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किसान आंदोलन : क्या खत्म हाे सकता है गतिरोध, जानिए विशेषज्ञ की राय

किसान आंदोलन के 6 महीने पूरे होने पर संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी थी लेकिन मोर्चे की तरफ से अभी तक आगे की रणनीति घोषित नहीं की गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार एमएसपी को संवैधानिक बनाने की बात करे तो किसानों को तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की जिद छोड़ देनी चाहिये.

किसान आंदोलन
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Published : May 28, 2021, 9:42 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना महामारी के उफान में भी आंदोलन जारी रखने पर किसान मोर्चा की आलोचना भी हुई लेकिन आंदोलनरत किसान संगठनों का कहना है कि बिना मांगे पूरी हुए वे वापस नहीं जा सकते. ऐसे में एक बार फिर यह सवाल उठता है कि क्या इस गतिरोध को खत्म करने का कोई संभव रास्ता निकल सकता है ?

इंडियन चेंबर्स ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष और कृषि विशेषज्ञ एमजे खान का कहना है कि एमएसपी पर अनिवार्य खरीद सुनिश्चित करना सरकार लिये संभव है और यह केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की बात है.

वर्तमान में सरकार 23 फसलों पर एमएसपी घोषित करती है. एमएसपी तय करने का काम सरकार की समिति CACP द्वारा किया जाता है, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि किसानों को सरकार की समिति द्वारा तय किये गए न्यूनतम मूल्य से भी कम पर बेचना पड़ता है.

यदि सरकार किसानों द्वारा बाजार में बेचे गए मूल्य और तय एमएसपी के अंतर को पाटने के लिए यदि कानूनी प्रावधान करती है तो व्यापारी वर्ग इस अतिरिक्त बोझ को संभाल सकता है. ऐसे में सरकार पर कोई बोझ नहीं बढ़ेगा. आज यदि केवल 6 % किसान एमएसपी का लाभ ले पाते हैं तो इसका मतलब यह है कि बाकी 94 % किसान अपनी फसल को न्यूनतम से भी कम कीमत पर बेचने को मजबूर होते हैं.

किसानों की मांग वाजिब है

ऐसे में किसानों की यह मांग वाजिब है और उनके बीच बढ़ते असंतोष को कम करने के लिये सरकार को यह मांग मान लेनी चाहिए.
लेकिन समस्या यह है कि किसान केवल एमएसपी पर मानने को तैयार नहीं हैं. वह तीन कृषि कानूनों को भी रद्द करने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में यदि सरकार एमएसपी पर एक कदम आगे बढ़े, तब भी गतिरोध खत्म नहीं होता.

विशेषज्ञ एमजे खान की राय है कि किसानों को भी अपना रुख लचीला करने की जरूरत है. तीन कृषि कानूनों में जिन प्रावधानों से समस्या हो उस पर सरकार बदलाव करने को तैयार है. ऐसे में इस अवसर का लाभ उठाते हुए किसानों को इन कृषि सुधार कानूनों में जो प्रावधान उनके पक्ष के हैं उसका लाभ लेना चाहिए.

किसानों इस बात पर है नाराजगी

दरअसल सरकार और आंदोलनरत किसानों के बीच यह अंतर इन तीन कानूनों को जिस तरह से लाया गया उससे पैदा हुआ है. किसानों की नाराजगी और इन कानूनों के प्रति शंका इसलिए है क्योंकि सबसे पहले इन तीन कानूनों को पिछले साल लॉकडाउन के दौरान जून महीने में अध्यादेश के रूप में लाया गया. किसान संगठनों ने इसका विरोध तभी शुरू कर दिया था लेकिन तब इस विरोध को कमतर आंका गया.

इसे भी पढ़ें : राकेश टिकैत को मोबाइल पर मिली जान से मारने की धमकी

संयुक्त किसान मोर्चा ने शुक्रवार को एक बार फिर अपनी मांग दोहराते हुए कहा कि सरकार तीन कृषि कानूनों को रद्द न कर के किसानों के धैर्य की परीक्षा ले रही है, लेकिन किसान इतनी जल्दी हार नहीं मानेंगे और दिल्ली बॉर्डरों पर आने वाले दिनों के लिए इंतजाम और बेहतर बनाने का काम शुरू कर दिया गया है.

नई दिल्ली : कोरोना महामारी के उफान में भी आंदोलन जारी रखने पर किसान मोर्चा की आलोचना भी हुई लेकिन आंदोलनरत किसान संगठनों का कहना है कि बिना मांगे पूरी हुए वे वापस नहीं जा सकते. ऐसे में एक बार फिर यह सवाल उठता है कि क्या इस गतिरोध को खत्म करने का कोई संभव रास्ता निकल सकता है ?

इंडियन चेंबर्स ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष और कृषि विशेषज्ञ एमजे खान का कहना है कि एमएसपी पर अनिवार्य खरीद सुनिश्चित करना सरकार लिये संभव है और यह केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की बात है.

वर्तमान में सरकार 23 फसलों पर एमएसपी घोषित करती है. एमएसपी तय करने का काम सरकार की समिति CACP द्वारा किया जाता है, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि किसानों को सरकार की समिति द्वारा तय किये गए न्यूनतम मूल्य से भी कम पर बेचना पड़ता है.

यदि सरकार किसानों द्वारा बाजार में बेचे गए मूल्य और तय एमएसपी के अंतर को पाटने के लिए यदि कानूनी प्रावधान करती है तो व्यापारी वर्ग इस अतिरिक्त बोझ को संभाल सकता है. ऐसे में सरकार पर कोई बोझ नहीं बढ़ेगा. आज यदि केवल 6 % किसान एमएसपी का लाभ ले पाते हैं तो इसका मतलब यह है कि बाकी 94 % किसान अपनी फसल को न्यूनतम से भी कम कीमत पर बेचने को मजबूर होते हैं.

किसानों की मांग वाजिब है

ऐसे में किसानों की यह मांग वाजिब है और उनके बीच बढ़ते असंतोष को कम करने के लिये सरकार को यह मांग मान लेनी चाहिए.
लेकिन समस्या यह है कि किसान केवल एमएसपी पर मानने को तैयार नहीं हैं. वह तीन कृषि कानूनों को भी रद्द करने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में यदि सरकार एमएसपी पर एक कदम आगे बढ़े, तब भी गतिरोध खत्म नहीं होता.

विशेषज्ञ एमजे खान की राय है कि किसानों को भी अपना रुख लचीला करने की जरूरत है. तीन कृषि कानूनों में जिन प्रावधानों से समस्या हो उस पर सरकार बदलाव करने को तैयार है. ऐसे में इस अवसर का लाभ उठाते हुए किसानों को इन कृषि सुधार कानूनों में जो प्रावधान उनके पक्ष के हैं उसका लाभ लेना चाहिए.

किसानों इस बात पर है नाराजगी

दरअसल सरकार और आंदोलनरत किसानों के बीच यह अंतर इन तीन कानूनों को जिस तरह से लाया गया उससे पैदा हुआ है. किसानों की नाराजगी और इन कानूनों के प्रति शंका इसलिए है क्योंकि सबसे पहले इन तीन कानूनों को पिछले साल लॉकडाउन के दौरान जून महीने में अध्यादेश के रूप में लाया गया. किसान संगठनों ने इसका विरोध तभी शुरू कर दिया था लेकिन तब इस विरोध को कमतर आंका गया.

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संयुक्त किसान मोर्चा ने शुक्रवार को एक बार फिर अपनी मांग दोहराते हुए कहा कि सरकार तीन कृषि कानूनों को रद्द न कर के किसानों के धैर्य की परीक्षा ले रही है, लेकिन किसान इतनी जल्दी हार नहीं मानेंगे और दिल्ली बॉर्डरों पर आने वाले दिनों के लिए इंतजाम और बेहतर बनाने का काम शुरू कर दिया गया है.

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