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सर्दियों में खूब सताएगी ठंड, कई राज्यों में न्यूनतम तापमान का टूटेगा रेकॉर्ड, जानिए क्यों ? - बारिश

अब मौसम गजब रंग बदलने लगा है. 2021 में मॉनसून देर से लौटा, हर तरफ बेमौसम की बरसात हुई. अब सितम ढ़ाने वाली सर्दी होने की संभावना जताई जा रही है. मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, यह जलवायु परिवर्तन का असर है.

Effect of La Nina, severe cold record breaking
Effect of La Nina, severe cold record breaking
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Published : Nov 20, 2021, 7:23 PM IST

हैदराबाद : अगर आप जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलावों से वाकिफ नहीं हैं तो यह भी जान लें कि दक्षिण भारत तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में हो रही बेमौसम बारिश इसी का नतीजा है. इसका असर अक्टूबर में उत्तर भारत में दिखा था, जब देश में सामान्य से न केवल अधिक बारिश हुई बल्कि 34 इलाकों में 24 घंटे के दौरान होने वाली बारिश के पिछले सारे रिकॉर्ड टूट गए. उत्तराखंड और हिमाचल में हर साल की तरह बर्फबारी अक्टूबर में शुरू हो गई, मगर इस साल इसकी तीब्रता पिछले साल के मुकाबले ज्यादा थी. यानी हर तरह के मौसम में अति हो रही है. ज्यादा बारिश और अब भयंकर ठंड.

Effect of La Nina, severe cold record breaking
ला नीना के कारण पश्चिमी विक्षोभ की हवाएं काफी ठंडी होती हैं.

फिलहाल उत्तर भारत में कड़कड़ाती सर्दी की बारी है. मौसम विभाग के एक अनुमान के मुताबिक, इस साल देश में ठंड ज्यादा ठिठुरन पैदा करने वाली होगी. न्यूनतम तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस तक गिरावट हो सकती है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में अत्यधिक सर्दी होने की चेतावनी दी गई है. रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी और फरवरी कुछ उत्तरी राज्यों में विशेष रूप से ठंडे होंगे. जिन राज्यों में न्यूनतम तापमान 5 डिग्री सेल्सियस रहता था, वहां यह 2 डिग्री तक गिर सकता है.

हांड़ कंपाने वाली ठंड पड़ेगी, ला नीना है इसकी वजह

ठिठुरन पैदा करने वाली ठंड का अनुमान प्रशांत महासागर में हुए मौसम के बदलावों की वजह से लगाया जा रहा है. मौसम वैज्ञानिक इसे 'ला नीना' (la Nina) प्रभाव बता रहे हैं. ला नीना मौसम पैटर्न उत्तरी गोलार्ध में सर्द हवाओं का कारण बनता है. पूर्व और मध्य प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान ला नीना के दौरान औसत से ज्यादा ठंडा हो जाता है. फिर जब हवा इससे गुजरते हुए जिन इलाकों में पहुंचती है, वहां का मौसम भी सर्दी वाला हो जाता है.

Effect of La Nina, severe cold record breaking
उत्तराखंड में अक्टूबर महीने के दौरान सामान्य से ज्यादा बर्फबारी हुई.

ला नीना क्या है, जो जनवरी-फरवरी में ठंड बढ़ाएगी

आप इसे यूं समझें अल नीना प्रशांत महासागर में होने वाली एक प्राकृतिक हलचल है. स्पैनिश भाषा में ला नीना का मतलब होता है नन्ही बच्ची. इसी ला नीना के कारण उत्तरी गोलार्ध में तापमान का सामान्य से कम रहेगा. जनवरी और फरवरी के महीने में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में औसत से ज्यादा ठंड रहेगी. ला नीना की वजह से भारतीय उपमहाद्वीप में नमी की मात्रा बढ़ेगी. इसका असर भारत के अन्य राज्यों पर भी होगा. इस कारण पहाड़ों में बर्फबारी और अन्य राज्यों में बारिश की संभावना बनी रहेगी. 2017 में भी ला नीना ने भारत में सर्दियों में सितम ढ़ाया था.

इसके लिए जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग जिम्मेदार कैसे है ?

प्रशांत महासागर से प्राकृतिक तौर से बहने वाली हवाएं भूमध्य रेखा के साथ पश्चिम से चलती हैं. यही हवाएं दुनिया में मौसम तय करती हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण प्रशांत महासागर में ला नीना (la Nina) और अल नीनो (El Nino) जैसे तूफान के आने की फ्रीक्वेंसी बढ़ जाती है. अल नीनो गर्म हवा के प्रवाह के लिए जिम्मेदार है जबकि ला नीना ठंडी हवा का कारण बनती है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण ये दोनों हवाएं अपनी चरम पर होती हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण लुप्त हो रही समुद्री बर्फ के कारण इनके चक्र में भी परिवर्तन आ रहा है. ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के कारण हर दस साल में प्रशांत महासागर में ला नीना (la Nina) और अल नीनो (El Nino) जैसी स्थिति पैदा हो जाती है.

Effect of La Nina, severe cold record breaking
तमिलनाडु को लोग अत्यधिक बारिश होने के कारण परेशान हैं.

नेशनल ओसिनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के अनुसार, ला नीना जब उत्तरी गोलार्ध में ठंडे सर्दियों की ओर जाता है, यह दक्षिणी अमेरिका में सूखा और प्रशांत उत्तर-पश्चिम और कनाडा में भारी बारिश और बाढ़ का कारण बनता है. जब यह एशिया की ओर आता है तो भारतीय प्रायद्वीप में ठंड और बारिश करता है. मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर सर्दियों की अवधि बढ़ी तो गर्मियों में भी लोगों को प्रचंड गर्मी का सामना करना पड़ेगा. मौसम में इस तरह बदलाव होंगे तो लोगों का स्वास्थ्य, पर्यावरण और आम जिंदगी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

हैदराबाद : अगर आप जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलावों से वाकिफ नहीं हैं तो यह भी जान लें कि दक्षिण भारत तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में हो रही बेमौसम बारिश इसी का नतीजा है. इसका असर अक्टूबर में उत्तर भारत में दिखा था, जब देश में सामान्य से न केवल अधिक बारिश हुई बल्कि 34 इलाकों में 24 घंटे के दौरान होने वाली बारिश के पिछले सारे रिकॉर्ड टूट गए. उत्तराखंड और हिमाचल में हर साल की तरह बर्फबारी अक्टूबर में शुरू हो गई, मगर इस साल इसकी तीब्रता पिछले साल के मुकाबले ज्यादा थी. यानी हर तरह के मौसम में अति हो रही है. ज्यादा बारिश और अब भयंकर ठंड.

Effect of La Nina, severe cold record breaking
ला नीना के कारण पश्चिमी विक्षोभ की हवाएं काफी ठंडी होती हैं.

फिलहाल उत्तर भारत में कड़कड़ाती सर्दी की बारी है. मौसम विभाग के एक अनुमान के मुताबिक, इस साल देश में ठंड ज्यादा ठिठुरन पैदा करने वाली होगी. न्यूनतम तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस तक गिरावट हो सकती है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में अत्यधिक सर्दी होने की चेतावनी दी गई है. रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी और फरवरी कुछ उत्तरी राज्यों में विशेष रूप से ठंडे होंगे. जिन राज्यों में न्यूनतम तापमान 5 डिग्री सेल्सियस रहता था, वहां यह 2 डिग्री तक गिर सकता है.

हांड़ कंपाने वाली ठंड पड़ेगी, ला नीना है इसकी वजह

ठिठुरन पैदा करने वाली ठंड का अनुमान प्रशांत महासागर में हुए मौसम के बदलावों की वजह से लगाया जा रहा है. मौसम वैज्ञानिक इसे 'ला नीना' (la Nina) प्रभाव बता रहे हैं. ला नीना मौसम पैटर्न उत्तरी गोलार्ध में सर्द हवाओं का कारण बनता है. पूर्व और मध्य प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान ला नीना के दौरान औसत से ज्यादा ठंडा हो जाता है. फिर जब हवा इससे गुजरते हुए जिन इलाकों में पहुंचती है, वहां का मौसम भी सर्दी वाला हो जाता है.

Effect of La Nina, severe cold record breaking
उत्तराखंड में अक्टूबर महीने के दौरान सामान्य से ज्यादा बर्फबारी हुई.

ला नीना क्या है, जो जनवरी-फरवरी में ठंड बढ़ाएगी

आप इसे यूं समझें अल नीना प्रशांत महासागर में होने वाली एक प्राकृतिक हलचल है. स्पैनिश भाषा में ला नीना का मतलब होता है नन्ही बच्ची. इसी ला नीना के कारण उत्तरी गोलार्ध में तापमान का सामान्य से कम रहेगा. जनवरी और फरवरी के महीने में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में औसत से ज्यादा ठंड रहेगी. ला नीना की वजह से भारतीय उपमहाद्वीप में नमी की मात्रा बढ़ेगी. इसका असर भारत के अन्य राज्यों पर भी होगा. इस कारण पहाड़ों में बर्फबारी और अन्य राज्यों में बारिश की संभावना बनी रहेगी. 2017 में भी ला नीना ने भारत में सर्दियों में सितम ढ़ाया था.

इसके लिए जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग जिम्मेदार कैसे है ?

प्रशांत महासागर से प्राकृतिक तौर से बहने वाली हवाएं भूमध्य रेखा के साथ पश्चिम से चलती हैं. यही हवाएं दुनिया में मौसम तय करती हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण प्रशांत महासागर में ला नीना (la Nina) और अल नीनो (El Nino) जैसे तूफान के आने की फ्रीक्वेंसी बढ़ जाती है. अल नीनो गर्म हवा के प्रवाह के लिए जिम्मेदार है जबकि ला नीना ठंडी हवा का कारण बनती है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण ये दोनों हवाएं अपनी चरम पर होती हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण लुप्त हो रही समुद्री बर्फ के कारण इनके चक्र में भी परिवर्तन आ रहा है. ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के कारण हर दस साल में प्रशांत महासागर में ला नीना (la Nina) और अल नीनो (El Nino) जैसी स्थिति पैदा हो जाती है.

Effect of La Nina, severe cold record breaking
तमिलनाडु को लोग अत्यधिक बारिश होने के कारण परेशान हैं.

नेशनल ओसिनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के अनुसार, ला नीना जब उत्तरी गोलार्ध में ठंडे सर्दियों की ओर जाता है, यह दक्षिणी अमेरिका में सूखा और प्रशांत उत्तर-पश्चिम और कनाडा में भारी बारिश और बाढ़ का कारण बनता है. जब यह एशिया की ओर आता है तो भारतीय प्रायद्वीप में ठंड और बारिश करता है. मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर सर्दियों की अवधि बढ़ी तो गर्मियों में भी लोगों को प्रचंड गर्मी का सामना करना पड़ेगा. मौसम में इस तरह बदलाव होंगे तो लोगों का स्वास्थ्य, पर्यावरण और आम जिंदगी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

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