देहरादून: उत्तराखंड देश में ही नहीं, बल्कि दुनिया में भी अपनी अलग संस्कृति और कला के लिए जाना जाता है. उत्तराखंड की कला की जान यहां के पुराने वाद्य यंत्रों में बसती है, जो आजकल बहुत ही कम देखने को मिलते हैं. कई तो विलुप्त भी हो चुके हैं या फिर ये कहें कि चलन से बाहर होने के कारण अब देखने को नहीं मिलते हैं. लेकिन यदि आप उन वाद्य यंत्रों को देखने चाहते हैं तो राजधानी के बीचों-बीच स्थित दून लाइब्रेरी में आ जाएं. यहां उन सब वाद्य यंत्रों को संजो कर रखा गया है.
दून लाइब्रेरी में मौजूद इस हिस्टोरिकल म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट म्यूजियम में आपको उत्तराखंड के पौराणिक, पारंपरिक और धार्मिक वाद्य यंत्रों के साथ-साथ देश में ब्रिटिश आगमन के बाद आए वाद्य यंत्रों की भी झलक देखने को मिल जायेगी.
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जुगल किशोर पेटशाली के कलेक्शन से तैयार हुआ ये म्यूजियम: ईटीवी भारत ने दून लाइब्रेरी में मौजूद इस म्यूजियम में जाकर यहां रखी सभी पुरानी धरोहरों को एक्सप्लोर किया और म्यूजियम में मौजूद प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी से इन सभी दुर्लभ वाद्य यंत्रों के बारे में विस्तार से जानकारी ली.
जुगल किशोर पेटशाली के जीवन भर की कमाई: दून लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर में बनाए गए इस म्यूजियम को पूरी तरह से जुगल किशोर पेटशाली को समर्पित किया गया है, क्योंकि यहां पर रखे सभी तरह के ऐतिहासिक इंस्ट्रूमेंट उन्हीं ने उपलब्ध कराए हैं. म्यूजियम में रखे गए दुर्लभ वाद्य यंत्र जुगल किशोर पेटशाली के जीवन भर की कमाई हैं, जिसे उन्होंने दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर को सौंप दिया.
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हस्तलिखित पांडुलिपियां भी मौजूद: दून लाइब्रेरी में आपको पीतल का ढोल, दमाऊं, धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग होने वाला डोंर, जागर विधा में इस्तेमाल होने वाला हुड़का देखने को मिल जाएगा, जो सीधे-सीधे उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा को प्रदर्शित करते हैं. इसके अलावा दून लाइब्रेरी में पौराणिक हस्त लिखित पांडुलिपियां भी मौजूद हैं. इन हस्तलिखित पांडुलिपियों में आप उत्तराखंड का अतीत देख सकते हैं.
यहां मिलेगा आपको उत्तराखंड का इतिहास: इन हस्तलिखित पांडुलिपियों में योग, आयुर्वेद और ज्योतिष विज्ञान से संबंधित कई ऐसे दस्तावेज हैं, जिनका मिलना आज के समय में बहुत मुश्किल है. दून लाइब्रेरी में इन सभी दस्तावेजों को संरक्षित करने की योजना बनाई जा रही है, ताकि आने वाली पीढ़ी इस इतिहास से रूबरू हो सके. लाइब्रेरी के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने बताया कि उन्होंने उत्तराखंड के इतिहास को संजोए रखने के लिए योजना बनाई है, ताकि इन दस्तावेजों पर अध्ययन और रिसर्च की जा सके.
अंग्रेजों के लाए इंस्ट्रूमेंट बढ़ा रहे म्यूजियम की शोभा: दून लाइब्रेरी के इस म्यूजियम में न सिर्फ आपको पहाड़ के पारंपरिक वाद्ययंत्र देखने को मिलेंगे, बल्कि अंग्रेजी शासन काल से जुड़े कुछ इंस्ट्रूमेंट में दिख जाएगे, जिन्हें कभी अंग्रेज अपने साथ लाए थे.
यहां पर आपको कुछ पुराने रेडियो, ग्रामोफोन, ट्रांजिस्टर, ग्रामोफोन रिकॉर्ड प्लेयर, टेप रिकॉर्डर इत्यादि भी देखने को मिलेंगे. इसके साथ ही उत्तराखंड के मुख्य सचिव रहे एसके दास ने भी अपना कॉइन कलेक्शन दून लाइब्रेरी को दान किया है, ताकि इन पर भी अध्ययन किया जा सके.
राजशाही में संदेशवाहक का काम करने वाला बड़ा नागदा भी मौजूद: दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर में राजशाही का दौर भी देखने को मिल जाएगा. उस समय संवाद के लिए किसी तरह का कोई माध्यम नहीं होता था. जब भी राजा को जनता में कोई संदेश देना होता था तो वो बड़े नगाड़े का इस्तेमाल करते थे. बड़ा नगाड़ा भी आपको इस म्यूजियम में देखने को मिलेगा. इसके अलावा अलग-अलग तरह के ढोल भी यहा की शान चार चांद लगा रहे हैं.
अल्मोड़ा क्षेत्र में होने वाले पौराणिक तमारा शिल्प की कलाकृतियां: उत्तराखंड की फेमस और लोकप्रिय वाद्य यंत्र रणसिंघे भी इस म्यूजियम की शान हैं. रणसिंह एक तरह से उत्तराखंड के 52 गढ़ों और यहां पर पुराने समय में होने वाले राजाओं के बीच के युद्ध की यादें ताजा करता है. क्योंकि यह वही वाद्य यंत्र है, जिससे युद्ध घोष किया जाता था और आज भी इस वाद्य यंत्र का नाम रणसिंगा ही है.
उत्तराखंड के कई पहाड़ी गांव में आज भी इसे शादियों और विशेष आयोजनों पर बजाया जाता है. कुछ ऐसे दुर्लभ वाद्य यंत्र जो आज प्रचलन से बाहर हो गए हैं और जो मुश्किल से ही देखने को मिलते हैं, उन्हें आज भी आप इस म्यूजियम में देख सकते हैं. दून लाइब्रेरी के म्यूजियम में हमें तुतरी और नागफनी जैसे उत्तराखंड के वाद्य यंत्र देखने को मिले तो वहीं अंग्रेजों द्वारा लाए गए मसक बीन भी आपके यहां दिख जाएगी.