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#Positive Bharat Podcast: ऑलराउंडर क्रिकेटर इरफान पठान, जानें कैसे हासिल किया खास मुकाम

आज के पॉडकास्ट में क्रिकेटर इरफान पठान की कहानी है, जिन्होंने T20 वर्ल्ड कप के फाइनल में प्लेयर ऑफ द मैच जीता. इरफान पठान भारत के एक बेहतरीन ऑलराउंडर थे. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से दुनिया में नाम कमाया.

ऑलराउंडर क्रिकेटर इरफान पठान
ऑलराउंडर क्रिकेटर इरफान पठान
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Published : Oct 27, 2021, 12:35 PM IST

नई दिल्ली : आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे गरीब बच्चे की कहानी, जिसने अपने बल बूते पर इतिहास रचा, जिसके घर में एक भी शौचालय नहीं था, जिसे तीन दिन तक बासी खाना खाना पड़ता था, जिसके पिता चाहते थे कि वो इस्लाम का स्कॉलर बने, लेकिन उसने कुछ अलग करने की सोची, मेहनत किया और अपनी हाथ की लकीरों को बदल दिया और बन गया भारतीय क्रिकेट का एक जाना माना नाम. जी हां, हम बात कर रहे हैं भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज रह चुके इरफान पठान की. जिन्होंने गरीबी से उठकर ऐसा मुकाम हासिल किया कि लोगों के लिए प्रेरणा बन गए.

इरफान पठान भारत के एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जो 2007 टी20 वर्ल्ड कप के फाइनल में 'प्लेयर ऑफ द मैच' का अवॉर्ड जीत चुके हैं. टेस्ट मैच के पहले ही ओवर में 'हैट्रिक' लगा चुके हैं. यही वजह इरफान पठान को भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कपिल देव के बाद सबसे महान ऑलराउंडर बनाती है. गुजरात के वडोदरा में जन्मे इरफान आज 38वां जन्मदिन मना रहे हैं.

ऑलराउंडर क्रिकेटर इरफान पठान

इरफान पठान का बचपन

इरफान पठान ने बचपन में गेंद थामी तो आसपास के घरों के सबसे ज्यादा शीशे तोड़े. वडोदरा के नजरबाग पैलेस के करीब इस खिलाड़ी का पहला मैदान और पहला पवेलियन था. तीन-चार मिनट के रास्ते पर मस्जिद के पास ही उनका घर भी था. घर में शौचालय तक नहीं था. उस घर में दो बच्चे थे. एक इरफान पठान और दूसरा यूसुफ पठान. परेशानी ये थी कि दो बच्चों के पास एक ही साइकिल थी. उसी साइकिल से घर से स्कूल, स्कूल से ग्राउंड, ग्राउंड से अपने कोच के यहां और फिर वापस घर आने का सफर तय करना होता था. यूसुफ बड़े थे, तो उनकी धौंस चलती थी. वो खुद एक चक्कर चलाते थे और बाकी के तीन इरफान से चलवाते थे. साइकिल चलाकर इरफान के पैर तो मजबूत हुए ही, साथ ही उनके इरादे भी मजबूत हो गए.

पढ़ें : #Positive Bharat Podcast: जानें, लक्ष्मी सहगल कैसे बनीं डॉक्टर से कैप्टन

अंडर-19 से टीम इंडिया तक का सफर

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही नजर आने लगते हैं. इरफान पठान इसका जीता जागता उदाहरण हैं. इरफान जब पाकिस्तान के खिलाफ अंडर-19 क्रिकेट खेल रहे थे, तब सौरव गांगुली की नजर उनके खेल पर पड़ी. उस वक्त सौरव टीम इंडिया के कप्तान हुआ करते थे. उन्होंने टीम के चयनकर्ताओं से बात की और कुछ ही दिन के भीतर इरफान पठान पाकिस्तान से ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए. अंडर-19 टीम से टीम इंडिया के सदस्य बन गए. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इरफान पठान की एंट्री के बाद भारतीय टीम की वह कमी पूरी हो गई जो कपिल देव के सन्यास के बाद पैदा हुई थी. एक ऐसा गेंदबाज जो स्विंग और सीम बॉलिंग करता था और पहला ओवर डालने की काबिलियत रखता था. सोने पर सुहागा ये कि उनसे किसी भी क्रम पर बल्लेबाजी करवा लीजिए. बाएं हाथ से गेंदबाजी और बाएं ही हाथ से बल्लेबाजी करने वाले इरफान पठान मुख्य रूप से तेज गेंदबाज थे लेकिन ये हरफनमौला खिलाड़ियों की सूची में आते हैं.

इरफान पठान के जिंदगी सीख देती है कि मुश्किलें कितनी भी हो, कुछ कर गुजरने का जुनुन और मन में पक्का इरादा हो तो आप मुश्किलों को पार कर कामयाबी के शिखर पर पहुंच जाएंगे.

नई दिल्ली : आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे गरीब बच्चे की कहानी, जिसने अपने बल बूते पर इतिहास रचा, जिसके घर में एक भी शौचालय नहीं था, जिसे तीन दिन तक बासी खाना खाना पड़ता था, जिसके पिता चाहते थे कि वो इस्लाम का स्कॉलर बने, लेकिन उसने कुछ अलग करने की सोची, मेहनत किया और अपनी हाथ की लकीरों को बदल दिया और बन गया भारतीय क्रिकेट का एक जाना माना नाम. जी हां, हम बात कर रहे हैं भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज रह चुके इरफान पठान की. जिन्होंने गरीबी से उठकर ऐसा मुकाम हासिल किया कि लोगों के लिए प्रेरणा बन गए.

इरफान पठान भारत के एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जो 2007 टी20 वर्ल्ड कप के फाइनल में 'प्लेयर ऑफ द मैच' का अवॉर्ड जीत चुके हैं. टेस्ट मैच के पहले ही ओवर में 'हैट्रिक' लगा चुके हैं. यही वजह इरफान पठान को भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कपिल देव के बाद सबसे महान ऑलराउंडर बनाती है. गुजरात के वडोदरा में जन्मे इरफान आज 38वां जन्मदिन मना रहे हैं.

ऑलराउंडर क्रिकेटर इरफान पठान

इरफान पठान का बचपन

इरफान पठान ने बचपन में गेंद थामी तो आसपास के घरों के सबसे ज्यादा शीशे तोड़े. वडोदरा के नजरबाग पैलेस के करीब इस खिलाड़ी का पहला मैदान और पहला पवेलियन था. तीन-चार मिनट के रास्ते पर मस्जिद के पास ही उनका घर भी था. घर में शौचालय तक नहीं था. उस घर में दो बच्चे थे. एक इरफान पठान और दूसरा यूसुफ पठान. परेशानी ये थी कि दो बच्चों के पास एक ही साइकिल थी. उसी साइकिल से घर से स्कूल, स्कूल से ग्राउंड, ग्राउंड से अपने कोच के यहां और फिर वापस घर आने का सफर तय करना होता था. यूसुफ बड़े थे, तो उनकी धौंस चलती थी. वो खुद एक चक्कर चलाते थे और बाकी के तीन इरफान से चलवाते थे. साइकिल चलाकर इरफान के पैर तो मजबूत हुए ही, साथ ही उनके इरादे भी मजबूत हो गए.

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अंडर-19 से टीम इंडिया तक का सफर

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही नजर आने लगते हैं. इरफान पठान इसका जीता जागता उदाहरण हैं. इरफान जब पाकिस्तान के खिलाफ अंडर-19 क्रिकेट खेल रहे थे, तब सौरव गांगुली की नजर उनके खेल पर पड़ी. उस वक्त सौरव टीम इंडिया के कप्तान हुआ करते थे. उन्होंने टीम के चयनकर्ताओं से बात की और कुछ ही दिन के भीतर इरफान पठान पाकिस्तान से ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए. अंडर-19 टीम से टीम इंडिया के सदस्य बन गए. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इरफान पठान की एंट्री के बाद भारतीय टीम की वह कमी पूरी हो गई जो कपिल देव के सन्यास के बाद पैदा हुई थी. एक ऐसा गेंदबाज जो स्विंग और सीम बॉलिंग करता था और पहला ओवर डालने की काबिलियत रखता था. सोने पर सुहागा ये कि उनसे किसी भी क्रम पर बल्लेबाजी करवा लीजिए. बाएं हाथ से गेंदबाजी और बाएं ही हाथ से बल्लेबाजी करने वाले इरफान पठान मुख्य रूप से तेज गेंदबाज थे लेकिन ये हरफनमौला खिलाड़ियों की सूची में आते हैं.

इरफान पठान के जिंदगी सीख देती है कि मुश्किलें कितनी भी हो, कुछ कर गुजरने का जुनुन और मन में पक्का इरादा हो तो आप मुश्किलों को पार कर कामयाबी के शिखर पर पहुंच जाएंगे.

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