शिमला: बेटी और बूटा, ये दोनों ही अनमोल हैं. एक बेटी दो परिवारों के लिए वरदान बनकर जन्म लेती है. इसी तरह एक पौधा अनेक लोगों को प्राण वायु देता है. हिमाचल में 'बेटी बचाओ अभियान' को पर्यावरण के साथ जोड़कर एक अनूठी योजना लागू (hp government initiatives for girl) की गई है. 'एक बूटा, बेटी के नाम', (ek boota beti ke naam) इस योजना में हिमाचल प्रदेश में बेहतरीन काम हो रहा है. योजना की शुरुआत से लेकर अब तक प्रदेश में करीब तीस हजार अभिभावक को बेटी के जन्म पर पौधे और किट दी गई है. इस योजना के सार्थक परिणाम सामने आए हैं.
हिमाचल प्रदेश अपने शानदार फॉरेस्ट कवर के लिए देश भर में पहचान रखता है. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश ने हरियाली को बचाए रखने के लिए ग्रीन फैलिंग यानी हरे पेड़ काटने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया हुआ है. राज्य का फॉरेस्ट कवर 33 फीसदी करने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इसी कड़ी में 'एक बूटा, बेटी के नाम' योजना का खास जिक्र करना जरूरी है. देश के पूर्व पीएम व भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती पर योजना शुरू की गई थी. हिमाचल में सीएम जयराम ठाकुर ने इसे लांच किया.
योजना के तहत बेटी के जन्म पर परिवार को पांच पौधे दिए (plantation for daughter in himachal) जाते हैं. ये पौधे वन भूमि और निजी भूमि पर लगाए जाते हैं. साथ में बेटी के नाम की पट्टिका भी होती है. मां को भी पांच पौधे देवदार के दिए जाते हैं. करीब दो हजार रुपए मूल्य की किट भी दी जाती है, जो पौधारोपण से संबंधित सामग्री की होती है. यदि पौधा लगाने के कुछ समय बाद सूख जाए तो उसकी जगह नया पौधा लगाया जाता है. हिमाचल में वन विभाग इस योजना को क्रियान्वित कर रहा है. इसमें पंचायतीराज विभाग भी सहयोग करता है.योजना का मकसद बेटियों का सम्मान और पर्यावरण का संरक्षण है. बेटियों की अहमियत दर्शाती इस योजना को केंद्र सरकार ने भी सराहा है.
बता दें कि हिमाचल प्रदेश एशिया का पहला राज्य है, जिसे कार्बन क्रेडिट के लिए विश्व बैंक से सम्मान व इनाम मिला है. कार्बन को कम करने का क्रेडिट हरियाली को जाता है और हिमाचल लगातार हरियाली बढ़ा रहा है. योजना के तहत वन विभाग के अधिकारी अपने क्षेत्र से संबंधित पंचायत व नगर निकाय में बेटी के जन्म लेने की जानकारी इकट्ठा करेंगे.
वन विभाग ऐसी बेटियों की सूची बनाता है फिर परिवार को पांच पौधे व किट दी जाती है. वन विभाग के अधिकारियों के सामने ही पौधे रोपे जाते हैं. योजना शुरू होने के बाद से ही ये लोकप्रिय है. दिसंबर 2019 में योजना के आरंभ होने के एक साल बाद नवंबर 2020 तक 13389 नवजात बेटियों के अभिभावक को पांच पौधे दिए गए.
उल्लेखनीय है कि हिमाचल में फॉरेस्ट कवर एरिया को बढ़ाने के लिए हर साल एक करोड़ से अधिक पौधे रोपे जाते हैं. हिमाचल ने वर्ष 2013-14 में 1.66 करोड़, वर्ष 2014-15 में 1.35 करोड़ और वर्ष 2015-16 में 1.22 करोड़ पौधे रोपे हैं. इसके बाद के समय में भी सालाना पौधे रोपने का औसत एक करोड़ पौधों से अधिक का ही है. इनका सर्वाइवल रेट भी अस्सी फीसदी से अधिक है. हिमाचल में औषधीय पौधों को रोपने का अभियान भी साथ-साथ चलता है. औषधीय पौधों के तहत अर्जुन, हरड़, बहेड़ा व आंवला सहित अन्य पौधे रोपे जाते हैं. राज्य में जंगली फलदार पौधे भी रोपे जा रहे हैं. इसका मकसद बंदरों को वनों में ही आहार उपलब्ध करवाना है.
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आंकड़ों के अनुसार हिमाचल में सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं ने वर्ष 2013-14 में 45.30 लाख, वर्ष 2014-15 में 46.70 लाख तथा वर्ष 2015-16 में 43 लाख औषधीय पौधे लगाए हैं. पिछले साल हिमाचल प्रदेश में एक करोड़ से अधिक पौधे लगाए गए थे. इस साल भी 14 हजार हेक्टेयर भूमि पर एक करोड़ से अधिक पौधे रोप जा रहे हैं. हिमाचल का फॉरेस्ट कवर एरिया पिछली रिपोर्ट में 333 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है. वन मंत्री राकेश पठानिया का कहना है कि विभाग नियमित समय पर पौधरोपण की समीक्षा करता है. पौधों की सर्वाइवल रेट पर खास फोकस किया जा रहा है.