रांची : बिरसा मुंडा की धरती झारखंड में ऐसे कई खिलाड़ी दिए हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय फलक पर देश का नाम रोशन किया है. हालांकि, इनमें बिरले ही ऐसे हैं जिन्हें ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. ऐसे महान खिलाड़ियों की सूची में सिलवानुस डुंगडुंग का नाम है, जिन्होंने 1980 के ओलंपिक में भारतीय हाॅकी टीम का प्रतिनिधित्व किया. 27 जनवरी को सिलवानुस डुंगडुंग का जन्म दिवस है. इनके जन्मदिवस पर ईटीवी भारत ने खास बातचीत की.
1928 में मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था. 1980 में सिलवानुस डुंगडुंग, 1984 में मनोहर टोपनो, 2016 में निक्की प्रधान और 2004 में रीना कुमारी 2016 में दीपिका कुमारी और 1980 में हरभजन सिंह ओलंपिक खेलने वाले देश के चंद ही खिलाड़ी है. सिलवानुस डुंगडुंग का हॉकी का सफर शानदार रहा है. अन्य देशों के खिलाड़ी सिलवानुस का नाम सुनते ही घबरा जाते थे. भारत ने ओलंपिक में अंतिम बार 1980 में मास्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था. हॉकी के रोमांचक फाइनल में भारत ने स्पेन को 4-3 से पराजित किया था. उस मैच में इस धरती के लाल (तत्कालीन बिहार) सिलवानुस भी खेले थे.
खिलाड़ी की पुरानी यादें ताजा हुईं
उस मैच में खेलने वाले सिलवानुस ने कहा कि वह मैच मेरे जहन में आज भी ताजा है. सिलवानुस कहते हैं मैं आज भी नहीं भूला उस मैच को. जीतने के बाद हम सबकी आंखों में आंसू थे. उस दिन को याद करते हुए डुंगडुंग ने कहा कि हम लोगों ने रात भर जश्न मनाया था. स्वर्ण जीतने के बाद देश में हॉकी का एक माहौल बन गया था. मास्को के बाद अगर हम कुछ और ओलंपिक में पदक जीते होते, तो भारत में भी हॉकी क्रिकेट की तरह चमकता रहता.
हाॅकी को बुलंदियों पर पहुंचाने का सपना
उन्होंने कहा कि 40 साल के बाद एक बार फिर आस जगी है कि भारतीय टीम ओलंपिक में पदक जीत सकती है. उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से हॉकी के लिए की जा रही पहल फिलहाल प्रशंसनीय है. आज झारखंड के खिलाड़ी हॉकी में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं और एक से बढ़कर एक खिलाड़ी विश्व पटल पर नाम भी रोशन कर रहा है. वहीं सिलवानुस के नक्शे कदम पर चल कर ही 1984 में भारतीय टीम के सदस्य रहे मनोहर टोपनो ओलंपिक पदक विजेता खिलाड़ियों की श्रेणी में शामिल नहीं हो पाए. उन्होंने कहा कि ओलंपिक में पदक जीतने वाली टीम का सदस्य बनना बहुत बड़ी उपलब्धि होती है. भारतीय टीम पांचवें स्थान पर रही.
पूर्व खिलाड़ी ने भी की तारीफ
मनोहर टोपनो ने कहा कि सब जानते हैं कि ओलंपिक खेलने का मौका बड़ी मुश्किल से मिलता है. जब सिलवानुस के साथ उनका नाम जुड़ता है तो गर्व महसूस होता है क्योंकि डुंगडुंग जैसे हॉकी खिलाड़ी भारत को दोबारा मिलना मुश्किल है. उनके नक्शे कदम पर चलते ही और इनके बदौलत ही वह ओलंपिक में खेल पाए थे. भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला था. सिलवानुस डुंगडुंग झारखंड और भारत के कोहिनूर हैं.
थेशु टोली गांव में 1949 में जन्म
सिलवानुस डुंगडुंग का जन्म 27 जनवरी 1949 को रांची से करीब 150 किलोमीटर दूर बसा सिमडेगा जिले के थेशु टोली गांव में हुआ था. ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट सिलवानुस डुंगडुंग को मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा जा चुका है. डुंगडुंग पर नर्सरी ऑफ हॉकी फिल्म भी बनाई गई है. कठिन परिस्थितियों में हॉकी सीखी और 1980 में सुविधाओं के अभाव के बाद भी मास्को ओलंपिक में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया. सारी बातों का सिलवानुस आज भी जिक्र कर भावुक हो उठते हैं. उन दिनों को याद करके खुद पर गर्व महसूस करते हैं.
कठिनाइयों भरा रहा इनका सफर
वर्ल्ड कप खेला, एशियन गेम खेला, ओलंपिक खेला और ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता. डुंगडुंग ने कहा कि बचपन में हॉकी खेलने के लिए बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था. उस समय किसी को हॉकी नहीं मिलती थी और न ही जूते पहने को मिलते थे. उस समय बिहार में खस्सी कप और चिकन टूर्नामेंट खेलने के लिए रात को जाते थे. मास्को ओलंपिक के बाद अंतरराष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहने वाले डुंगडुंग 1988 में सेना की नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद 1993 में रांची में बस गए.
यह भी पढ़ें-आंध्र प्रदेश पंचायत चुनाव विवाद : आखिर हम चुनाव आयोग से क्यों उलझें
उन्हें 2016 में ध्यानचंद पुरस्कार मिला. अब उम्र ढल गई है. कम सुनाई देता है. इसके बावजूद वे खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने से नहीं थकते.