नई दिल्ली: अगले वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति के अनुकूल होने और ऋण की लागत कम रहने की स्थिति में सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) के लिए ऋण वृद्धि तेज रह सकती है. मंगलवार को संसद में पेश आर्थिक समीक्षा 2022-23 में यह संभावना जताई गई है. आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, 'अगर वित्त वर्ष 2023-24 में मुद्रास्फीति घटती है और ऋण की वास्तविक लागत में कोई बढ़ोतरी नहीं होती है, तो ऋण में तेज वृद्धि रहने की संभावना है.'
एमएसएमई क्षेत्र की ऋण वृद्धि दर जनवरी-नवंबर, 2022 के दौरान करीब 31 प्रतिशत रही है. आर्थिक समीक्षा में बैंकिंग क्षेत्र का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इसने कर्ज की मांग के अनुरूप कदम उठाए हैं. जनवरी-मार्च, 2022 की तिमाही से ही बैंकों की ऋण वृद्धि साल-दर-साल दहाई अंक में रही है और यह अधिकांश क्षेत्रों में बढ़ रही है. आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के वित्त में उल्लेखनीय सुधार हुआ है और अब नियमित अंतराल पर ये बैंक लाभ कमा रहे हैं.
इसके अलावा सार्वजनिक बैंकों की गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) के जल्द समाधान के लिए भारतीय ऋणशोधन एवं दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) तेजी से कदम उठा रहा है. इसी के साथ सरकार भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पर्याप्त पूंजी बनाए रखने के लिए समुचित बजट समर्थन देती रही है. इन बैंकों में नई पूंजी डालने से उनका पूंजी जोखिम-भारित समायोजित अनुपात (सीआरएआर) निर्धारित स्तर से ऊपर रखना सुनिश्चित हो पाया है.
आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, वित्तीय स्थिति मजबूत होने से बैंकों को ऋण वित्तपोषण में आई कमी की भरपाई करने में मदद मिली है. कॉरपोरेट बॉन्ड पर प्रतिफल बढ़ने और बाह्य वाणिज्यिक कर्ज (ईसीबी) पर ब्याज बढ़ने से ये वित्तीय साधन पिछले साल की तुलना में कम आकर्षक हो गए हैं. वित्त वर्ष 2022-23 की आर्थिक समीक्षा कहती है कि अगले वित्त वर्ष में वृद्धि तेज रहने की संभावना है, क्योंकि भारत में ऋण वितरण और पूंजीगत निवेश चक्र तेज रहने की उम्मीद है. कंपनियों और बैंकों का बही-खाता मजबूत होने से वृद्धि को ताकत मिलेगी.
ईसीएलजीएस ने छोटे उद्यमों को वित्तीय संकट में जाने से बचाया
इसके अलावा आर्थिक समीक्षा में यह भी बताया गया है कि केंद्र सरकार की आपात ऋण सुविधा गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) ने एमएसएमई इकाइयों को वित्तीय संकट में जाने से बचाया है और उन्हें कर्ज देने में उल्लेखनीय रूप से उच्च वृद्धि ने उनके जल्द पुनरुद्धार में मदद की है. इन इकाइयों के जीएसटी कर भुगतान से यह पहलू सामने आता है. भारत में छह करोड़ से अधिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) हैं, जिनमें विभिन्न क्षेत्रों और उद्योगों के लगभग 12 करोड़ लोग काम करते हैं.
देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इनका योगदान करीब 35 फीसदी है. सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 में ईसीएलजीएस योजना शुरू की थी, जो एमएसएमई उद्योगों को वित्तीय संकट में जाने से रोकने में मददगार रही है. समीक्षा के मुताबिक, 'एमएसएमई क्षेत्र को कर्ज वृद्धि जनवरी से नवंबर 2022 के दौरान उल्लेखनीय रूप से अधिक और औसतन 30.6 फीसदी से ऊपर रही है. इसे केंद्र सरकार की ईसीएलजीएस से समर्थन मिला.'
इसमें कहा गया, 'एमएसएमई क्षेत्र का पुनरुद्धार तेजी से बढ़ रहा है. यह उनके द्वारा भुगतान किए जाने वाले माल एवं सेवा कर (जीएसटी) से नजर भी आता है.' सर्वेक्षण के मुताबिक, सिबिल की हालिया रिपोर्ट (ईसीएलजीएस इनसाइट्स, अगस्त 2022) बताती है कि योजना ने कोविड महामारी के झटके का मुकाबला करने में एमएसएमई की मदद की और ईसीएलजीएस का लाभ उठाने वाले 83 फीसदी कर्जदार छोटे उद्यम थे.
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इनमें से आधी से अधिक इकाइयों ने 10 लाख रुपये से भी कम राशि का कर्ज लिया. सिबिल के आंकड़ों से यह भी पता चला कि ईसीएलजीएस के कर्जदारों की गैर-निष्पादित आस्तियों की दर भी उन उद्यमों की तुलना में कम थी, जिन्होंने योजना के लिए पात्र होने के बावजूद इस योजना का लाभ नहीं उठाया. आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, एमएसएमई इकाइयों का जीएसटी भुगतान 2020-21 में घटने के बाद से लगातार बढ़ रहा है और अब यह महामारी से पहले के स्तर को भी पार कर चुका है.
(पीटीआई-भाषा)