व्यक्तिगत रुप से बदला लेने के लिए आईपीसी की धारा 376 के तहत एक जैसे अपराधों के संबंध में आरोप नहीं लगाए जा सकते.

यह देखते हुए कि बलात्कार जैसे अपराधों के झूठे केस में केवल अभियुक्तों का हाथ शामिल होने के मामलों में खतरनाक वृद्धि हुई है. अदालत ने कहा कि जो लोग बलात्कार के ऐसे झूठे आरोप लगाते हैं, उन्हें मुक्त होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

न्यायाधीश ने टिप्पणी की है कि अपराधों की गंभीर प्रकृति के कारण छेड़छाड़ और बलात्कार के मामलों से संबंधित झूठे दावों और आरोपों से सख्ती से निपटने की जरूरत है. इस तरह के मुकदमे बेईमान वादियों द्वारा इस उम्मीद में लगाए जाते हैं कि दूसरा पक्ष डर या शर्म से उनकी मांगों को स्वीकार कर लेगा.

जब तक गलत काम करने वालों को उनका परिणाम भुगतने की सजा नहीं दी जाएगी. तब तक ऐसे तुच्छ मुकदमों को रोकना मुश्किल होगा. अदालत ने कहा कि झूठे आरोपों की समस्या को हल किया जा सकता है, या कम से कम कुछ हद तक इसे कम किया जा सकता है, अगर वादियों पर ऐसी मुकदमेबाजी के लिए आर्थिक दंड लगाया जाए.

वर्तमान मामले में प्राथमिकी रद्द करने से इनकार करते हुए अदालत ने कहा कि वे आरोपों के गुण-दोष पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. अगर यह पाया जाता है कि आरोप सही नहीं थे तो अभियोक्ता और अन्य लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए. यह नोट किया गया कि वर्तमान मामले में शामिल पक्षों ने धारा 376 आईपीसी के तहत अपराधों के लिए एक-दूसरे के खिलाफ क्रॉस-केस शुरू किए हैं.

यह भी पढ़ें-राजद्रोह मामले में बच्चों से पुलिस पूछताछ किशोर न्याय अधिनियम का उल्लंघन : HC

अदालत ने यह भी कहा कि समझौते के आधार पर बलात्कार जैसे अपराधों के लिए प्राथमिकी रद्द करने से आरोपी, पीड़ितों पर दबाव बनाने के लिए प्रोत्साहित होंगे और आरोपी के लिए एक जघन्य अपराध से बचने के लिए दरवाजे खुलेंगे. जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती.

(पीटीआई)

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