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Editors Guild of India ने मणिपुर में दर्ज FIR में गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग करते हुए SC का दरवाजा खटखटाया - प्रेस क्लब ऑफ इंडिया

पुलिस द्वारा एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) के चार सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के एक दिन बाद मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने सोमवार को कहा कि मणिपुर जातीय संघर्ष पर ईजीआई रिपोर्ट 'पक्षपातपूर्ण और तथ्यात्मक रूप से गलत' है. पढ़ें पूरी खबर...

Editors Guild of India
प्रतिकात्मक तस्वीर
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 6, 2023, 12:49 PM IST

नई दिल्ली : एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. ईजीआई ने मणिपुर में जातीय झड़पों पर प्रकाशित एक रिपोर्ट पर अपने चार सदस्यों के खिलाफ दायर दो एफआईआर में सुरक्षात्मक आदेश देने का निर्देश देने की मांग की. इस मामले का उल्लेख भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष किया गया था. शीर्ष अदालत आज इस मामले पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई है.

ईजीआई ने एफआईआर को रद्द करने की भी मांग की है. ईजीआई का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि उन्हें गिरफ्तारी की आशंका है. उन्होंने अदालत से मामले की आज सुनवाई करने का आग्रह किया. दीवान ने कहा कि अदालत के समक्ष चार रिट याचिकाकर्ता हैं और हम गिरफ्तारी और दंडात्मक कदमों से सुरक्षा की मांग कर रहे हैं.

दीवान ने कहा कि ईजीआई ने एक तथ्य-खोज समिति नियुक्त की और पहले तीन याचिकाकर्ता, जो वरिष्ठ पत्रकार हैं, समिति का हिस्सा थे और वे मणिपुर गए और चार दिनों तक जमीन पर रहे. दीवान ने कहा कि उन्होंने लोगों का साक्षात्कार लिया और फिर एक तथ्यान्वेषी रिपोर्ट तैयार की और वह तथ्यान्वेषी रिपोर्ट 2 सितंबर को जारी की गई. जिसके बाद पत्रकारों के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज किये गये हैं.

बता दें कि पुलिस द्वारा एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) के चार सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के एक दिन बाद मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने सोमवार को कहा था कि मणिपुर जातीय संघर्ष पर ईजीआई रिपोर्ट 'पक्षपातपूर्ण और तथ्यात्मक रूप से गलत' है. मुख्यमंत्री ने कहा कि इस तरह की ईजीआई रिपोर्ट मणिपुर में और अधिक समस्याएं पैदा करेगी.

ईजीआई की तीन सदस्यीय तथ्यान्वेषी टीम ने मणिपुर का दौरा करने के बाद पिछले सप्ताह नई दिल्ली में अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की. जिसमें दावा किया गया कि मणिपुर में जातीय हिंसा पर मीडिया की रिपोर्टें एकतरफा थीं और राज्य नेतृत्व पर पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया. 24 पेज की ईजीआई रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष और सिफारिशों में कहा कि सरकार को जातीय संघर्ष में पक्ष लेने से बचना चाहिए था, लेकिन यह एक लोकतांत्रिक सरकार के रूप में अपना कर्तव्य निभाने में विफल रही, जिसे पूरे राज्य का प्रतिनिधित्व करना चाहिए था.

मुख्यमंत्री ने सोमवार को मीडिया से बात करते हुए कहा कि ईजीआई के सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है जो मणिपुर में और अधिक झड़पें पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. सिंह ने कहा, किसी निष्कर्ष पर पहुंचने या अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करने से पहले ईजीआई टीम को 'सभी समुदायों' के प्रतिनिधियों से मिलना चाहिए था, न कि 'केवल कुछ वर्गों या चुनिंदा वर्ग या लोगों से'.

जिन लोगों के खिलाफ एफआईआर में मामला दर्ज किया गया है उनमें ईजीआई के अध्यक्ष और तीन सदस्य - सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर शामिल हैं, जिन्होंने जातीय हिंसा और परिस्थितिजन्य पहलुओं की मीडिया रिपोर्टों का अध्ययन करने के लिए पिछले महीने मणिपुर का दौरा किया था.

इस बीच, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने एक बयान में मणिपुर में जातीय संघर्ष और हिंसा के मीडिया कवरेज पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की तथ्य-खोज समिति के तीन सदस्यों और उसके अध्यक्ष के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करने की कड़ी निंदा की. इंफाल स्थित सामाजिक कार्यकर्ता नगंगोम शरत सिंह ने पिछले महीने मणिपुर आए तीन ईजीआई सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी. एफआईआर में कहा गया है कि ईजीआई रिपोर्ट में चुराचांदपुर जिले में एक जलती हुई इमारत की तस्वीर को 'कुकी हाउस' कैप्शन दिया गया है.

हालांकि, इस इमारत में वन विभाग का कार्यालय था, जिसे 3 मई को भीड़ द्वारा आग लगा दी गई थी, जिस दिन राज्य के अन्य हिस्सों के साथ जिले में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़की थी. हालांकि, ईजीआई ने रविवार को एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा कि 2 सितंबर को जारी रिपोर्ट में एक फोटो कैप्शन में एक त्रुटि थी. इसे ठीक किया जा रहा है और अद्यतन रिपोर्ट लिंक पर जल्‍द ही अपलोड की जाएगी. हमें फोटो संपादन चरण में हुई त्रुटि के लिए खेद है.

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हालांकि, शरत सिंह ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि ईजीआई रिपोर्ट में मणिपुर में बड़े पैमाने पर अवैध आप्रवासन के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख नहीं किया गया है, जिससे जनसांख्यिकीय परिवर्तन के साथ स्वदेशी लोगों को खतरा है. उन्होंने अपने पत्र में कहा कि मणिपुर में असामान्य जनसंख्या वृद्धि इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि जनसंख्या की असामान्य दशकीय वृद्धि 169 प्रतिशत तक होने के कारण राज्य के नौ पहाड़ी उपखंडों के लिए 2001 की जनगणना को अंतिम रूप नहीं दिया गया है. 13 पन्नों की शिकायत, जो इंफाल पश्चिम जिले के इंफाल पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी.

(अतिरिक्त इनपुट एजेंसी)

नई दिल्ली : एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. ईजीआई ने मणिपुर में जातीय झड़पों पर प्रकाशित एक रिपोर्ट पर अपने चार सदस्यों के खिलाफ दायर दो एफआईआर में सुरक्षात्मक आदेश देने का निर्देश देने की मांग की. इस मामले का उल्लेख भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष किया गया था. शीर्ष अदालत आज इस मामले पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई है.

ईजीआई ने एफआईआर को रद्द करने की भी मांग की है. ईजीआई का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि उन्हें गिरफ्तारी की आशंका है. उन्होंने अदालत से मामले की आज सुनवाई करने का आग्रह किया. दीवान ने कहा कि अदालत के समक्ष चार रिट याचिकाकर्ता हैं और हम गिरफ्तारी और दंडात्मक कदमों से सुरक्षा की मांग कर रहे हैं.

दीवान ने कहा कि ईजीआई ने एक तथ्य-खोज समिति नियुक्त की और पहले तीन याचिकाकर्ता, जो वरिष्ठ पत्रकार हैं, समिति का हिस्सा थे और वे मणिपुर गए और चार दिनों तक जमीन पर रहे. दीवान ने कहा कि उन्होंने लोगों का साक्षात्कार लिया और फिर एक तथ्यान्वेषी रिपोर्ट तैयार की और वह तथ्यान्वेषी रिपोर्ट 2 सितंबर को जारी की गई. जिसके बाद पत्रकारों के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज किये गये हैं.

बता दें कि पुलिस द्वारा एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) के चार सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के एक दिन बाद मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने सोमवार को कहा था कि मणिपुर जातीय संघर्ष पर ईजीआई रिपोर्ट 'पक्षपातपूर्ण और तथ्यात्मक रूप से गलत' है. मुख्यमंत्री ने कहा कि इस तरह की ईजीआई रिपोर्ट मणिपुर में और अधिक समस्याएं पैदा करेगी.

ईजीआई की तीन सदस्यीय तथ्यान्वेषी टीम ने मणिपुर का दौरा करने के बाद पिछले सप्ताह नई दिल्ली में अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की. जिसमें दावा किया गया कि मणिपुर में जातीय हिंसा पर मीडिया की रिपोर्टें एकतरफा थीं और राज्य नेतृत्व पर पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया. 24 पेज की ईजीआई रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष और सिफारिशों में कहा कि सरकार को जातीय संघर्ष में पक्ष लेने से बचना चाहिए था, लेकिन यह एक लोकतांत्रिक सरकार के रूप में अपना कर्तव्य निभाने में विफल रही, जिसे पूरे राज्य का प्रतिनिधित्व करना चाहिए था.

मुख्यमंत्री ने सोमवार को मीडिया से बात करते हुए कहा कि ईजीआई के सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है जो मणिपुर में और अधिक झड़पें पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. सिंह ने कहा, किसी निष्कर्ष पर पहुंचने या अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करने से पहले ईजीआई टीम को 'सभी समुदायों' के प्रतिनिधियों से मिलना चाहिए था, न कि 'केवल कुछ वर्गों या चुनिंदा वर्ग या लोगों से'.

जिन लोगों के खिलाफ एफआईआर में मामला दर्ज किया गया है उनमें ईजीआई के अध्यक्ष और तीन सदस्य - सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर शामिल हैं, जिन्होंने जातीय हिंसा और परिस्थितिजन्य पहलुओं की मीडिया रिपोर्टों का अध्ययन करने के लिए पिछले महीने मणिपुर का दौरा किया था.

इस बीच, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने एक बयान में मणिपुर में जातीय संघर्ष और हिंसा के मीडिया कवरेज पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की तथ्य-खोज समिति के तीन सदस्यों और उसके अध्यक्ष के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करने की कड़ी निंदा की. इंफाल स्थित सामाजिक कार्यकर्ता नगंगोम शरत सिंह ने पिछले महीने मणिपुर आए तीन ईजीआई सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी. एफआईआर में कहा गया है कि ईजीआई रिपोर्ट में चुराचांदपुर जिले में एक जलती हुई इमारत की तस्वीर को 'कुकी हाउस' कैप्शन दिया गया है.

हालांकि, इस इमारत में वन विभाग का कार्यालय था, जिसे 3 मई को भीड़ द्वारा आग लगा दी गई थी, जिस दिन राज्य के अन्य हिस्सों के साथ जिले में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़की थी. हालांकि, ईजीआई ने रविवार को एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा कि 2 सितंबर को जारी रिपोर्ट में एक फोटो कैप्शन में एक त्रुटि थी. इसे ठीक किया जा रहा है और अद्यतन रिपोर्ट लिंक पर जल्‍द ही अपलोड की जाएगी. हमें फोटो संपादन चरण में हुई त्रुटि के लिए खेद है.

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हालांकि, शरत सिंह ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि ईजीआई रिपोर्ट में मणिपुर में बड़े पैमाने पर अवैध आप्रवासन के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख नहीं किया गया है, जिससे जनसांख्यिकीय परिवर्तन के साथ स्वदेशी लोगों को खतरा है. उन्होंने अपने पत्र में कहा कि मणिपुर में असामान्य जनसंख्या वृद्धि इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि जनसंख्या की असामान्य दशकीय वृद्धि 169 प्रतिशत तक होने के कारण राज्य के नौ पहाड़ी उपखंडों के लिए 2001 की जनगणना को अंतिम रूप नहीं दिया गया है. 13 पन्नों की शिकायत, जो इंफाल पश्चिम जिले के इंफाल पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी.

(अतिरिक्त इनपुट एजेंसी)

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