जगदलपुर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण मावली परघाव रस्म देर रात अदा की गई. 2 देवियों के मिलन के इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण कुटरूबाढ़ा में अदा की गई. परंपरा अनुसार इस रस्म में दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र डोली और दंतेश्वरी के छत्र को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है, जिसका स्वागत बस्तर के राजपरिवार सदस्य और बस्तरवासी करते है. कोरोनाकाल के बाद इस साल यह रस्म धूमधाम से मनाई गई. नवरात्रि के नवमी में मनाए जाने वाले रस्म को देखने हर साल बड़ी संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ता है, इस रस्म को देखने बड़ी संख्या में स्थानीय लोग पहुंचे थे.
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मावली देवी का बस्तर दशहरा पर्व में यथोचित सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई. विशेष जानकारों के मुताबिक, नवरात्रि के नवमी के दिन दंतेवाड़ा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने बस्तर राजपरिवार सदस्य, राजगुरु और पुजारी के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि राजमहल से मंदिर के प्रांगण तक आते हैं. उनकी अगवानी और पूजा-अर्चना के बाद देवी की डोली को बस्तर के राजकुमार कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखते हैं. साथ ही दशहरे के समापन पर इसकी ससम्मान विदाई होती है.
बस्तर राजकुमार कमलचंद भंजदेव (Prince Kamalchand Bhanjdev of Bastar) ने बताया कि विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व में मावली को शामिल होने के लिए नवरात्रि के पंचमी के दिन बकायदा बस्तर के राजा न्योता देने दंतेवाड़ा जाते हैं. उसके बाद महाष्टमी के शाम मावली माता की डोली और छत्र को शहर के दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिया डेरा नामक एक मंदिर में रखा जाता है. नवमी के दिन शाम को पूरे जोश और आतिशबाजी के साथ श्रद्धालु हाथों में दीए लिए मंदिर के प्रांगण में मावली माता का स्वागत करते हैं. बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव द्वारा डोली की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसके बाद इसे दशहरा पर्व समापन होने तक मंदिर के भीतर रखा जाता है.
दशहरा के दौरान होने वाली महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी और बाहर रैनी, कुटुम जात्रा, काछन जात्रा में डोली और छत्र को शामिल किया जाता है. बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद देव ने बताया कि हर्षोल्लास के साथ पूरे विधि-विधान से दशहरा के रस्मों को सम्पन्न कराया जा रहा है. मावली परघाव के रस्म की अदाएगी धूमधाम से की गई.