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नदी में प्रवाहित करने से अच्छा है फूलों को सुखाकर बेच दें, अंतरराष्ट्रीय बाजार में है बड़ी डिमांड

भारत में प्रतिदिन पूजा स्थलों के आसपास इतने अधिक फूलों की बर्बादी होती है, जिसका यदि ठीक से उपयोग किया जाए तो न सिर्फ लोगों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि रोजगार भी बढ़ेंगे. अंतरराष्ट्रीय बाजार में सूखे हुए फूलों की बड़ी डिमांड है और भारत इस डिमांड को पूरी करने की क्षमता रखता है, क्योंकि यहां की मिट्टी और जलवायु बागवानी खेती के लिए अनुकूल मानी जाती है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 15, 2023, 4:17 PM IST

हैदराबाद : भारत में अलग-अलग किस्म की मिट्टी और जलवायु परिस्थितियां हैं, जिन्हें बागवानी खेती के लिए सर्वाधिक अनुकूल माना जाता है. बागवानी खेती यानी फल, फूल, सब्जी और मसाले की खेती. भारत और अंतरराष्ट्रीय बाजार में खूखे फूलों की अच्छी मांग है. ये न सिर्फ लंबे समय तक रखे जा सकते हैं, बल्कि ताजे फूल की तुलना में अधिक कीमत पर बिकते भी हैं. भारत से इसे अमेरिका, जापान और यूरोप में निर्यात भी किया जाता है.

भारत करीब 20 देशों को 500 से अधिक प्रकार के फूलों का निर्यात करता है, जिससे 100 करोड़ रुपये की आमदनी होती है. भारत में पूजा स्थलों के आसपास प्रतिदिन 20 टन से अधिक फूल बर्बाद हो जाते हैं. भारत में जितने भी फूल होते हैं, उनमें सुखाने के लिए ग्लोबोसा, हेलिक्रिसम, एक्रोलिनम, सेलोसिया, कॉक्स कॉम्ब, कॉटन, जिप्सोफिला, स्टेटिस, लैवेंडर, लार्कसपुर और गुलाब सर्वोत्तम माने जाते हैं. सुखे हुए फूल की आयु दो से चार साल तक की होती है. फूलों को सामान्य वातावरण या गर्म हवा या माइक्रोवेब या फिर ग्लिसरिन और फ्रीजिंग तरीके से सुखाया जा सकता है.

भारत की नदियों में फूलों का प्रवाह किया जाता है. इसकी वजह से नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है. वे हानिकारक रसायन भी छोड़ते हैं, जिनकी वजह से हमारे वनस्पति और जीव भी प्रभावित होते हैं. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जल और जमीन पर प्रदूषण फैलाने में इनका सबसे बड़ा योगदान है. ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि हमारे यहां सूखे हुए फूलों को भी पवित्र माना जाता है और उसे कचरे में फेंकना पसंद नहीं करते हैं, लिहाजा उसे जल में प्रवाहित किया जाता है.

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के मुताबिक अकेले गंगा नदी में हरेक साल मंदिरों और मस्जिदों पर चढ़ाए गए 80 लाख मैट्रिक टन फूल डंप किए जाते हैं. सिर्फ हैदराबाद की बात करें, तो यहां के पूजा स्थलों पर चढ़ाए गए एक हजार मैट्रिक टन से अधिक फूल बर्बाद होते हैं. जहां पर पास में नदी नहीं है, वहां पर इन फूलों को खुले में छोड़ दिया जाता है, या फिर जमीन में गाड़ दिया जाता है. इसकी वजह से कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है. अन्य प्रकार के वायु और मिट्टी प्रदूषण होते हैं.

हाल के दिनों में कुछ व्यवसायियों ने इसे साफ करने का बीड़ा उठाया है. वे इसे अलग-अलग जगहों से इकट्ठा कर उसे यूजेबल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वे इससे ऑर्गेनिक खाद बना रहे हैं, या फिर इसका उपयोग साबुन, इत्र, मोमबत्ती, विंडो बॉक्स, हैंडमेंड पेपर, रोज वाटर, रोज वॉयल, जैसमीन कॉंक्रीट, ट्यूबरोज कॉंक्रीट, ग्रीटिंग्स कार्ड वगैरह बनाने में उपयोग कर रहे हैं. गुलाब की पंखुड़ियां, जैसमीन, गुलदाउदी के फूल एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, लिहाजा उसका अपयोग हर्बल टी बनाने में किया जा रहा है. महुआ फ्लॉवर का उपयोग फूड इंडस्ट्री में होता है. जैम और जेली में भी उपयोग किया जाता है.

अगर फूलों की रिसाइकलिंग की जाए, तो न सिर्फ हमारी नदियां प्रदूषण मुक्त होंगी, बल्कि रोजगार भी बढ़ेगा. वैल्यू एडेड प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं. खाने वाले सुखे हुए फूलों का प्रयोग केक और डेजर्ट में किया जाता है. इनमें एंटीऑक्सिडेंट होने की वजह से इसका उपयोग हर्बल टी बनाने में किया जाता है. फ्रेश प्लॉवर की तुलना में इसे लंबे समय तर रखा जा सकता है.

सूखे फूलों के व्यवसाय के लिए सकल मार्जिन आम तौर पर लगभग 65% है. फूलों के कचरे के पुनर्चक्रण के कई फायदे हैं. यह जमीन पर होने वाले प्रदूषण को कम करता है और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करता है. इससे कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है.

इसके साथ ही पुष्प अपशिष्टों का जैव अवशोषण में महत्वपूर्ण अनुप्रयोग हो सकता है. यह अपशिष्ट जल और अन्य औद्योगिक अपशिष्टों को ट्रीट करने में मदद कर सकता है. यह एक सीमित पैमाने के उद्योग के साथ शुरू हो सकता है जहां महिलाएं सेमिनारों, कार्यशालाओं और प्रशिक्षणों के माध्यम से सूखे फूल प्रौद्योगिकी पर जागरूकता पैदा करके नए व्यावसायिक क्षेत्रों का निर्माण करने के लिए असाधारण रूप से काम कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें : राष्ट्रीय शिक्षा दिवस : क्या भारत में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा तक पहुंच महज एक सपना?

(लेखक - डॉ.गड्डेज्योति, वैज्ञानिक, बागवानी अनुसंधान केंद्र, तेलंगाना)

हैदराबाद : भारत में अलग-अलग किस्म की मिट्टी और जलवायु परिस्थितियां हैं, जिन्हें बागवानी खेती के लिए सर्वाधिक अनुकूल माना जाता है. बागवानी खेती यानी फल, फूल, सब्जी और मसाले की खेती. भारत और अंतरराष्ट्रीय बाजार में खूखे फूलों की अच्छी मांग है. ये न सिर्फ लंबे समय तक रखे जा सकते हैं, बल्कि ताजे फूल की तुलना में अधिक कीमत पर बिकते भी हैं. भारत से इसे अमेरिका, जापान और यूरोप में निर्यात भी किया जाता है.

भारत करीब 20 देशों को 500 से अधिक प्रकार के फूलों का निर्यात करता है, जिससे 100 करोड़ रुपये की आमदनी होती है. भारत में पूजा स्थलों के आसपास प्रतिदिन 20 टन से अधिक फूल बर्बाद हो जाते हैं. भारत में जितने भी फूल होते हैं, उनमें सुखाने के लिए ग्लोबोसा, हेलिक्रिसम, एक्रोलिनम, सेलोसिया, कॉक्स कॉम्ब, कॉटन, जिप्सोफिला, स्टेटिस, लैवेंडर, लार्कसपुर और गुलाब सर्वोत्तम माने जाते हैं. सुखे हुए फूल की आयु दो से चार साल तक की होती है. फूलों को सामान्य वातावरण या गर्म हवा या माइक्रोवेब या फिर ग्लिसरिन और फ्रीजिंग तरीके से सुखाया जा सकता है.

भारत की नदियों में फूलों का प्रवाह किया जाता है. इसकी वजह से नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है. वे हानिकारक रसायन भी छोड़ते हैं, जिनकी वजह से हमारे वनस्पति और जीव भी प्रभावित होते हैं. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जल और जमीन पर प्रदूषण फैलाने में इनका सबसे बड़ा योगदान है. ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि हमारे यहां सूखे हुए फूलों को भी पवित्र माना जाता है और उसे कचरे में फेंकना पसंद नहीं करते हैं, लिहाजा उसे जल में प्रवाहित किया जाता है.

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के मुताबिक अकेले गंगा नदी में हरेक साल मंदिरों और मस्जिदों पर चढ़ाए गए 80 लाख मैट्रिक टन फूल डंप किए जाते हैं. सिर्फ हैदराबाद की बात करें, तो यहां के पूजा स्थलों पर चढ़ाए गए एक हजार मैट्रिक टन से अधिक फूल बर्बाद होते हैं. जहां पर पास में नदी नहीं है, वहां पर इन फूलों को खुले में छोड़ दिया जाता है, या फिर जमीन में गाड़ दिया जाता है. इसकी वजह से कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है. अन्य प्रकार के वायु और मिट्टी प्रदूषण होते हैं.

हाल के दिनों में कुछ व्यवसायियों ने इसे साफ करने का बीड़ा उठाया है. वे इसे अलग-अलग जगहों से इकट्ठा कर उसे यूजेबल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वे इससे ऑर्गेनिक खाद बना रहे हैं, या फिर इसका उपयोग साबुन, इत्र, मोमबत्ती, विंडो बॉक्स, हैंडमेंड पेपर, रोज वाटर, रोज वॉयल, जैसमीन कॉंक्रीट, ट्यूबरोज कॉंक्रीट, ग्रीटिंग्स कार्ड वगैरह बनाने में उपयोग कर रहे हैं. गुलाब की पंखुड़ियां, जैसमीन, गुलदाउदी के फूल एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, लिहाजा उसका अपयोग हर्बल टी बनाने में किया जा रहा है. महुआ फ्लॉवर का उपयोग फूड इंडस्ट्री में होता है. जैम और जेली में भी उपयोग किया जाता है.

अगर फूलों की रिसाइकलिंग की जाए, तो न सिर्फ हमारी नदियां प्रदूषण मुक्त होंगी, बल्कि रोजगार भी बढ़ेगा. वैल्यू एडेड प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं. खाने वाले सुखे हुए फूलों का प्रयोग केक और डेजर्ट में किया जाता है. इनमें एंटीऑक्सिडेंट होने की वजह से इसका उपयोग हर्बल टी बनाने में किया जाता है. फ्रेश प्लॉवर की तुलना में इसे लंबे समय तर रखा जा सकता है.

सूखे फूलों के व्यवसाय के लिए सकल मार्जिन आम तौर पर लगभग 65% है. फूलों के कचरे के पुनर्चक्रण के कई फायदे हैं. यह जमीन पर होने वाले प्रदूषण को कम करता है और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करता है. इससे कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है.

इसके साथ ही पुष्प अपशिष्टों का जैव अवशोषण में महत्वपूर्ण अनुप्रयोग हो सकता है. यह अपशिष्ट जल और अन्य औद्योगिक अपशिष्टों को ट्रीट करने में मदद कर सकता है. यह एक सीमित पैमाने के उद्योग के साथ शुरू हो सकता है जहां महिलाएं सेमिनारों, कार्यशालाओं और प्रशिक्षणों के माध्यम से सूखे फूल प्रौद्योगिकी पर जागरूकता पैदा करके नए व्यावसायिक क्षेत्रों का निर्माण करने के लिए असाधारण रूप से काम कर सकती हैं.

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(लेखक - डॉ.गड्डेज्योति, वैज्ञानिक, बागवानी अनुसंधान केंद्र, तेलंगाना)

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