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#Positive Bharat Podcast: गांधीजी से बात मनवाने वाली और स्त्री अधिकारवादी कमलादेवी चट्टोपाध्याय के अनसुने किस्से - Who was the first woman in India to contest elections

जंग-ए-आजादी का आगाज कर चुके हमारे देश के कई स्वतंत्रता सेनानी इस संघर्ष का चेहरा बन चुके थे, लेकिन इस संग्राम में अभी भी आधी आबादी की झलक फीकी थी. इसके क्या थे कारण?

स्त्री अधिकारवादी कमलादेवी चट्टोपाध्याय के अनसुने किस्से
स्त्री अधिकारवादी कमलादेवी चट्टोपाध्याय के अनसुने किस्से
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Published : Oct 29, 2021, 11:16 AM IST

नई दिल्ली: आज के पॅाडकास्ट में किस्सा समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी और गांधीवादी विचारधारा की अनुयायी रही कमलादेवी चट्टोपाध्याय (Kamaladevi Chattopadhyay) की. उन्होंने अपनी कृति से भारतीय महिलाओं को सशक्तिकरण (Indian Women Empowerment) का असली मतलब समझाया.

स्वाधीनता का दौर, पूरे देश में भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने और उनकी मनमानी हुकूमत के खात्मे के लिए आंदोलन का सिलसिला जारी था. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi Independence) की अगुवाई में भारत अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा था और इस संघर्ष में शामिल था देश का हर वर्ग.

स्त्री अधिकारवादी कमलादेवी चट्टोपाध्याय के अनसुने किस्से

साल था 1930, महात्मा गांधी ने आम नागरिकों को एक मंच पर लाकर अंग्रेजी सत्‍ता के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी थी. शांति और सादगी के साथ पूरे देश में अब स्वाधीनता की इस लड़ाई का बिगुल फूंका जा चुका था. इससे लोगों के मन में स्वाधीनता की अलख जग चुकी थी. मन में जलती इस अग्नि ने अंग्रेज सरकार द्वारा पारित किए गए नमक कानून (British salt law) के खिलाफ आंदोलन शुरू करने का काम किया.

जनता पर बोझ बनकर टूटे इस कानून के विरोध में महात्मा गांधी ने ऐतिहासिक सत्याग्रह दांडी मार्च (Historic Satyagraha Dandi March) की शुरुआत की. इस सत्याग्रह में गांधी समेत 78 लोगों द्वारा अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी तक 390 किमी. की पैदल यात्रा कर नमक विरोधी कानूनों को भंग करने का आह्वान क‍िया गया.

कमलादेवी चट्टोपाध्याय (Kamaladevi Chattopadhyay Dandi March) को भी इस नमक सत्याग्रह की खबर मिली. मालूम चला कि इस आंदोलन से महिलाओं को दूर रखा गया है. महात्मा गांधी आंदोलन में महिलाओं की भूमिका चरखा चलाने और शराब की दुकानों की घेराबंदी करने तक तय कर चुके थे. यह बात कमालदेवी को बिल्कुल पसंद नहीं आई, उनका मानना था कि महिलाओं की भागीदारी 'नमक सत्याग्रह' में भी होनी चाहिए, जिसे लेकर कमलादेवी ने महात्मा गांधी से मिलने का फैसला किया.

उस वक्त महात्मा गांधी ट्रेन में सफर कर रहे थे. कमलादेवी उनसे बात करने के लिए जा पहुंची. ट्रेन में कमलादेवी की मुलाकात महात्मा गांधी से अधिक तो नहीं हुई, लेकिन ऐतिहासिक जरूर बन गई. इस मुलाकात के दौरान महात्मा गांधी कमलादेवी की इस मांग से प्रभावित तो थे, लेकिन वह उन्हें मनाने के कोशिश कर रहे थे कि ऐसा नहीं किया जा सकता है. इसके बाद जब कमलादेवी ने अपने तर्क गांधीजी के सामने रखे, तब इस 'नमक सत्याग्रह' में महिला और पुरुषों की बराबर की भागीदारी पर महात्मा गांधी ने हामी भर दी. इसके साथ भारत के स्वाधीनता संग्राम के संघर्ष में नया इतिहास लिखा गया.

ये भी सुनें : कहानी पहली भारतीय महिला पायलट सरला ठकराल की, जिसने साड़ी में भरी अपनी पहली उड़ान

उनकी कहानी से जुड़ा एक और किस्सा 1920 के दशक का है, जब महिलाएं घरों की चारदीवारी और चूल्हे चौके में ही कैद रहा करती थीं. इस दौर में कमलादेवी का रुझान राजनीति में बढ़ने लगा. इस बीच Margret Cousins की पहल के बाद महिलाओं को वोट देने का अधिकार तो मिला था, लेकिन अब भी वह चुनाव नहीं लड़ सकती थीं.

कमलादेवी को यह चीज खटकने लगी, उन्होंने इसे बदलने का बीड़ा उठाया और फिर Margret Cousins के नक्शे कदम पर चलते हुए भारत में महिलाओं के चुनाव लड़ने के अधिकार के लिए संघर्ष किया. इस संघर्ष का परिणाम यह हुआ कि मद्रास प्रांतीय विधान परिषद के चुनावों से पहले महिलाओं को चुनाव लड़ने की इजाजत मिली और कमलादेवी भारत की पहली राजनीतिक व्यवस्था में चुनाव लड़ने वाली महिला बनीं. (Who was the first woman in India to contest elections)

कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने अपने जीवन में वह फैसले लिए, जिन्हें उस वक्त भारी विरोध का सामना करना पड़ा, उनकी यह वीरता और हिम्मत के किस्से यह सिद्ध करते हैं कि ऐसा जरूरी नहीं कि दुनिया आपके हर फैसले के समर्थन में हो. आप हमेशा सभी को खुश नहीं रख सकते हैं. आपकी प्राथमिकता हमेशा वो होनी चाहिए, जिससे आप और आपका स्वाभिमान संतुष्ट हो.

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नई दिल्ली: आज के पॅाडकास्ट में किस्सा समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी और गांधीवादी विचारधारा की अनुयायी रही कमलादेवी चट्टोपाध्याय (Kamaladevi Chattopadhyay) की. उन्होंने अपनी कृति से भारतीय महिलाओं को सशक्तिकरण (Indian Women Empowerment) का असली मतलब समझाया.

स्वाधीनता का दौर, पूरे देश में भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने और उनकी मनमानी हुकूमत के खात्मे के लिए आंदोलन का सिलसिला जारी था. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi Independence) की अगुवाई में भारत अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा था और इस संघर्ष में शामिल था देश का हर वर्ग.

स्त्री अधिकारवादी कमलादेवी चट्टोपाध्याय के अनसुने किस्से

साल था 1930, महात्मा गांधी ने आम नागरिकों को एक मंच पर लाकर अंग्रेजी सत्‍ता के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी थी. शांति और सादगी के साथ पूरे देश में अब स्वाधीनता की इस लड़ाई का बिगुल फूंका जा चुका था. इससे लोगों के मन में स्वाधीनता की अलख जग चुकी थी. मन में जलती इस अग्नि ने अंग्रेज सरकार द्वारा पारित किए गए नमक कानून (British salt law) के खिलाफ आंदोलन शुरू करने का काम किया.

जनता पर बोझ बनकर टूटे इस कानून के विरोध में महात्मा गांधी ने ऐतिहासिक सत्याग्रह दांडी मार्च (Historic Satyagraha Dandi March) की शुरुआत की. इस सत्याग्रह में गांधी समेत 78 लोगों द्वारा अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी तक 390 किमी. की पैदल यात्रा कर नमक विरोधी कानूनों को भंग करने का आह्वान क‍िया गया.

कमलादेवी चट्टोपाध्याय (Kamaladevi Chattopadhyay Dandi March) को भी इस नमक सत्याग्रह की खबर मिली. मालूम चला कि इस आंदोलन से महिलाओं को दूर रखा गया है. महात्मा गांधी आंदोलन में महिलाओं की भूमिका चरखा चलाने और शराब की दुकानों की घेराबंदी करने तक तय कर चुके थे. यह बात कमालदेवी को बिल्कुल पसंद नहीं आई, उनका मानना था कि महिलाओं की भागीदारी 'नमक सत्याग्रह' में भी होनी चाहिए, जिसे लेकर कमलादेवी ने महात्मा गांधी से मिलने का फैसला किया.

उस वक्त महात्मा गांधी ट्रेन में सफर कर रहे थे. कमलादेवी उनसे बात करने के लिए जा पहुंची. ट्रेन में कमलादेवी की मुलाकात महात्मा गांधी से अधिक तो नहीं हुई, लेकिन ऐतिहासिक जरूर बन गई. इस मुलाकात के दौरान महात्मा गांधी कमलादेवी की इस मांग से प्रभावित तो थे, लेकिन वह उन्हें मनाने के कोशिश कर रहे थे कि ऐसा नहीं किया जा सकता है. इसके बाद जब कमलादेवी ने अपने तर्क गांधीजी के सामने रखे, तब इस 'नमक सत्याग्रह' में महिला और पुरुषों की बराबर की भागीदारी पर महात्मा गांधी ने हामी भर दी. इसके साथ भारत के स्वाधीनता संग्राम के संघर्ष में नया इतिहास लिखा गया.

ये भी सुनें : कहानी पहली भारतीय महिला पायलट सरला ठकराल की, जिसने साड़ी में भरी अपनी पहली उड़ान

उनकी कहानी से जुड़ा एक और किस्सा 1920 के दशक का है, जब महिलाएं घरों की चारदीवारी और चूल्हे चौके में ही कैद रहा करती थीं. इस दौर में कमलादेवी का रुझान राजनीति में बढ़ने लगा. इस बीच Margret Cousins की पहल के बाद महिलाओं को वोट देने का अधिकार तो मिला था, लेकिन अब भी वह चुनाव नहीं लड़ सकती थीं.

कमलादेवी को यह चीज खटकने लगी, उन्होंने इसे बदलने का बीड़ा उठाया और फिर Margret Cousins के नक्शे कदम पर चलते हुए भारत में महिलाओं के चुनाव लड़ने के अधिकार के लिए संघर्ष किया. इस संघर्ष का परिणाम यह हुआ कि मद्रास प्रांतीय विधान परिषद के चुनावों से पहले महिलाओं को चुनाव लड़ने की इजाजत मिली और कमलादेवी भारत की पहली राजनीतिक व्यवस्था में चुनाव लड़ने वाली महिला बनीं. (Who was the first woman in India to contest elections)

कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने अपने जीवन में वह फैसले लिए, जिन्हें उस वक्त भारी विरोध का सामना करना पड़ा, उनकी यह वीरता और हिम्मत के किस्से यह सिद्ध करते हैं कि ऐसा जरूरी नहीं कि दुनिया आपके हर फैसले के समर्थन में हो. आप हमेशा सभी को खुश नहीं रख सकते हैं. आपकी प्राथमिकता हमेशा वो होनी चाहिए, जिससे आप और आपका स्वाभिमान संतुष्ट हो.

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