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Elgar Parishad Case : दिल्ली विवि के प्रो. हनी बाबू की जमानत याचिका खारिज

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Published : Sep 19, 2022, 2:59 PM IST

Updated : Sep 19, 2022, 5:54 PM IST

एल्गार परिषद मामले में बंबई हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका खारिज कर दी. बाबू को इस मामले में जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं. Du professor haney babu bail rejected.

Bombay hc
बॉम्बे हाईकोर्ट

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी एवं दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका सोमवार को खारिज कर दी. न्यायमूर्ति एन एम जामदार और न्यायमूर्ति एन आर बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि जमानत खारिज करने के विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ बाबू द्वारा दायर अपील खारिज की जाती है. Du professor haney babu bail rejected.

मामले की जांच कर रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने बाबू पर प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों एवं विचारधारा का प्रचार करने के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया है. बाबू को इस मामले में जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं. Elgar Parishad Case.

यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में हुए एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने से संबंधित है. पुलिस का दावा है कि इसके कारण अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव स्मारक के निकट हिंसा भड़क गई थी. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए थे. bo

इस मामले में 12 से अधिक कार्यकर्ता और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है. इसकी शुरुआत में पुणे पुलिस ने जांच की और बाद में जांच एनआईए ने संभाल ली. एनआईए की एक विशेष अदालत ने इस साल की शुरुआत में बाबू की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. बाबू ने विशेष अदालत के आदेश को इस साल जून में उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.

बाबू ने अपनी याचिका में कहा कि विशेष अदालत के इस आदेश में ‘‘त्रुटि’’ है कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया अपराध से जुड़ी सामग्री मिली है. अधिवक्ता युग चौधरी और पयोशी रॉय के माध्यम से दायर अपनी याचिका में, बाबू ने कहा कि एनआईए ने मामले में सबूत के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का उल्लेख करने वाले एक पत्र का हवाला दिया था, लेकिन कथित पत्र उन पर अभियोग नहीं लगाता.

याचिका में कहा गया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वह भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करने के लिए गतिविधियों का समर्थन करते थे या ऐसा करने का इरादा रखते थे. एनआईए ने बाबू की जमानत याचिका का विरोध किया है. एनआईए ने कहा कि बाबू नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे और सरकार गिराना चाहते थे.

एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अनिल सिंह ने अदालत से कहा था कि बाबू प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) के सदस्य थे और उनके लैपटॉप से अभियोजन को मिली सामग्री यह दर्शाती है कि वह इस मामले के अन्य आरोपियों के लगातार संपर्क में थे.

केंद्रीय एजेंसी के वकील ने कहा कि बाबू नक्सलवाद का प्रचार एवं विस्तार करना चाहते थे और निर्वाचित सरकार को गिराकर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के षड्यंत्र में शामिल थे. सिंह ने अदालत से कहा कि वह और अन्य आरोपी सशस्त्र संघर्ष के जरिए 'जनता सरकार' बनाना चाहते थे. एएसजी ने दलील दी कि बाबू संगठन के अन्य सदस्यों को फोन टैपिंग से बचने का प्रशिक्षण भी देते थे.

ये भी पढ़ें : 'एल्गार' में फाड़े गए केंद्र सरकार के विवादित कानूनों के पोस्टर

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी एवं दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका सोमवार को खारिज कर दी. न्यायमूर्ति एन एम जामदार और न्यायमूर्ति एन आर बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि जमानत खारिज करने के विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ बाबू द्वारा दायर अपील खारिज की जाती है. Du professor haney babu bail rejected.

मामले की जांच कर रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने बाबू पर प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों एवं विचारधारा का प्रचार करने के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया है. बाबू को इस मामले में जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं. Elgar Parishad Case.

यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में हुए एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने से संबंधित है. पुलिस का दावा है कि इसके कारण अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव स्मारक के निकट हिंसा भड़क गई थी. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए थे. bo

इस मामले में 12 से अधिक कार्यकर्ता और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है. इसकी शुरुआत में पुणे पुलिस ने जांच की और बाद में जांच एनआईए ने संभाल ली. एनआईए की एक विशेष अदालत ने इस साल की शुरुआत में बाबू की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. बाबू ने विशेष अदालत के आदेश को इस साल जून में उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.

बाबू ने अपनी याचिका में कहा कि विशेष अदालत के इस आदेश में ‘‘त्रुटि’’ है कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया अपराध से जुड़ी सामग्री मिली है. अधिवक्ता युग चौधरी और पयोशी रॉय के माध्यम से दायर अपनी याचिका में, बाबू ने कहा कि एनआईए ने मामले में सबूत के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का उल्लेख करने वाले एक पत्र का हवाला दिया था, लेकिन कथित पत्र उन पर अभियोग नहीं लगाता.

याचिका में कहा गया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वह भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करने के लिए गतिविधियों का समर्थन करते थे या ऐसा करने का इरादा रखते थे. एनआईए ने बाबू की जमानत याचिका का विरोध किया है. एनआईए ने कहा कि बाबू नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे और सरकार गिराना चाहते थे.

एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अनिल सिंह ने अदालत से कहा था कि बाबू प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) के सदस्य थे और उनके लैपटॉप से अभियोजन को मिली सामग्री यह दर्शाती है कि वह इस मामले के अन्य आरोपियों के लगातार संपर्क में थे.

केंद्रीय एजेंसी के वकील ने कहा कि बाबू नक्सलवाद का प्रचार एवं विस्तार करना चाहते थे और निर्वाचित सरकार को गिराकर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के षड्यंत्र में शामिल थे. सिंह ने अदालत से कहा कि वह और अन्य आरोपी सशस्त्र संघर्ष के जरिए 'जनता सरकार' बनाना चाहते थे. एएसजी ने दलील दी कि बाबू संगठन के अन्य सदस्यों को फोन टैपिंग से बचने का प्रशिक्षण भी देते थे.

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Last Updated : Sep 19, 2022, 5:54 PM IST
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