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दोषियों ने SC से कहा -बिलकिस मामले में जनहित याचिकाओं पर सुनवाई से खतरनाक मिसाल पेश होगी

बिलकिस बानो गैंगरेप मामले और उनके परिवार को सात सदस्यों की हत्या के दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से कहा कि उनकी सजा में छूट की वैधता को लेकर दायर याचिकाओं पर विचार करने से एक खतरनाक मिसाल पेश होगी.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Aug 9, 2023, 9:14 PM IST

Updated : Aug 9, 2023, 9:28 PM IST

नई दिल्ली : बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले और 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उनकी सजा में दी गयी छूट की वैधता को चुनौती देने वाली कई लोगों की जनहित याचिकाओं पर विचार करने से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा और इससे एक खतरनाक मिसाल कायम होगी. बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा, माकपा नेता सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य जनहित याचिकाओं के जरिये दोषियों को सजा में दी गयी छूट की वैधता को चुनौती दी गई है.

जनहित याचिकाओं की विचारणीयता को चुनौती देते हुए दोषियों में से एक की ओर से पेश वकील ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया है और मुकदमे से उनका कोई संबंध नहीं है. मल्होत्रा ने कहा कि जनहित याचिका याचिकाकर्ताओं के पास सजा से छूट के आदेश की प्रति नहीं है और उन्होंने विभिन्न मीडिया रिपोर्ट के आधार पर इस अदालत का दरवाजा खटखटाया है.

मल्होत्रा ने न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ से कहा, 'मामले से संबंधित तीसरे पक्ष की जनहित याचिकाओं पर विचार करने से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा और ऐसी याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी. किसी भी राज्य द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को समय-समय पर सजा में दी गई प्रत्येक छूट को चुनौती दी जाएगी. यदि कोई पीड़ित अदालत में आता है तो यह समझने योग्य लेकिन कोई तीसरा पक्ष ऐसा नहीं कर सकता. यह एक खतरनाक मिसाल होगी.'

गुजरात सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने कहा कि किसी तीसरे पक्ष को इस मामले में कुछ कहने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह मामला अदालत और आरोपी के बीच का है. उन्होंने कहा, 'जनहित याचिका की आड़ में आपराधिक मामलों में किसी तीसरे पक्ष/अजनबी के हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है. इसके अलावा, यह जनहित याचिका और इस अदालत के अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग है. जनहित याचिकाकर्ता एक हस्तक्षेपकर्ता के अलावा कुछ नहीं हैं.'

दोषियों में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है क्योंकि आपराधिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप से छूट पाए व्यक्ति पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. उन्होंने कहा, 'यह कहना पीड़ित का काम है कि निर्णय लेने की रूपरेखा सही ढंग से लागू की गई है या नहीं..तीसरा पक्ष इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता.' मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा में दी गयी छूट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को कहा था कि सार्वजनिक आक्रोश उसके (शीर्ष न्यायालय के) न्यायिक फैसलों को प्रभावित नहीं करेगा. न्यायमूर्ति नागरत्ना और न्यायमूर्ति भुइयां की पीठ ने स्पष्ट किया कि आंदोलनों और समाज के आक्रोश का उसके फैसलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और वह केवल कानून के अनुसार ही चलेगी.

शीर्ष अदालत को सोमवार को सुनवाई के दौरान बताया गया था कि बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों के सिर पर मुसलमानों को शिकार बनाने और उन्हें मारने के लिए खून सवार था. इस मामले के सभी 11 दोषियों की सजा में पिछले साल छूट दे दी गई थी, जिसे न्यायालय में चुनौती दी गयी है और इसी के तहत सोमवार को अंतिम सुनवाई शुरू हुई. शीर्ष अदालत ने 18 अप्रैल को 11 दोषियों को दी गई छूट पर गुजरात सरकार से सवाल किया था और कहा था कि नरमी दिखाने से पहले अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए था. न्यायालय ने आश्चर्य भी जताया था कि क्या इस मामले में विवेक का इस्तेमाल किया गया था. ये सभी दोषी 15 अगस्त, 2022 को जेल से रिहा कर दिए गए थे.

शीर्ष अदालत ने दोषियों की समय से पहले रिहाई का कारण पूछते हुए जेल में बंद रहने के दौरान उन्हें बार-बार दी जाने वाली पैरोल पर भी सवाल उठाया था. बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या को भयावह कृत्य करार देते हुए शीर्ष अदालत ने 27 मार्च को गुजरात सरकार से पूछा था कि क्या दोषियों को सजा में छूट देते समय हत्या के अन्य मामलों की तरह समान मानक इस्तेमाल किए गए थे. इस घटना के वक्त बिलकिस बानो 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती भी थीं. उनकी तीन साल की बेटी भी दंगों में मारे गए परिवार के सात सदस्यों में शामिल थी.

ये भी पढ़ें - अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं: सुप्रीम कोर्ट

(एक्सट्रा इनपुट-एजेंसी)

नई दिल्ली : बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले और 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उनकी सजा में दी गयी छूट की वैधता को चुनौती देने वाली कई लोगों की जनहित याचिकाओं पर विचार करने से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा और इससे एक खतरनाक मिसाल कायम होगी. बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा, माकपा नेता सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य जनहित याचिकाओं के जरिये दोषियों को सजा में दी गयी छूट की वैधता को चुनौती दी गई है.

जनहित याचिकाओं की विचारणीयता को चुनौती देते हुए दोषियों में से एक की ओर से पेश वकील ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया है और मुकदमे से उनका कोई संबंध नहीं है. मल्होत्रा ने कहा कि जनहित याचिका याचिकाकर्ताओं के पास सजा से छूट के आदेश की प्रति नहीं है और उन्होंने विभिन्न मीडिया रिपोर्ट के आधार पर इस अदालत का दरवाजा खटखटाया है.

मल्होत्रा ने न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ से कहा, 'मामले से संबंधित तीसरे पक्ष की जनहित याचिकाओं पर विचार करने से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा और ऐसी याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी. किसी भी राज्य द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को समय-समय पर सजा में दी गई प्रत्येक छूट को चुनौती दी जाएगी. यदि कोई पीड़ित अदालत में आता है तो यह समझने योग्य लेकिन कोई तीसरा पक्ष ऐसा नहीं कर सकता. यह एक खतरनाक मिसाल होगी.'

गुजरात सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने कहा कि किसी तीसरे पक्ष को इस मामले में कुछ कहने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह मामला अदालत और आरोपी के बीच का है. उन्होंने कहा, 'जनहित याचिका की आड़ में आपराधिक मामलों में किसी तीसरे पक्ष/अजनबी के हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है. इसके अलावा, यह जनहित याचिका और इस अदालत के अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग है. जनहित याचिकाकर्ता एक हस्तक्षेपकर्ता के अलावा कुछ नहीं हैं.'

दोषियों में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है क्योंकि आपराधिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप से छूट पाए व्यक्ति पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. उन्होंने कहा, 'यह कहना पीड़ित का काम है कि निर्णय लेने की रूपरेखा सही ढंग से लागू की गई है या नहीं..तीसरा पक्ष इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता.' मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा में दी गयी छूट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को कहा था कि सार्वजनिक आक्रोश उसके (शीर्ष न्यायालय के) न्यायिक फैसलों को प्रभावित नहीं करेगा. न्यायमूर्ति नागरत्ना और न्यायमूर्ति भुइयां की पीठ ने स्पष्ट किया कि आंदोलनों और समाज के आक्रोश का उसके फैसलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और वह केवल कानून के अनुसार ही चलेगी.

शीर्ष अदालत को सोमवार को सुनवाई के दौरान बताया गया था कि बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों के सिर पर मुसलमानों को शिकार बनाने और उन्हें मारने के लिए खून सवार था. इस मामले के सभी 11 दोषियों की सजा में पिछले साल छूट दे दी गई थी, जिसे न्यायालय में चुनौती दी गयी है और इसी के तहत सोमवार को अंतिम सुनवाई शुरू हुई. शीर्ष अदालत ने 18 अप्रैल को 11 दोषियों को दी गई छूट पर गुजरात सरकार से सवाल किया था और कहा था कि नरमी दिखाने से पहले अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए था. न्यायालय ने आश्चर्य भी जताया था कि क्या इस मामले में विवेक का इस्तेमाल किया गया था. ये सभी दोषी 15 अगस्त, 2022 को जेल से रिहा कर दिए गए थे.

शीर्ष अदालत ने दोषियों की समय से पहले रिहाई का कारण पूछते हुए जेल में बंद रहने के दौरान उन्हें बार-बार दी जाने वाली पैरोल पर भी सवाल उठाया था. बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या को भयावह कृत्य करार देते हुए शीर्ष अदालत ने 27 मार्च को गुजरात सरकार से पूछा था कि क्या दोषियों को सजा में छूट देते समय हत्या के अन्य मामलों की तरह समान मानक इस्तेमाल किए गए थे. इस घटना के वक्त बिलकिस बानो 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती भी थीं. उनकी तीन साल की बेटी भी दंगों में मारे गए परिवार के सात सदस्यों में शामिल थी.

ये भी पढ़ें - अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं: सुप्रीम कोर्ट

(एक्सट्रा इनपुट-एजेंसी)

Last Updated : Aug 9, 2023, 9:28 PM IST
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