नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) आज संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण के तुरंत बाद वित्तीय वर्ष 2022-23 का आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey 2022) पेश करने जा रही हैं. बजट से एक दिन पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार के मार्गदर्शन में तैयार आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा. आइए समझते हैं कि आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) का क्या महत्व है और इसका बजट से क्या संबंध है.
क्या होता है आर्थिक सर्वेक्षण?
आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey 2022) में पिछले एक साल में अर्थव्यवस्था की स्थिति पर एक विस्तृत रिपोर्ट शामिल होती है, जिसमें अर्थव्यवस्था से संबंधित प्रमुख चुनौतियों और उनसे निपटने का जिक्र होता है. आर्थिक मामलों के विभाग के आर्थिक प्रभाग द्वारा मुख्य आर्थिक सलाहकार के मार्गदर्शन में इस दस्तावेज को तैयार किया जाता है.
1950-51 में पेश किया गया था पहला आर्थिक सर्वेक्षण
जानकारी के मुताबिक पहला आर्थिक सर्वेक्षण (First Economic Survey) वित्तीय वर्ष 1950-51 के लिए प्रस्तुत किया गया था. प्रारंभ में, आर्थिक सर्वेक्षण केंद्रीय बजट के साथ प्रस्तुत किया गया था, लेकिन 1964 से आर्थिक सर्वेक्षण केंद्रीय बजट से एक दिन पहले प्रस्तुत किया जाने लगा. वहीं, पिछले साल शुक्रवार (29 जनवरी) को आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया गया था और 30 और 31 जनवरी को सप्ताहांत के लिए संसद बंद कर दी गई थी. जब एक बार दस्तावेज तैयार हो जाता है तो उसे वित्त मंत्री द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है. पिछले कुछ सालों में आर्थिक सर्वेक्षण को दो खंडों में प्रस्तुत किया जाने लगा है.
वॉल्यूम 1 को भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली चुनौतियों के अनुसंधान और विश्लेषण कर केंद्रित किया गया था. जबकि वॉल्यूम 2 में वित्तीय वर्ष की एक विस्तृत रिपोर्ट को पेश किया गया था, जो अर्थव्यवस्था के सभी प्रमुख क्षेत्रों को कवर करती है.
क्या है आर्थिक सर्वेक्षण का महत्व?
आर्थिक सर्वेक्षण का महत्व यही है कि यह देश की आर्थिक स्थिति को दिखाता है. आर्थिक सर्वेक्षण पैसे की आपूर्ति, बुनियादी ढांचे, कृषि और औद्योगिक उत्पादन, रोजगार, कीमतों, निर्यात, आयात, विदेशी मुद्रा भंडार के साथ-साथ अन्य प्रांसगिक आर्तिक कारकों का विश्लेषण करता है. यह दस्तावेज सरकार का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है, जो अर्थव्यवस्था की प्रमुख चिंताओं पर भी ध्यान केंद्रित करता है. आर्थिक सर्वेक्षण का डाटा और विश्लेषण आमतौर पर केंद्रीय बजट के लिए एक नीतिगत दृष्टिकोण प्रदान करता है.
आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत करना अनिवार्य है?
ऐसा जरूरी नहीं है, सरकार इसके लिए किसी तरह से संवैधानिक तौर पर बाध्य नहीं है. यह पूरी तरह से सरकार पर निर्भर करता है कि वह दस्तावेज में सूचीबद्ध सुझावों को चुनना या अस्वीकार करना चाहती है या नहीं. इसके अलावा केंद्र सरकार आर्थिक सर्वेक्षण को प्रस्तुत करने के लिए भी बाध्य नहीं है. इसे इसलिए पेश किया जाता है क्योंकि ये महत्वपूर्ण दस्तावेज है.
पढ़ें: कल पेश होगा आम-बजट, प्रक्रियाओं और आम शब्दावलियों को आसान भाषा में समझें
2 हिस्सों में होता है आर्थिक सर्वेक्षण
वर्ष 2015 के बाद आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) को दो हिस्से में बांट दिया गया था. पहले हिस्से में अर्थव्यवस्था के बारे में जिक्र किया जाता है, जो कि बजट से 1 दिन पहले जारी किया जाता है. वहीं दूसरी हिस्से में महत्वपूर्ण आंकड़े शामिल होते हैं. बता दें कि फरवरी 2017 के बाद बजट (Budget 2022) के पेश करने के समय में बदलाव कर दिया गया. आर्थिक सर्वेक्षण में नीतिगत फैसले, आर्थिक आंकड़े, आर्थिक रिसर्च और क्षेत्रवार आर्थिक रूझानों का विश्लेषण शामिल होता है. सामान्तया ये माना जाता है कि आर्थिक सर्वेक्षण बजट के लिए दिशानिर्देश के रूप में भी कार्य करता है. इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण को प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने तैयार किया है क्योंकि नए मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन को सिर्फ दो दिन पहले 28 जनवरी को नियुक्त किया गया है.