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Positive Bharat Podcast: अक्रूर जी की ऐसी थी शख्सियत, भगवान श्रीकृष्ण भी मानते थे गुरू

भारतीय पौराणिक कथाओं (Indian mythology) की बात करें, तो द्वापर युग के अक्रूर जी (akrur ji) का जिक्र जरूर आता है. उनकी शख्सियत ऐसी थी कि खुद भगवान श्रीकृष्ण (Sri Krishna), उनको गुरू मानते थे. तो चलिये जानते हैं, उनके बारे में...

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Published : Oct 3, 2021, 11:02 AM IST

Positive Bharat Podcast
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नई दिल्लीः आज के पॉडकास्ट (PODCAST ) में बात करेंगे द्वापर युग के अक्रूर जी की. वह महाभारत काल के ऐसे शख्स थे, जिनको खुद भगवान श्रीकृष्ण (Sri Krishna) गुरु मानते थे. उनको युद्ध कला से लेकर राजनीति में गहरी समझ थी. बात उस समय की है, जब श्रीकृष्ण का जन्म नहीं हुआ था. कंस ने आकाशवाणी को सुनकर पिता राजा उग्रसेन को बंदी बना लिया था और खुद राजा बन बैठा था. अक्रूर जी (akrur ji) उन्हीं के दरबार में मंत्री के पद पर आसीन थे. रिश्ते में अक्रूर जी वासुदेव के भाई थे. इस नाते से वह श्री कृष्ण के काका थे. इतना ही नहीं अक्रूर जी को श्रीकृष्ण गुरु भी मानते थे.

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जब कंस ने सुना कि कृष्ण वृंदावन में रह रहे हैं, तो उन्हें मारने के विचार से कंस ने अक्रूर जी के हाथ निमंत्रण भेज कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को मथुरा बुलाया. अक्रूर जी ने वृंदावन पहुंचकर श्री कृष्ण को परिचय दिया और कंस द्वारा किए जाने वाले अत्याचार के बारे में बताया. अक्रूर जी की बात सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम उनके साथ कंस के उत्सव में शामिल होने के लिए निकल पडे़. रास्ते में अक्रूर जी ने कृष्ण और बलराम को कंस के बारे में और युद्धकला के बारे में बहुत सारी जानकारियां दी. इस वजह से श्रीकृष्ण ने उन्हें गुरु मान लिया था.

मथुरा पहुंचने के बाद श्रीकृष्ण ने कंस को मार दिया और मथुरा के सिंहासन पर वापस राजा उग्रसेन को बिठा दिया और अक्रूर जी को हस्तिनापुर भेज दिया. कुछ समय के बाद कृष्ण ने द्वारका नगरी की स्थापना की. वहां पर अक्रूर जी पांडवों का संदेश लेकर आए कि कौरवों के साथ युद्ध में आपकी सहायता चाहिए. इस पर कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया, जिससे वो महाभारत का युद्ध जीत सकें.

नई दिल्लीः आज के पॉडकास्ट (PODCAST ) में बात करेंगे द्वापर युग के अक्रूर जी की. वह महाभारत काल के ऐसे शख्स थे, जिनको खुद भगवान श्रीकृष्ण (Sri Krishna) गुरु मानते थे. उनको युद्ध कला से लेकर राजनीति में गहरी समझ थी. बात उस समय की है, जब श्रीकृष्ण का जन्म नहीं हुआ था. कंस ने आकाशवाणी को सुनकर पिता राजा उग्रसेन को बंदी बना लिया था और खुद राजा बन बैठा था. अक्रूर जी (akrur ji) उन्हीं के दरबार में मंत्री के पद पर आसीन थे. रिश्ते में अक्रूर जी वासुदेव के भाई थे. इस नाते से वह श्री कृष्ण के काका थे. इतना ही नहीं अक्रूर जी को श्रीकृष्ण गुरु भी मानते थे.

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जब कंस ने सुना कि कृष्ण वृंदावन में रह रहे हैं, तो उन्हें मारने के विचार से कंस ने अक्रूर जी के हाथ निमंत्रण भेज कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को मथुरा बुलाया. अक्रूर जी ने वृंदावन पहुंचकर श्री कृष्ण को परिचय दिया और कंस द्वारा किए जाने वाले अत्याचार के बारे में बताया. अक्रूर जी की बात सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम उनके साथ कंस के उत्सव में शामिल होने के लिए निकल पडे़. रास्ते में अक्रूर जी ने कृष्ण और बलराम को कंस के बारे में और युद्धकला के बारे में बहुत सारी जानकारियां दी. इस वजह से श्रीकृष्ण ने उन्हें गुरु मान लिया था.

मथुरा पहुंचने के बाद श्रीकृष्ण ने कंस को मार दिया और मथुरा के सिंहासन पर वापस राजा उग्रसेन को बिठा दिया और अक्रूर जी को हस्तिनापुर भेज दिया. कुछ समय के बाद कृष्ण ने द्वारका नगरी की स्थापना की. वहां पर अक्रूर जी पांडवों का संदेश लेकर आए कि कौरवों के साथ युद्ध में आपकी सहायता चाहिए. इस पर कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया, जिससे वो महाभारत का युद्ध जीत सकें.

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