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Emergency Extension In Myanmar : म्यांमार में आपातकाल का विस्तार और भारत पर प्रभाव - External Affairs Minister S Jaishankar

म्यांमार में आपातकाल के विस्तार के साथ ही भारत को मणिपुर की स्थिति को देखते हुए अपने पड़ोसी के साथ जुड़ाव जारी रखना होगा. पढ़ें ईटीवी भारत के अरुणिम भुइयां की रिपोर्ट..

Emergency extension in Myanmar and implications for India
म्यांमार में आपातकाल का विस्तार और भारत पर प्रभाव
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Published : Aug 1, 2023, 6:05 PM IST

नई दिल्ली: म्यांमार में सैन्य शासन द्वारा 1 अगस्त से उस देश में आपातकाल की अवधि बढ़ाने के साथ भारत को पूर्वी सीमा विशेषकर मणिपुर में स्थिरता लाने के लिए वर्तमान शासन के साथ जुड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. बता दें कि म्यांमार में आपातकाल को छह महीने और बढ़ाने की घोषणा सोमवार को कार्यवाहक राष्ट्रपति यू म्यिंट स्वे ने की थी. यह आपातकाल की स्थिति का चौथा विस्तार है इससे भारत के पूर्वी सीमा पर चुनाव कराने में और देरी हुई है.

म्यांमार में एक सैन्य तख्तापलट के बाद लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता आंग सान सू की को अपदस्थ करने के बाद 1 फरवरी, 2021 को आपातकाल की स्थिति घोषित की गई थी. सेना ने 2020 के चुनावों में कई अनियमितताओं का हवाला दिया था जिसमें सू की की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) विजयी हुई था. तख्तापलट के बाद सेना ने शुरू में कहा था कि एक साल बाद नए चुनाव होंगे लेकिन फिर कहा कि ये अगस्त 2023 में होंगे. हालांकि तख्तापलट के बाद, भारत के साथ सीमा सहित देश के विभिन्न हिस्सों में सैन्य बलों और जातीय सशस्त्र संगठनों के बीच भीषण लड़ाई से दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र तबाह हो गया है. म्यांमार में भारत के पूर्व राजदूत राजीव भाटिया ने ईटीवी भारत को बताया कि आपातकाल के विस्तार की उम्मीद थी. उन्होंने कहा कि सेना ने माना है कि वह देश में व्यवस्था लाने में सक्षम नहीं है.

भाटिया ने पश्चिमी म्यांमार की स्थिति को बहुत अशांत बताते हुए कहा कि वहां जो हो रहा है और मणिपुर में जो हो रहा है, उसमें एक उल्लेखनीय संयोग है. उन्होंने कहा कि अभी तक म्यांमार में शांति लाने के लिए कोई आंतरिक बातचीत नहीं हुई है. पूर्व राजदूत ने कहा कि भारत के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित दांव पर हैं, जो म्यांमार में अस्थिरता के कारण खतरे में हैं. उन्होंने कहा कि मणिपुर में जातीय संघर्ष के कारण प्रतिकूल प्रभाव अधिक रहा है. उन्होंने कहा कि भारत-म्यांमार की सैन्य सरकार से सहयोग मांग रहा है. यही कारण है कि हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बैंकॉक में अपने म्यांमार समकक्ष से मुलाकात की थी.

इन बैठकों के दौरान म्यांमार फोकस का प्रमुख बिंदु था. इस दौरान म्यांमार की सैन्य परिषद के प्रमुख वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग भी मौजूद थे. बैठक में आसियान के शीर्ष नेताओं द्वारा तैयार किए गए पांच सूत्री आम सहमति फॉर्मूले को स्वीकार कर लिया गया था. इन पांच तत्वों में सभी हिंसा की तत्काल समाप्ति, शांतिपूर्ण समाधान के लिए रचनात्मक बातचीत, आसियान के एक विशेष दूत द्वारा मध्यस्थता, मानवीय सहायता का वितरण और यह शर्त कि आसियान प्रतिनिधिमंडल सभी संबंधित पक्षों से मुलाकात करेगा शामिल था.

वहीं जकार्ता के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर बैंकॉक गए, जहां उन्होंने मेकोंग गंगा सहयोग (एमजीसी) और बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) के विदेश मंत्रियों की रिट्रीट की 12वीं विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लिया था. इसके अलावा बैंकांक में बैठकों से इतर जयशंकर ने म्यांमार के विदेश मंत्री यू थान स्वे के साथ द्विपक्षीय बैठक की थी. भाटिया के अनुसार, दोनों पक्षों ने अपने दृष्टिकोण और चिंताओं को साझा किया था. तख्तापलट के बाद दोनों पक्षों के बीच यह पहली राजनीतिक स्तर की बातचीत थी.

शिलांग स्थित थिंक टैंक एशियन कॉनफ्लुएंस के सीनियर फेलो के. योहोम के मुताबिक, म्यांमार में सेना की ताकत जरूरत से ज्यादा बढ़ा दी गई है. योहोम ने कहा, 'तख्तापलट के बाद शुरुआती दिनों में, ज्यादातर संघर्ष चिन राज्य और सागैन क्षेत्र (भारत के साथ सीमा के पास) में हुआ.' लेकिन वर्तमान में सेना थाईलैंड के साथ पूर्वी सीमा पर ध्यान केंद्रित कर रही है. योहोम के अनुसार, हालांकि म्यांमार में कई जातीय सशस्त्र संगठन सक्रिय हैं लेकिन उत्तर में वे बाकियों की तुलना में बहुत मजबूत हैं. उन्होंने कहा, 'मेरी राय में सेना आपातकाल के इस विस्तार को उत्तर में समूहों के साथ समझौता करने के अवसर के रूप में उपयोग करेगी. इस बीच, अपुष्ट खबरों के मुताबिक सू की को जेल से नजरबंद कर दिया गया है. भाटिया ने कहा, 'अगर यह सच है, तो (सेना की) प्रेरणा राष्ट्रीय संवाद को फिर से खोलने के लिए उसका उपयोग करना है.' मंगलवार को म्यांमार राज्य मीडिया के नवीनतम अपडेट के अनुसार, नोबेल पुरस्कार विजेता सू की को पांच आपराधिक मामलों में माफ कर दिया गया है, हालांकि उन पर 14 और मामले चल रहे हैं.

ये भी पढ़ें - Myanmar In Focus : जयशंकर का दक्षिण पूर्व एशियाई दौरा: म्यांमार पर रहा फोकस

नई दिल्ली: म्यांमार में सैन्य शासन द्वारा 1 अगस्त से उस देश में आपातकाल की अवधि बढ़ाने के साथ भारत को पूर्वी सीमा विशेषकर मणिपुर में स्थिरता लाने के लिए वर्तमान शासन के साथ जुड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. बता दें कि म्यांमार में आपातकाल को छह महीने और बढ़ाने की घोषणा सोमवार को कार्यवाहक राष्ट्रपति यू म्यिंट स्वे ने की थी. यह आपातकाल की स्थिति का चौथा विस्तार है इससे भारत के पूर्वी सीमा पर चुनाव कराने में और देरी हुई है.

म्यांमार में एक सैन्य तख्तापलट के बाद लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता आंग सान सू की को अपदस्थ करने के बाद 1 फरवरी, 2021 को आपातकाल की स्थिति घोषित की गई थी. सेना ने 2020 के चुनावों में कई अनियमितताओं का हवाला दिया था जिसमें सू की की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) विजयी हुई था. तख्तापलट के बाद सेना ने शुरू में कहा था कि एक साल बाद नए चुनाव होंगे लेकिन फिर कहा कि ये अगस्त 2023 में होंगे. हालांकि तख्तापलट के बाद, भारत के साथ सीमा सहित देश के विभिन्न हिस्सों में सैन्य बलों और जातीय सशस्त्र संगठनों के बीच भीषण लड़ाई से दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र तबाह हो गया है. म्यांमार में भारत के पूर्व राजदूत राजीव भाटिया ने ईटीवी भारत को बताया कि आपातकाल के विस्तार की उम्मीद थी. उन्होंने कहा कि सेना ने माना है कि वह देश में व्यवस्था लाने में सक्षम नहीं है.

भाटिया ने पश्चिमी म्यांमार की स्थिति को बहुत अशांत बताते हुए कहा कि वहां जो हो रहा है और मणिपुर में जो हो रहा है, उसमें एक उल्लेखनीय संयोग है. उन्होंने कहा कि अभी तक म्यांमार में शांति लाने के लिए कोई आंतरिक बातचीत नहीं हुई है. पूर्व राजदूत ने कहा कि भारत के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित दांव पर हैं, जो म्यांमार में अस्थिरता के कारण खतरे में हैं. उन्होंने कहा कि मणिपुर में जातीय संघर्ष के कारण प्रतिकूल प्रभाव अधिक रहा है. उन्होंने कहा कि भारत-म्यांमार की सैन्य सरकार से सहयोग मांग रहा है. यही कारण है कि हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बैंकॉक में अपने म्यांमार समकक्ष से मुलाकात की थी.

इन बैठकों के दौरान म्यांमार फोकस का प्रमुख बिंदु था. इस दौरान म्यांमार की सैन्य परिषद के प्रमुख वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग भी मौजूद थे. बैठक में आसियान के शीर्ष नेताओं द्वारा तैयार किए गए पांच सूत्री आम सहमति फॉर्मूले को स्वीकार कर लिया गया था. इन पांच तत्वों में सभी हिंसा की तत्काल समाप्ति, शांतिपूर्ण समाधान के लिए रचनात्मक बातचीत, आसियान के एक विशेष दूत द्वारा मध्यस्थता, मानवीय सहायता का वितरण और यह शर्त कि आसियान प्रतिनिधिमंडल सभी संबंधित पक्षों से मुलाकात करेगा शामिल था.

वहीं जकार्ता के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर बैंकॉक गए, जहां उन्होंने मेकोंग गंगा सहयोग (एमजीसी) और बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) के विदेश मंत्रियों की रिट्रीट की 12वीं विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लिया था. इसके अलावा बैंकांक में बैठकों से इतर जयशंकर ने म्यांमार के विदेश मंत्री यू थान स्वे के साथ द्विपक्षीय बैठक की थी. भाटिया के अनुसार, दोनों पक्षों ने अपने दृष्टिकोण और चिंताओं को साझा किया था. तख्तापलट के बाद दोनों पक्षों के बीच यह पहली राजनीतिक स्तर की बातचीत थी.

शिलांग स्थित थिंक टैंक एशियन कॉनफ्लुएंस के सीनियर फेलो के. योहोम के मुताबिक, म्यांमार में सेना की ताकत जरूरत से ज्यादा बढ़ा दी गई है. योहोम ने कहा, 'तख्तापलट के बाद शुरुआती दिनों में, ज्यादातर संघर्ष चिन राज्य और सागैन क्षेत्र (भारत के साथ सीमा के पास) में हुआ.' लेकिन वर्तमान में सेना थाईलैंड के साथ पूर्वी सीमा पर ध्यान केंद्रित कर रही है. योहोम के अनुसार, हालांकि म्यांमार में कई जातीय सशस्त्र संगठन सक्रिय हैं लेकिन उत्तर में वे बाकियों की तुलना में बहुत मजबूत हैं. उन्होंने कहा, 'मेरी राय में सेना आपातकाल के इस विस्तार को उत्तर में समूहों के साथ समझौता करने के अवसर के रूप में उपयोग करेगी. इस बीच, अपुष्ट खबरों के मुताबिक सू की को जेल से नजरबंद कर दिया गया है. भाटिया ने कहा, 'अगर यह सच है, तो (सेना की) प्रेरणा राष्ट्रीय संवाद को फिर से खोलने के लिए उसका उपयोग करना है.' मंगलवार को म्यांमार राज्य मीडिया के नवीनतम अपडेट के अनुसार, नोबेल पुरस्कार विजेता सू की को पांच आपराधिक मामलों में माफ कर दिया गया है, हालांकि उन पर 14 और मामले चल रहे हैं.

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